अकबर का इतिहास | History of Akbar - Rajasthan Result

अकबर का इतिहास | History of Akbar

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शेरशाह सूरी से हुमायूं परास्त होने के बाद जब हिंदुस्तान से भाग रहा था तो वह अपने भाई कामरान की ओर बढ़ रहा था कामरान सिंध का शासक था लेकिन कामरान हुमायूं की मदद करने के बजाय वे स्वयं हुमायूं की हत्या करना चाहता था ताकि भविष्य में आगरा की गद्दी पर उसे सफलता मिल सके इसी दौरान हुमायूं की पत्नी को कभी भी बच्चे के जन्म की परिस्थिति निर्मित हो गई यही कारण है कि उन्होंने अमरकोट के राणा भील वीरसाल से मदद मांगी इस तरह 1542 वीरसाल के महल में अकबर का जन्म हुआ।

 

अकबर के प्रारंभिक जीवन के समय में कामरान ने पालन पोषण में विशेष भूमिका निभाया है इसके बाद हुमायूं ईरान चला गया। 1556 में जब हुमायूं की मृत्यु हुई उस समय अकबर पंजाब के कलानौर में था पंजाब का गवर्नर था जबकि अकबर 9 साल की उम्र में गजनी का पहली बार गवर्नर नियुक्त हुआ था। 1556 में कलानौर की पहाड़ी पर अकबर का राज्याभिषेक हुआ था इस समय बैरम खान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था।

 

पानीपत का द्वितीय युद्ध 1556

यह युद्ध आदिल शाह के सेनापति हेमू तथा अकबर, बैरम खां के मध्य लड़ा गया था हेमू को भारत का अंतिम विक्रमादित्य कहा जाता है। इस युद्ध में हेमू की जीत लगभग सुनिश्चित थी लेकिन एक तीर हेमू को इस प्रकार लगा कि वह हाथी से नीचे गिरा यह मुगलों के लिए निर्णायक साबित हुआ अंत: मुगल पानीपत का द्वितीय युद्ध जीतने में सफल हुए।

 

1556 से 1560 तक अकबर 4 वर्ष तक माहम अनगा के नेतृत्व में मुगल हरम में रहा इसे मुगल शासन में पेटीकोट शासक के नाम से जाना जाता है। बैरम खान एक सिया मुसलमान था इस 4 वर्ष के दौरान बैरम खान नहीं सकता का संचालन किया था।

अकबर और बैरम खान के बीच में तिलवाड़ा का युद्ध हुआ था 1561 में अकबर शिकार खेलने के बहाने आगरा से दिल्ली गया और वहां से बैरम खां के लिए दो आदेश की घोषणा की जिसमें एक था कि अगर बैरम खा जाए तो किसी सुबह का सुबेदारी संभाल ले जबकि दूसरा आदेश बैरम खां के लिए मक्का हज पर जाने के लिए था। जब बैरम खां मक्का के लिए जा रहा था जो गुजरात में अफगानियों ने इसे घेर लिया और मुबारक खान ने बैरम खान की हत्या कर दी 1555 में मछीवाड़ा के युद्ध में बैरम खान ने मुबारक खा के पिता की हत्या की थी।

 

अकबर की राजपूत नीति

अकबर ने अपने शासनकाल में कई नीतियां अपनाई जिन में एक महत्वपूर्ण नीति राजपूत नीति भी मानी जाती है जिसके कई कारण हैं :-

1. अकबर का एक राजपूत परिवार में जन्म लेना ।

2. मुगल सेना में उजबेक और अफ़गानों का वर्चस्व ।

3. उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में राजपूतों का वर्चस्व |

4. राजपूतों के साथ वैवाहिक संबंध

5. हज़ करने तथा भारत से बाहर जाने के लिए इस चीज पर नियंत्रण स्थापित करना ।

6. व्यापारिक कार्य में इस क्षेत्र का प्रयोग स्थल मार के रूप में होता था।

7. राजपूतों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए

 

अकबर की पहली राजपूत पत्नी हरका बाई थी इन्हें ही जोधा बाई के नाम से भी जाना जाता था। अकबर एकमात्र राजपूत राजा सुरजन राय हाडा (रणथंभोर) को तव्वारा (वाद्ययंत्र) बजाने की छूट दी थी।

अकबर ने राजपूतों तथा हिंदुओं को भी उनके धार्मिक चिन्ह पगड़ी और रीति रिवाज को अपनाने तथा मानने की छूट दी थी। अकबर ने 1563 में तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति के साथ ही अकबर की धार्मिक नीति का भी प्रारंभ हो गया I

अकबर के द्वारा धार्मिक दृष्टि से भी कई नए बदलाव किए गए इन्होंने अगस्त 1563 में मथुरा एवं अन्य तीर्थ स्थलों में हिंदुओं से वसूला जाने वाला तीर्थ यात्रा कर को समाप्त किया।

1564 में अकबर ने जजिया कर को समाप्त किया इसका उलेमाओं ने विरोध किया था जबकि बदायूनी के अनुसार जजिया कर को 1579 में समाप्त किया गया था| 1565 में अकबर ने जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगा दिया। अकबर ने 1562 में ही युद्ध बंदियों को जबरदास बनाने की प्रथा पर रोक लगा दी यह घोषणा 1562 में मेड़ता युद्ध के समय राजपूतों की वीरता से प्रभावित होकर लिया गया निर्णय था।

इबादत खाना

अकबर ने 1575 में फतेहपुर सीकरी में इबादत खाना का निर्माण कराया था इस प्रार्थना कक्ष का निर्माण अब्दुल्ला निजामी (संत) के कक्ष के बगल में था। इबादत खाना का उद्देश्य धार्मिक वाद विवाद पर चर्चा करना था यह परिचर्चा गुरुवार को होती थी शुरू में यह केवल मुसलमानों के लिए खोला गया था लेकिन 1578 में से सभी धर्मों के लिए खोल दिए गए इसमें हिंदू जैन पारसी ईसाई सभी भाग लेने लगे|

हिन्दु संतो में पुरुषोत्तम व देवीदास भाग लेते थे पारसी में मेहर जी राणा जैन संतों में हरी विजय सुरी (इन्हें अकबर जगत गुरु के नाम से बुलाता था) जिन सेन सूरी ( अकबर द्वारा युग प्रधान की उपाधी), इसाइयों में फादर एकवविवा, फादर मानसोरेट | 1581 में खबर नहीं से आंशिक रूप से जबकि 1582 में पूर्ण रुप से बंद कर दिया |

 

मजहर नामा

मजहर नामा एक लिखित दस्तावेज था जिसे अकबर ने सितंबर 1579 में फतेहपुर सीकरी में घोषणा की थी इस दस्तावेज को तैयार करने में से शेख मुबारक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस दस्तावेज पर 7 आलिमों के हस्ताक्षर थे जिसमें महत्वपूर्ण रूप से शेख अब्दुल्लाह, नवी अब्दुल्ला, सुल्तानपुरी एवं शेख मुबारक महत्वपूर्ण थे| मजहरनामा सुलह-ए- कुल इन नीति पर आधारित था आईने अकबरी में मजहर नामा की चर्चा नहीं है| मजहर नामा के माध्यम से अकबर शीर्ष विचारक के रूप में स्थापित हुआ। बुल्जले हेग के अनुसार मजहर नामा अमोधत्व का सिद्धांत था, क्योंकि मजहर नामा के माध्यम से अकबर धर्म के मामले में पॉप के समान अधिकार युक्त हो गया |

दीन-ए-इलाही

अकबर ने 1582 में दीन ए इलाही की स्थापना की इसके विषय में आईने अकबरी में चर्चा की गई है। दीन ए इलाही में 12 सिद्धांत है इस को मानने वालों की संख्या मात्र 22 थी, और एकमात्र हिंदू बीरबल थे| जिन्होंने इसे स्वीकार किया था जो व्यक्ति दीन-ए-इलाही को मानता था उसे मांस खाने से परहेज करना होता था| अकबर ने अन्य सामाजिक सुधारों में विवाह के लिए लड़के की उम्र 16 वर्ष और लड़की की आयु 14 वर्ष निर्धारित की। 

हिंदू स्त्रियों में सती प्रथा पर रोक लगाया गया यदि कोई स्त्री स्वयं से सती होने के लिए आदेश मानती है तो उसे सती होने के लिए आदेश दिया जा सकते हैं|

अकबर ने सूर्य एवं अग्नि की पूजा प्रारंभ की अकबर के द्वारा शराब पीने पर भी रोक लगाने का प्रयास किया यदि कोई वेद्य या हकीम के द्वारा यह बताया गया कि शराब शरीर के लिए जरूरी है तो वह व्यक्ति शराब पी सकता था| और अकबर ने वेश्यावृत्ति पर भी नियंत्रण लगाया गया|

अकबर ने झरोखा दर्शन तुलादान जैसी प्रथाओं को प्रारंभ किया अकबर ने 1583 में इलाही संवत चलाया जो सोर कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता था | उसने सिक्कों पर से खलीफा का नाम हटवा दिया और अरबी भाषा में अल्लाह हू अकबर अंकित किया गया तथा सूर्य और चंद्रमा का बखान किया गया|

 

मनसबदारी व्यवस्था

अकबर ने अपने शासनकाल में मनसबदारी व्यवस्था को अपनाया मनसबदारी व्यवस्था मंगोलों से ली गई थी जो दशमलव प्रणाली पर आधारित था | मनसबदारी व्यवस्था दो भागों में विभाजित थी, और सवार जात से पद और वेतन का निर्धारण होता था जबकि सवार से सैन्य क्षमता (घुड़सवार) का निर्धारण किया जाता था :-

5000 जात – 5000 सवार – प्रथम श्रेणी

5000 जात – 2500 सवार – द्वितिय श्रेणी

5000 जात – 500 सवार – तृतीय श्रेणी

 

सामान्यतः सवार जात से अधिक नहीं होते थे अगर कुछ विशेष परिस्थितियों में सवार जात से अधिक किए भी जाते थे तो परिस्थिति के बाद उन्हें उसे कम कर दिया जाता था |

जहांगीर के काल में दो अस्पा और सी अस्पा की एक नई प्रणाली अपनाई गई | जिसके माध्यम से मुगल सैन्य व्यवस्था में एवं मनसबदारी में एक नया परिवर्तन हुआ| शाहजहां के समय मनसबदारी व्यवस्था में एक बटे दो, एक तीआई, एक चौथाई प्रणाली को जोड़ा गया| शाहजहां के समय में ही महाना वेतन प्रणाली प्रारंभ किया गया था और औरंगजेब ने मनसबदारी व्यवस्था में किसी भी प्रकार का संशोधन नहीं किया|

आइन-ए-दहशाला

अकबर ने भू राजस्व की वसूली के लिए कई नए परिवर्तन लागू किए जैसे शेरशाह के समय से जमीन मापने के लिए गज ए सिकंदरी का प्रयोग होता था | जिसे अकबर ने परिवर्तन करके उसके स्थान पर गज ए इलाही को भूमि मापने का पैमाना घोषित किया | जहां शेरशाह सूरी राजस्व की वसूली में भूमि की उत्पादकता को आधार बनाया था वही अकबर ने कृषि की बारंबारता को आधार बनाया साथ ही साथ भूमि की माप शुद्धता से हो इसके लिए बांस के लट्ठे में लोहे के छल्ले लगाए गए | राजस्व का निर्धारण करने में 10 साल का औसत आधार बनाया गया इसे ही आइन-ए-दहशाला कहा गया |

अकबर के नवरत्न

भगवान दास, मान सिंह, बीरबल, राजा टोडरमल, तानसेन, अबुल फजल, मुल्ला दो प्याजा, हाकिम हुकाम, रहीम खान ए खाना, फैजी|

मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु 1605 में हुई |

अकबर की कितनी पत्नी थी

वास्तविकता कुछ और है ,अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और हर एक का अपना अलग घर था.” ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थीं।

अकबर के कितने बच्चे थे :— 10

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