उत्पन्ना एकादशी की पूजा करते समय अवश्य पढ़ें यह व्रत कथा
उत्पन्ना एकादशी :— इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं।
इस तरह हुई एकादशी व्रत की शुरुआत, जानें सब कुछ
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 11 दिसंबर दिन शुक्रवार यानी आज है। शास्त्रों के अनुसार, सभी व्रतों में एकादशी का व्रत सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। एकादशी एक देवी हैं, जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था और मार्गशीर्ष की एकादशी के दिन ही यह प्रकट हुई थीं। इसलिए इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी हुआ। पद्मपुराण के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से सभी व्रतों का फल मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही यह सभी प्रकार के दुखों का नाश करती है। आइए जानते हैं इस एकादशी किस तरह प्रकट हुई थीं और इसके पीछे क्या कथा है…
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उत्पन्ना एकादशी का महत्व
पुराणों के अनुसार, एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है और सभी तीर्थों के दर्शन के बराबर फल मिलता है। इस व्रत में किया गया दान का फल जन्मों-जन्मों तक मिलता है। इस व्रत में जप, तप व दान करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है। अगर आप हर महीने पड़ने वाली एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं तो आप उत्पन्ना एकादशी से शुरुआत कर सकते हैं। इस व्रत के रखने से जीवन में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है और माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है।
उत्पन्ना एकादशी तिथि शुभ मुहुर्त
एकादशी तिथि आरंभ- 30 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 52 मिनट से आरंभ
एकादशी तिथि समापन- 1 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 05 मिनट तक, उसके बाद द्वादशी तिथि पूरे दिन रात रहेगी
व्रत पारण समय और तिथि- 1 दिसंबर को 10 बजे तक
30 नवंबर का व्रत सभी के लिए शुभ रहेगा। उस दिन सूर्योदय कालिन में एकादशी तिथि लग रही है और उसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। इसके बाद अगले दिन आप व्रत का पारण भी कर सकते हैं।
उत्पन्ना एकादशी व्रत पूजा विधि
उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि के दिन ही भोजन नहीं करना चाहिए। इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान वगैराह से निवृत्त होकर भगवान विष्णु को ध्यान में रखकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद छोटी मेज या जमीन पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर गंगाजल के छींटे देकर धूप, दीप, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजा करें।
इसके बाद भगवान को पीले फूल अर्पित करें और फलों का भोग लगाएं। इस व्रत में केवल फलों का भोग लगया जाता है। फिर घी का दीपक जलाएं और भगवान का ध्यान करके उनकी आरती करें। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना उत्तम रहेगा। पूरे दिन भगवान का भजन व कीर्तन करें साथ ही दान जरूर करें और संध्या के समय दीपदान के बाद फलाहार ग्रहण करें। अगले दिन सुबह यानी द्वादशी तिथि पर भगवान कृष्ण की पूजा करें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं और उनको दान देकर विदा करें।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
पुराणों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने युधिष्ठर को उत्पन्ना एकादशी माता के जन्म के बारे कथा सुनाई थी। भगवान कृष्ण बताते हैं कि सतयुग में मुर नामक एक राक्षस था। उसको अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था और इन्हीं के दम पर उसने स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया था। ऐसे में सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और मदद की मांग की। तब विष्णुजी और मुर के दैत्य के बीच युद्ध शुरू हुआ और कई वर्षों तक चला। राक्षस से युद्ध करते-करते भगवान विष्णु थक गए, इसलिए वह बद्रीकाश्रम में गुफा में जाकर विश्राम करने चले लगे। मुर राक्षस भी भगवान विष्णु का पीछा करते-करते गुफा के पास आ गया।
इस तरह देवी एकादशी हुईं प्रकट
भगवान अपनी निद्रा में लीन थे, तभी मुर राक्षस उनको मारना चाहा। जैसे ही राक्षस ने अपना हथियार उठाया तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी प्रकट हुईं और उन्होने मुर राक्षस का अंत कर दिया। देवी के कार्य से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि आप मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को प्रकट हुई हैं इसलिए आज से आपका नाम एकादशी होगा। सभी व्रतों में तुम्हारा व्रत सबसे महत्वपूर्ण होगा। आज से हर एकादशी के दिन मेरे साथ तुम्हारी पूजा होगी। जो भी व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी का व्रत व पूजा करेगा, उसकी सभी समस्याओं का अंत होगा।
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