अनखि चढ़े अनोखी चित्त चढ़ी उतरै न | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | - Rajasthan Result

अनखि चढ़े अनोखी चित्त चढ़ी उतरै न | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

अनखि चढ़े अनोखी चित्त चढ़ी उतरै न,

मनमग मून्दै जाकौ बेह सब ओर तें |

कांवरि सुठैन कौन रंग भीनीं हौ ।

न जानौं, लाड़नि सु लसी हुलसति मति चोर तें ।

बड़े नैन- मतवारे नैनन के बीच परी,

खरियै निडर ऊँची रहै रूप-जोर तें |

सहज बनी है घन आनन्द नवेली नाक,

अनबनी नथ सौं सुहाग की मरोर तें ॥ (३०)

अनखि चढ़े अनोखी चित्त चढ़ी उतरै न

प्रसंग :— यह पद्य कविवर घनानन्द विरचित ‘सुजानहित’ से लिया गया है। इस प्रसंग में कवि ने प्रेम शृंगार के संयोग-वियोग दोनों पक्षों का सजीव आकर्षक एवं प्रभावी वर्णन किया हैं। नख – शिख-सौन्दर्य वर्णन की परम्परा में, इस पद्य में नथ से युक्त नायिका की नाक की सुन्दरता का भावपूर्ण वर्णन करते हुए कवि कह रहा है –

 

व्याख्या :— उस सुन्दरी नायिका की नथ – युक्त नाक जब अपनी सनक में आकर किसी कारण वश चढ़ जाती है, तो वह देखने वाले के चित्त पर भी फिर कभी न उतरने के लिए चढ़ जाया करती हैं अर्थात् सुन्दरी नायिका नकचढ़ेपन में भी मन में समाकर उसे अत्यधिक प्रभावित एवं प्रेममय बना दिया करती।

उस समय उस नायिका के छिद्र चारों ओर से फैलकर मानो मन तक पहुंच माने की राह रोक लेते हैं । अर्थात् नथुने फैलकर मानो मन तक पहुँच पाने की राह रोक लेते हैं। अर्थात् नथुने फैलकर बड़े ही फूले-फूले प्रतीत होकर मन में समा जाते हैं- वह भी फिर कभी मन से बाहर न निकलने के लिए | सुन्दर कांबरी-सी उसकी नाथिका या काकचंचु की तरह उसकी बतली नुकीली नाक पता ही नहीं चल पाता कि किस रंग में रंगी हुई है।

लाड़ लड़ाने से वह और भी प्रसन्न होकर कुछ इस प्रकार फैलती है कि उसकी उस समय की सुन्दरता मेरी बुद्धि तक को चुरा लेती या हर लिया करती है। अर्थात् बुद्धि उस सुन्दरता और प्रभाव का वर्णन कर पाने में समर्थ नहीं हो पाया करती । काम- भावना से मत वाले बने नायिका के बड़े-बड़े नयनों के बीच में स्थिति नासिका अपनी सुन्दरता के जोर से मानों निडर होकर खड़ी रहती हैं। अर्थात् जैसे कोई बलवान व्यक्ति अपने बल पर चारों ओर से घिरकर भी निडर भाव से खड़ा रहता है

नायिका की उभरी हुई नुकीली नाक मस्त नयनों से घिरकर भी मानों अपने आप को ऊँची किए रहती है। कविवर घनानन्द कहते हैं कि उस नवेली नायिका की नाक अन गढ़-सी नथ पहनने और अपने सुहाग के बल पर बड़ी सुन्दर, स्वाभाविक एवं प्रभावी प्रतीत होती है।

विशेष

1. कवि ने नख – शिख वर्णन की परम्परा में नायिका की नासिका की सुन्दरता का बड़ा ही सहज, स्वाभाविक एवं यथार्थ वर्णन किया है।

2. बड़े नैन- मतवारे नैनन के बीच…’ पद विशेष महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है।

3. पद्य में विविध रूपों में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग विशेष महत्त्वपूर्ण है। उत्प्रेक्षा के अतिरिक्त उल्लेख प्रश्न, काव्यलिंग और अनुप्रास आदि अलंकार भी दर्शनीय हैं।

4. पद्य की भाषा-सहज प्रवाहमयी, संगीतात्मक, माधुर्य गुण से सम्पन्न और सभी तरह की भावाभिव्यक्ति में में सक्षम ललित ब्रजभाषा है।

यह भी पढ़े 👇

  1. रति रंग-पगे प्रीति – पागे रैन जागे नैन | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | (२९)
  2. एड़ी ते सिखा लौ है अनूठियै अंगेर आछी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | (२८)
  3. काहू कंजमुखी के मधुप है लुभाने जानै | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद | (२७)
अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!