औपनिवेशिक काल की स्थापत्य शैलियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए |
औपनिवेशिक काल की स्थापत्य :— भारत मे ब्रिटिश शासन लगभग २०० वर्षो तक रहा है । उन्होंने हमारे देश में अनेक ईमारतो, पुल इत्यादि का निर्माण करवाया आज हम उनके बारे में बात करते है।
औपनिवेशिक काल
ब्रिटिश कालीन भारत में मुख्य तौर पर गिरजाघर और सार्वजनिक उपयोग की इमारतों का निर्माण हुआ। ईसाई स्थापत्य पर गोथिक (Gothic) स्थापत्य के नैतिक और सौन्दर्यपरक मूल्यों का प्रभाव रहा है। इसी के परिणामस्वरूप स्थापत्यगत परिवर्तन भी हुए। परिवर्तन की दूसरी धारा देषी परम्पराओं से प्रभावित थी जिसने भारतीय विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया ।
1530 ई. से लेकर 1835 ई. तक भारत में गोवा पुर्तगालियों का प्रमुख और समृद्ध सत्ता केन्द्र बना रहा। गोवा में इस दौरान बनी धार्मिक और लौकिक इमारतें दर्षनीय हैं। इनमें “चर्च ऑफ होली स्पीरिट” सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पुर्तगालियों ने भारत में गोथिक और बरोक (Baroque) स्थापत्य शैलियों का उपयोग किया।
हालांकि कहीं-कहीं शुद्ध भारतीय शेली भी अपनाई गई थी । मजेदार बात यह है कि किसी भी शेली ने एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश नहीं की है । इस प्रकार भारतीय गिरजाघरों की इमारतों में पर्याप्त विविधता मिलती है। गोवा में निर्मित “लेडी ऑफ डिवाइन प्रॉविडेन्स” चर्च बरोक शेली का उत्तम नमूना है।
भारत में चर्च सबसे पहले केरल राज्य में निर्मित किए गए। केरल के ईसाईयों में यह धारणा प्रचलित है कि एपॉस्टल थॉमस ने केरल के विभिन्न हिस्सों में सात चर्चों का निर्माण करवाया था । केरल की ये इमारतें लकड़ी की बनी होने के कारण नष्ट हो गई। सीरियावासी अपने साथ चर्च स्थापत्य की पष्चिमी–एशियाई परम्परा लेकर आए । जल्द की केरल में एक विशिष्ट चर्च स्थापत्य का विकास हुआ जिसमें चांसेल (chancel, चर्च का पूर्वी भाग) और नव (nave, चर्च का पष्चिमी भाग) अवश्य बनाए जाते थे।
इसके अलावा इसमें क्षेत्रीय उपासना पद्धति और अनुष्ठान के अनुसार भी परिवर्तन किए गए। इस शेली की महत्वपूर्ण विषेषता यही थी कि चर्च के पष्चिमी भाग में तिकोना प्रवेष द्वारा बनाया जाता था, चूने से पुताई की जाती थी और उस पर क्रॉस का चिह्न लगाया जाता था। इसके सामने एक बड़ा हॉल होता था जिसे शाला (shala) के नाम से जाना जाता था। इसका उपयोग भक्तों को ठहराने के लिए किया जाता था । (पी. थॉमस, चर्चेज इन इंडिया ) ।
भारत में यूरोपीय शेली की सबसे पुरानी चर्च कोचीन में स्थित है। अलबुकर्क द्वारा पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना के साथ ही 1510 ई. में इसका निर्माण किया गया था। 1524 ई. में इस चर्च का उपयोग वास्कोडिगामा के पार्थिव शरीर को रखने के लिए किया गया था। बाद में ब्रिटिश काल में इसे एंग्लिकन चर्च बना दिया गया ।
18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में कलकत्ता ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रमुख केन्द्र बन गया। इस दौरान बनी इमारतें ब्रिटिष स्थापत्य से प्रभावित हुई । यह स्थापत्य मध्यकालीन और औद्योगिक युग के ब्रिटिश स्थापत्य से प्रभावित था ।
धीरे-धीरे अंग्रेज वास्तु शिल्पकार यूरोप के क्लासिकल और मध्ययुगीन शेली से ऊबने लगे और उन्होंने तथाकथित फी स्टाइल हाइब्रिड (मुक्त हस्त से बनाई गई मिश्रित पैली) स्थापत्य शेली विकसित की।
बंबई में निर्मित इमारतों में एक मिला-जुला स्थापत्य विकसित हुआ था किन्तु इसमें भारतीय परम्परा के प्रति तिरस्कार की भावना भी न थी । इस हद तक यह एक सुधारवादी प्रयास था। विकसित हुआ जो विदेशी तथा किन्तु इसमें इसके अलावा भारत में ब्रिटिश स्थापत्य को आंग्ल- भारतीयों ने एक अभिनव रूप प्रदान किया ।
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