औरंगजेब का इतिहास | Aurangzeb History
औरंगजेब का जन्म 1618 में हुआ था यह भी मुमताज महल का ही बेटा था 1637 में औरंगजेब का विवाह फारस राजघराने की राजकुमारी दिलरास बानो बेगम (रबिया दुर्रानी या रविया बीवी) से हुआ था।
21 जुलाई 1658 को औरंगजेब ने दिल्ली में अपना पहला राज्यभिषेक कराया और अबुल मुजफ्फर आलमगीर की उपाधि धारण की। किन्तु खजवा और देवराई के युद्ध में क्रमशः सुजा और धारा को अंतिम रूप से परास्त करने के बाद पुन: 5 जून 1659 को दिल्ली में राज्यभिषेक करवाया।
औरंगजेब ने गढ़ी (घर कर) चराई, राहदारी (चुग्गीकर), पानदारी (व्यापारीकर चुग्गी) जैसे करो को समाप्त कर दीया साथ ही साथ आबवाबो (स्थानीय करो) को भी औरंगजेब ने समाप्त किया।
औरंगजेब ने शाहजहां के काल में 1636 -37 तक दक्षिण के सूबेदार के रूप में कार्य किया दक्षिण की पांच स्वतंत्र राज्यों को औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य में मिलाने का कार्य किया।
1682 में अपने पुत्र शहजादा अकबर का पीछा करता हुआ औरंगजेब दक्षिण भारत पहुंचा इसके पश्चात उसे उत्तर भारत आने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ कहा जाता है कि यही दक्षिण भारत औरंगजेब का कब्रिस्तान सिद्ध हुआ। औरंगजेब के दक्षिण में विस्तार वादी नीति में मराठा सबसे बड़े अवरोधक थे।
औरंगजेब शिवाजी को नियंत्रण करने के लिए सबसे पहले बीजापुर के सेनापति अफजल खान को दायित्व सौंपा था जोकि शिवाजी के द्वारा मारा गया। शिवाजी के द्वारा जब अफ़जल खान मारा गया तो दक्षिण में मुगलों के विस्तार वादी नीति और उनके प्रभाव के कमजोर पड़ने का खतरा उत्पन्न होने लगा इसलिए औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खान को दक्कन का सूबेदार बनाकर शिवाजी को नष्ट करने का दायित्व सौंपा था।
शिवाजी ने शाइस्ता खां के ऊपर उस समय हमला किया जब शाइस्ता खां पुणे के गले में विश्राम कर रहा था शिवाजी पुणे के किले के चप्पे-चप्पे से परिचित थे क्योंकि शिवाजी का बचपन पुणे के किले में बीता था। शाइस्ता खां पराजित होने के बाद जब जान बचाकर भागा औरंगजेब ने उसे दंडित करते हुए बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था।
शाइस्ता खां की असफलता के बाद औरंगजेब ने जय सिंह को बीजापुर एवं शिवाजी को नियंत्रण करने या दमन करने का दायित्व सौंपा था जयसिंह शिवाजी को पराजित करने में सफल हुए और पुरंदर की संधि करने के लिए शिवाजी को बाध्य किया लेकिन बीजापुर के विरुद्ध सफलता नहीं मिली और रास्ते में बुरहानपुर में जय सिंह की मृत्यु हुई।
22 सितंबर 1686 को सुल्तान सिकंदरा जलसा ने औरंगजेब के सामने आत्मसमर्पण कर दिया जिसके आधार पर बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया। 32 वर्ष की अल्पायु में ही सिकंदर आदिल शाह की मृत्यु हो गई उसे उसके अंतिम इच्छा के अनुसार उसके धार्मिक गुरु शेख फ़हीमुल्ला के कब्र के पास दफ़ना दिया गया।
बीजापुर को साम्राज्य में मिलाने के बाद औरंगजेब ने बीजापुर और गोलकुंडा पर आक्रमण करने के लिए शहजादा सहा आलम को दायित्व सौंपा। औरंगजेब बीजापुर और गोलकुंडा के माध्यम से मराठा एवं उसके समीप के राज्यों को नियंत्रित करना चाहता था गोलकुंडा को नियंत्रित करने का एक कारण वहां पर हीरे की भी खदान थी।
औरंगजेब ने शिवाजी के उत्तराधिकारी उनके पुत्र संभाजी के साथ भी संघर्ष किया 1689 में एक असावधानी के कारण संभाजी अपने मंत्री कवि कलश के साथ पकड़ लिए गए और 1689 में ही संभाजी की कर दी गई। संभाजी के बाद उनके छोटे भाई राजाराम के नेतृत्व में मराठा मुगलों से संघर्ष कीजिए यह मुगल और मराठा संघर्ष मराठा इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है।
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औरंगजेब की धार्मिक नीति
औरंगजेब एक कट्टर रूढ़िवादी सुन्नी मुसलमान था वह इस्लामिक नियमों को अक्षरशः पालन करने पर बल देता था इसलिए यह मुगल काल के अन्य शासकों से हटकर अपना व्यक्तित्व बनाया था जैसे यह मुगल शासकों में अकेला है जो शराब नहीं पीता था जुआ नहीं खेलता था भांग खाने पर प्रतिबंध लगाया शरीयत के अनुसार चार विवाह की अनुमति थी इसने केवल तीन विवाह किया था। इसके अलावा संगीत पर पाबंदी दरबारी इतिहास लेखन पर रोक चित्रकला पर प्रतिबंध तुलादान पर रोक झरोखा दर्शन पर पाबंदी नवरोज के त्यौहार पर रोक जैसे आदेश दिए।
औरंगजेब पांच वक्त की नमाज नियमित रूप से पढ़ता था इसलिए इसे इतिहास में जिंदा पीर कहा गया है। औरंगजेब ने 1663 में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था और हिंदुओं पर तीर्थ यात्रा कर लगाया। औरंगजेब ने 1679 में हिंदुओं पर पुनः जजिया कर लगाया।
इनके द्वारा जजिया कर को लगाया जाना विशुद्ध रूप से राजनीतिक था क्योंकि वह मुस्लिम योद्धाओं को मराठों और राजपूतों के विरुद्ध संगठित करना चाहता था। इसने मुहतसिब नामक अधिकारी की नियुक्ति की जिसका कार्य मुसलमानों के धार्मिक और निजी आचरण को देखना था नमाज पढ़ना आदि।
औरंगजेब की राजपूत नीति
औरंगजेब ने अकबर के द्वारा प्रारंभ की गई और जहांगीर तथा शाहजहां के द्वारा अनुसरण की गई राजपूत नीति में परिवर्तन कर दिया। औरंगजेब पूर्व की राजनीति को अपने धार्मिक नीति में और साम्राज्यवादी नीति में अवरोध मानता था। औरंगजेब के समय आमेर के राजा जय सिंह मेवाड़ के राजा राजा सिंह और जोधपुर के राजा जसवंत सिंह प्रमुख राजपूत राजा थे।
औरंगजेब और राजपूतों के संबंधों में कटुता 1679 में जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद मारवाड़ को मुगल साम्राज्य में मिलाने की उसकी अदूरदर्शिता नीति के परिणाम स्वरुप प्रारंभ हुई।
मारवाड़ और मुगलों के बीच लगभग 30 वर्षों तक युद्ध चला जो कि 3 चरणों में था :-
1. 1681- 1687 तक = इस समय दुर्गादास दक्षिण में थे।
2. 1687- 1701 तक = दुर्गादास के नेतृत्व में ।
3. 1701- 1707 तक = इस काल में राजपूतों ने मारवाड़ को लगभग स्वतंत्र करा लिया था ।
कर्नल जेम्स टॉड ने दुर्गादास को राठौड़ों का युलिसीज (यूनान का महान योद्धा) कहां है | दुर्गादास राठौड़ की वीरता के कारण राजपूत आज भी कहते हैं “हे मा पूत ऐसा जन जैसा दुर्गादास”
मारवाड़ के लोगों का औरंगजेब के खिलाफ विरोध करने के दो प्रमुख कारण थे
1. औरंगजेब मारवाड़ पर जजिया कर लगाना चाहता था।
2. अजीत सिंह का उत्तराधिकारी ने मानना।
औरंगजेब के समय हुए विद्रोह
औरगजेब के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह आगरा और दिल्ली क्षेत्र में बसे जाटों ने किया था। इस विद्रोह में किसान महत्वपूर्ण रूप से भाग लिए थे जबकि इनका नेतृत्व जमीदारों ने किया था।
1669 में मथुरा क्षेत्र के जाटों ने गोकुल के नेतृत्व में पहला हिंदू विद्रोह किया और तिलपत के युद्ध में हसन अली खान ने गोकुल को परास्त किया और उसे बंदी बना लिया गया और बाद में गोकुल की हत्या कर दी गई।
सतनामी विद्रोह
1672 में किसानों और मुगलों के बीच मथुरा के पास नारनौल नामक स्थान पर एक युद्ध हुआ जिसका नेतृत्व सतनामी नामक धार्मिक संप्रदाय ने किया था सतनामीयों को मुंडिया भी कहा जाता है।
अफगान विद्रोह
1667 में यूसुफजई कबिले के एक सरदार भागू ने विद्रोह कर दिया था अमिर खान के नेतृत्व में मुगलों द्वारा इस विद्रोह को दबाया गया।
बुंदेलों का विद्रोह
मुगलों और बुंदेलों के बीच पहली बार संघर्ष मधुकर शाह के समय शुरू हुआ जिसे बाद में अन्य बुंदेलो सरदारों ने जारी रखा।
औरंगजेब की पत्नी रबिया दुर्रानी को औरंगाबाद में दफनाया गया था इसके मकबरे को बीबी का मकबरा कहा जाता है |
औरंगजेब का मकबरा उनके बेटे मोहम्मद आजम शाह ने बनवाया।
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