कह हुए भानुकुलभूष्ण वहाँ मौन क्षण भर | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

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कह हुए भानुकुलभूष्ण वहाँ मौन क्षण भर,

बोले विश्वस्त कण्ठ से जाम्बवान, “रघुवर,

विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण,

हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण,

आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर,

तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर।

रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सकता त्रस्त

तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त,

शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन।

छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनन्दन!

तब तक लक्ष्मण हैं महावाहिनी के नायक,

मध्य माग में अंगद, दक्षिण-श्वेत सहायक।

मैं, भल्ल सैन्य, हैं वाम पार्श्व में हनुमान,

नल, नील और छोटे कपिगण, उनके प्रधान।

सुग्रीव, विभीषण, अन्य यथुपति यथासमय

आयेंगे रक्षा हेतु जहाँ भी होगा भय।”

कह हुए भानुकुलभूष्ण

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियों में जाम्बवान द्वारा श्रीराम को यह परामर्श दिए जाने का वर्णन किया गया है कि राम को भी रावण की आराधना का उत्तर आराधना द्वारा ही देना चाहिए।

व्याख्या – कवि कहता है कि उपर्युक्त बातें कहकर सूर्यवंश की शोभा बढ़ाने वाले राम क्षण भर के लिए चुप हो गए। तब विश्वसनीय स्वर में जाम्बवान उनसे कहने लगे कि हे रघुनाथ! मुझे आपके इस प्रकार व्याकुल- विचलित होने का कोई कारण दिखाई नहीं दे रहा है।

हे पुरुषों में सिंह के समान वीर राम! आप भी उस शक्ति को धारण कीजिए जिसको रावण ने अपनी आराधना द्वारा वश में किया है। जहां आप रावण के बल का उत्तर बल द्वारा देते हैं वहीं आपको उसकी आराधना द्वारा प्राप्त शक्ति का उत्तर आराध द्वारा देना चाहिए। हे रघुनाथ, आपको के आराधना और संयम द्वारा शक्ति को वशीभूत करके विजय प्राप्त करनी चाहिए।

आप यह क्यों नहीं सोचते कि जब रावण पापाचारी होकर भी शक्ति को वशीभूत करके आपको त्रस्त करने में समर्थ हुआ है तो आप भी निश्चय ही आराधना द्वारा शक्ति को सिद्ध अर्थात् वशीभूत करके रावण का विनाश कर सकते हैं। हे राम! आप महाशक्ति की नए सिरे से कल्पना कीजिए और उसको पूजा द्वारा सिद्ध करने की चेष्टा कीजिए।

हे रघुनाथ ! जब तक आप महाशक्ति को सिद्ध नहीं कर लेते, तब तक आप युद्ध से विरत हो जाइए – अर्थात् आप युद्ध में भाग मत लीजिए। जब तक आप शक्ति की आराधना करते हैं, लक्ष्मण इस विशाल सेना का सेनापतित्व करते हुए उसके मध्य भाग में रहेंगे। श्वेत शरीर वाले अंगद उनके दाहिने भाग में रहकर उनके सहायक रहेंगे।

मैं भालुओं की सेना का संचालन करूंगा। सेना के बाएं भाग का उत्तरदायित्व हनुमान संभालेंगे। जहां कहीं भी भय का अवसर होगा, वहां नल, नील, अन्य छोटे वानर, उनके सेनापति सुग्रीव, विभीषण तथा अन्य सेनानायक यथावसर आकर सहायता करेंगे।

विशेष

जाम्बवान का यह परामर्श उचित ही है कि यदि रावण पापी होकर भी अपनी आराधना द्वारा शक्ति को वशीभूत कर सकता है तो फिर राम तो उसके और भी अधिक अधिकारी हैं।

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