कह हुए मौन शिव पतन तनय में भर विस्मय | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

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कह हुए मौन शिव, पतन तनय में भर विस्मय

सहसा नभ से अंजनारूप का हुआ उदय।

बोली माता “तुमने रवि को जब लिया निगल

तब नहीं बोध था तुम्हें, रहे बालक केवल,

यह वही भाव कर रहा तुम्हें व्याकुल रह रह।

यह लज्जा की है बात कि माँ रहती सह सह।

यह महाकाश, है जहाँ वास शिव का निर्मल,

पूजते जिन्हें श्रीराम उसे ग्रसने को चल

क्या नहीं कर रहे तुम अनर्थ? सोचो मन में,

क्या दी आज्ञा ऐसी कुछ श्री रधुनन्दन ने?

तुम सेवक हो, छोड़कर धर्म कर रहे कार्य,

क्या असम्भाव्य हो यह राघव के लिये धार्य?”

कपि हुए नम्र, क्षण में माता छवि हुई लीन,

उतरे धीरे धीरे गह प्रभुपद हुए दीन।

कह हुए मौन शिव

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में इस तथ्य का वर्णन किया गया है कि शिव द्वारा समझाए जाने पर शक्ति ने हनुमान की माता अंजनी का रूप धारण करके उनको कैसे शांत किया था।

 

व्याख्या – कवि कहता है शक्ति को यह परामर्श देकर कि तुम अपनी बुद्धि कौशल द्वारा हनुमान को शांत करने का प्रयास करो, शिव चुप हो गए। उसी समय हनुमान यह देखकर चकित रह गए कि आकाश में उनकी माता अंजनी प्रकट होकर उनसे यह कह रही हैं कि (हे पुत्र!) जब तुमने बचपन में सूर्य को निगल लिया था तब तुम अबोध और अज्ञानी बालक थे, (अब तुम व्यस्क हो गए हो) किंतु तुमको अब भी वैसा ही बचपना दिखाने का भाव बार-बार व्याकुल करता रहता है।

अभिप्राय यह है कि बचपन में तो तुम अबोध थे अतः तुम्हारे द्वारा सूर्य को निगल लेना बचपन की करतूत मानकर सहन किया जा सकता था, किंतु अब भी तुम्हारे द्वारा ऐसा प्रयास करना वास्तव में ही निंदनीय है। क्या राम तुम्हारे इस कर्त्तव्य को स्वीकार कर लेंगे? यह सुनकर हनुमान विनम्र हो गए और आकाश से उनकी माता अंजनी की छवि अचानक ही विलीन हो गई। तब हनुमान भी धीरे-धीरे नीचे उतर आए और दीन भावपूर्वक राम के चरणों में बैठ गए।

विशेष

1. महाशक्ति ने ही अंजना (अंजनी) का रूप धारण करके हनुमान को समझाया था कि उनके द्वारा शिव के निवास स्थान आकाश को निगलने का प्रयास करना सर्वथा अनुचित कृत्य है।

2. इन पंक्तियों में तांत्रिक तथा सम्मोहन की विधियों को प्रकाश में लाया गया है। इस समय हनुमान का वस्तुतः अवस्था ऐसी ही थी । इसीलिए शक्ति को अंजना का रूप धारण करना पड़ा जो निश्चय ही महाशक्ति के ऊपर भी हनुमान के पराक्रम की गाथा को व्यक्त करता है।

3. इन पंक्तियों से हनुमान के सरल और भोले-भाले स्वरूप पर भी प्रकाश पड़ता है। कपट-वेशी महाशक्ति को वे वास्तव में ही अपनी जननी अंजना स्वीकार कर लेते हैं।

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