‘ जय कात्यायनी मां, मैया जय कात्यायनी मां…’ नवरात्रि के छठे दिन इस आरती, मंत्र और कथा को पढ़कर मां को करें प्रसन्न
ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की थी। अगर कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो तो मां कात्यायनी की उपासना करनी चाहिए। जानिए इनकी पूजा की विधि, मंत्र, आरती, कथा और महत्व…
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा का विधान है। माता के इस स्वरूप की उपासना करने से अविवाहित लोगों के विवाह में आ रही परेशानियां दूर हो जाती है। इनकी चार भुजाएं हैं, इनका वाहन सिंह है। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की थी। अगर कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो तो मां कात्यायनी की उपासना करनी चाहिए। जानिए इनकी पूजा की विधि, मंत्र, आरती, कथा और महत्व…
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कात्यायनी मां
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मां कात्यायनी की आरती (Maa katyayani ki Aarti) :
जय कात्यायनि माँ, मैया जय कात्यायनि माँ ।
उपमा रहित भवानी, दूँ किसकी उपमा ॥
मैया जय कात्यायनि….
गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हाँ ।
वर-फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हाँ ॥
मैया जय कात्यायनि….
कर शशांक-शेखर तप, महिषासुर भारी ।
शासन कियो सुरन पर, बन अत्याचारी ॥
मैया जय कात्यायनि….
त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुँचे, अच्युत गृह ।
महिषासुर बध हेतू, सुर कीन्हौं आग्रह ॥
मैया जय कात्यायनि….
सुन पुकार देवन मुख, तेज हुआ मुखरित ।
जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित ॥
मैया जय कात्यायनि….
अश्विन कृष्ण-चौथ पर, प्रकटी भवभामिनि ।
पूजे ऋषि कात्यायन, नाम काऽऽत्यायिनि ॥
मैया जय कात्यायनि….
अश्विन शुक्ल-दशी को, महिषासुर मारा ।
नाम पड़ा रणचण्डी, मरणलोक न्यारा ॥
मैया जय कात्यायनि….
दूजे कल्प संहारा, रूप भद्रकाली ।
तीजे कल्प में दुर्गा, मारा बलशाली ॥
मैया जय कात्यायनि….
दीन्हौं पद पार्षद निज, जगतजननि माया ।
देवी सँग महिषासुर, रूप बहुत भाया ॥
मैया जय कात्यायनि….
उमा रमा ब्रह्माणी, सीता श्रीराधा ।
तुम सुर-मुनि मन-मोहनि, हरिये भव-बाधा ॥
मैया जय कात्यायनि….
जयति मङ्गला काली, आद्या भवमोचनि ।
सत्यानन्दस्वरूपणि, महिषासुर-मर्दनि ॥
मैया जय कात्यायनि….
जय-जय अग्निज्वाला, साध्वी भवप्रीता ।
करो हरण दुःख मेरे, भव्या सुपुनीता॥
मैया जय कात्यायनि….
अघहारिणि भवतारिणि, चरण-शरण दीजै ।
हृदय-निवासिनि दुर्गा, कृपा-दृष्टि कीजै ॥
मैया जय कात्यायनि….
ब्रह्मा अक्षर शिवजी, तुमको नित ध्यावै ।
करत ‘अशोक’ नीराजन, वाञ्छितफल पावै॥
मैया जय कात्यायनि….
मां कात्यायनी के ध्यान मंत्र…
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
माता को ऐसे करें प्रसन्न…
नवरात्रि के छठे दिन की देवी हैं मां कात्यायनी इनके पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इसलिए इस दिन प्रसाद में शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा माता को मालपुआ का भोग भी प्रिय है। इनकी पूजा से सुंदर रूप प्राप्त होता है। यह देवी विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करती हैं।
माता के मंत्र…
मान्यता है कि मां कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए 3 से 4 पुष्प लेकर निम्नलिखित मंत्र का जप 108 बार करना फलदायी होता है। मंत्र जप के बाद उन्हें पुष्प अर्पित करना चाहिए। कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां। स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते॥
देवी कात्यायिनी के ध्यान मंत्र…
देवी कात्यायिनी रोग और शोक को दूर करके आयु और समृद्धि भी प्रदान करती हैं। चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातनी।। इस मंत्र से देवी का ध्यान करना चाहिए।
देवी कात्यायनी का स्वरूप…
मां कात्यायनी के स्वरूप की बात की जाए तो इनका शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। मां 4 भुजाधारी और सिंह पर सवार हैं। उन्होंने एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प धारण किया हुआ है। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। यह देवी माता के स्नेह और शक्ति का सम्मिलित रूप हैं।
मां कात्यायनी की कथा…
ऐसी मान्यता है कि देवी के छठे स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा भगवान राम और श्रीकृष्ण ने भी की थी। पौराणिक कथाओं अनुसार ब्रज की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिए देवी के इस स्वरूप की पूजा की थी। देवी भागवत, मार्कण्डेय और स्कंद पुराण में देवी कात्यायनी की कथा मिलती है। पुराणों के अनुसार ऋषि कात्यायन के यहां माता ने जन्म लिया था। ऋषि जानते थे कि, माता ही वरदान के कारण पुत्री रूप में उनके घर प्रकट हुई हैं। ऋषि ने देवी की प्रथम पूजा की और वह देवी कात्यायन ऋषि की पुत्री होने के कारण कात्यायनी कललाईं।
नवरात्रि के छठे दिन क्या होता है?
पूजा पंडालों में नवरात्र की छठी तिथि को शाम के समय गाजे बाजे के साथ माता की डोली निकलती है और जिस बेल के वृक्ष में दो बेल एक साथ लगे होते हैं। उनकी पूजा करके उनको पूजा में आमंत्रित किया जाता है। नवरात्र के सातवें दिन सुबह इस बेल को डोली में बैठाकर लाया जाता है और इसी बेल की पूजा करके देवी के नेत्रों में ज्योति का संचार किया जाता है।
मां कात्यायनी से मिलता है ये आशीर्वाद…
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कात्यायनी की पूजा करने से मन की शक्ति मजबूत होते है और साधक इन्द्रियों को वश में कर सकता है। अविवाहितों को देवी की पूजा करने से अच्छे जीवनसाथी प्राप्त होता है।
मां कात्यायनी की कथा (Devi Katyayani Ki Katha) :
पौराणिक कथा के अनुसार महार्षि कात्यायन ने मां आदिशक्ति की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था। मां का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में ही हुआ था। मां का लालन पोषण कात्यायन ऋषि ने ही किया था। पुराणों के अनुसार जिस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था। उस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई थी। मां ने ऋषि कात्यायन के यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। इसके बाद ऋषि कात्यायन ने उनका तीन दिनों तक पूजन किया था।
मां ने दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत किया था इसके बाद शुम्भ और निशुम्भ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छिन लिया था और नवग्रहों को बंधक बना लिया था। अग्नि और वायु का बल पूरी तरह उन्होंने छीन लिया था। उन दोनों ने देवताओं का अपमान करके उन्हें स्वर्ग से निकल दिया था। इसके बाद सभी देवताओं ने मां की स्तुति की इसके बाद मां ने शुंभ और निशुंभ का भी वध करके देवताओं को इस संकट से मुक्ति दिलाई थी। क्योंकि मां ने देवताओं को वरदान दिया था कि वह संकट के समय में उनकी रक्षा अवश्य करेंगी।
मां कात्यायनी की पूजा विधि (Maa Katyayani Ki Puja Vidhi) :
मां कात्यायनी की पूजा शुरू करने से पहले हाथ में फूल लेकर या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ मंत्र का जाप करें और फूल मां के चरणों में चढ़ा दें। इसके बाद मां को लाल वस्त्र, हल्दी की गांठ, पीले फूल चढ़ाएं और मां की विधिवत पूजा करें। इसके अलावा दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय का पाठ करें। आखिर में मां की कथा सुनें, आरती उतार कर भोग लगाएं। इनके भोग में शहद का भोग लगाना सबसे उत्तम माना गया है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की उपासना की जाती है। सिंह सवारिनी मां ने ही महिषासुर का वध किया था, इसलिए मां की उपासना से अद्भुत शक्ति का संचार होता है और आपमें दुश्मनों से लड़ने की शक्ति आती है। मां जगदम्बे के इस मंत्र का जाप हमेशा फलदायी होता है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।
मां के इसी स्वरूप ने किया था महिषासुर का वध
स्कन्द पुराण में वर्णन है कि मां कात्यायनी परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं। इन्होंने ही देवी पार्वती द्वारा दिए गए सिंह पर सवार होकर महिषासुर का वध किया। वह शक्ति स्वरूपा हैं। मां कात्यायनी के बारे में वर्णन देवीभागवत पुराण और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में भी है। बौद्ध और जैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रंथों, विशेष रूप से कालिका पुराण (दसवीं शताब्दी) में भी मां की महिमा का बखान मिलता है, जिसमें उड़ीसा में देवी कात्यायनी व भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है।
मां कात्यायनी का मंत्र (Maa Katyayani Ka Mantra) :
– चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।
– ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः
– कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
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