केदारनाथ का इतिहास, केदारनाथ मंदिर की स्थापना कब हुई? केदारनाथ में कौन से भगवान हैं? केदारनाथ कब जाएं? केदारनाथ का नाम कैसे पड़ा? केदारनाथ यात्रा कब से कब तक? केदारनाथ कपाट कब खुलेंगे 2021? केदारनाथ कैसे जाये?
गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग। केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड। न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है।
यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है।
मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है। अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है। सभामंडप विशाल एवं भव्य है। उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है। गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।
85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है केदारनाथ मंदिर। इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। मंदिर को 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है। यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। खासकर यह विशालकाय छत कैसे खंभों पर रखी गई। पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। यह मजबूती और तकनीक ही मंदिर को नदी के बीचोबीच खड़े रखने में कामयाब हुई है।
मंदिर का निर्माण इतिहास : पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।
यह मंदिर मौजूदा मंदिर के पीछे सर्वप्रथम पांडवों ने बनवाया था, लेकिन वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। बाद में 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया, जो 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा।
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये मंदिर 12-13वीं शताब्दी का है। इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं, तब भी यह मंदिर मौजूद था। माना जाता है कि एक हजार वर्षों से केदारनाथ पर तीर्थयात्रा जारी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। बाद में अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने इसका जीर्णोद्धार किया था।
मंदिर के कपाट खुलने का समय : दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है।
6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वैसी ही साफ-सफाई मिलती है जैसे छोड़कर गए थे।
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केदारनाथ मंदिर की स्थापना कब हुई?
बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन हाँ ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। मन्दिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है।
केदारनाथ की उत्पत्ति कैसे हुई?
मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन हां ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की। मंदिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगोंमें से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है।
केदारनाथ में कौन से भगवान हैं?
उत्तराखंड में स्थित भगवान शिव के प्रमुख द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक केदारनाथ स्थित है और इसकी मान्यता सभी ज्योतिर्लिंगों में सबसे ज्यादा है। यहां भगवान शिवलिंग की पूजा विग्रह रूप में की जाती है जो बैल की पीठ जैसे त्रिकोणाकार रूप में है। शिवलिंग का यह रहस्य पांडवों से जुड़ा हुआ है।
केदारनाथ कब जाएं?
केदारनाथ कब जाएं? केदारनाथ आने के लिये मई से अक्टूबर के मध्य का समय आदर्श माना जाता है क्योंकि इस दौरान मौसम काफी सुखद रहता है। भारी बर्फबारी के कारण केदारनाथ के मूल निवासी भी सर्दियों में पलायन कर जाते हैं। वैसे भी ये मंदिर केवल गर्मियों में ही खुलता है।
केदारनाथ का नाम कैसे पड़ा?
केदारनाथ नाम कहा से आया इसे लेकर के कई लोगों के अलग-अलग कहानी है, लेकिन जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है वो है कि सतयुग में शासन करने वाले राजा केदार के नाम पर इस स्थान का नाम केदार पड़ा। केदार नाथ हिंदुओं के चार धामों में से एक महत्वपूर्ण धाम है जैसे- बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री।
केदारनाथ कितनी ऊंचाई पर है?
3,553 मी
Kedarnath/Elevation
केदारनाथ यात्रा कब से कब तक?
केदारनाथ धाम के कपाट 17 मई को मेष लग्न में सुबह पांच बजे खोले जाएंगे। इसके बाद छह माह तक देश-विदेश के श्रद्धालु धाम में ही आराध्य के दर्शन व पूजा-अर्चना कर सकेंगे। भगवान बद्री विशाल के कपाट श्रद्धालुओं के लिए 18 मई प्रातः 4:15 पर खोल दिए जाएंगे। गाडू घड़ा यात्रा 29 अप्रैल को सुनिश्चित की गई है।
केदारनाथ का मतलब क्या होता है?
केदारनाथ नाम का मतलब भगवान शिव, शिव का एक विशेषण हिमालय में पूजा के रूप में, माउंट केदार के भगवान होता है।
बद्रीनाथ से केदारनाथ कितने किलोमीटर है?
केदारनाथ धाम 11824 फिट की उँचाई पर है. गौरी कुंड 6500 फिट की उँचाई पर है. लगभग 5000 फिट की उँचाई 14 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ कर पूरी करनी होती है. केदारनाथ से गोपेश्वर होकर बद्रीनाथ 230 किलोमीटर है।
हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी कितनी है?
इसी कारण नदी के दूसरे तरफ से रास्ता बनाया गया जो 7 किलोमीटर के बदले 9 किलोमीटर का हो गया और कुल दूरी 14 किलोमीटर से बढ़कर 16 किलोमीटर हो गयी। केदारनाथ की यात्रा सही मायने में हरिद्वार या ऋषिकेश से आरंभ होती है। हरिद्वार देश के सभी बड़े और प्रमुख शहरो से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। हरिद्वार तक आप ट्रेन से आ सकते है।
ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी कितनी है?
हवाई मार्ग: जौलीग्रांट नजदीकी हवाई अड्डा है जहां से केदारनाथ 239 किलोमीटर है। रेल मार्ग: हरिद्वार और ऋषिकेश तक रेल से जा सकते हैं। ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी 229 किमी है। सड़क मार्ग: हरिद्वार-ऋषिकेश से बस या टैक्सी लेकर जा सकते हैं।
बद्रीनाथ के कपाट कब बंद होते हैं?
बदरीनाथ के कपाट 19 नवंबर को होंगे बंद, चारधाम यात्रा का भी होगा समापन बृहस्पतिवार 19 नवंबर को अपराह्न तीन बजकर 35 मिनट पर मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाएंगे। चार धामों में से केवल बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद करने की ही तिथि निकाली जाती है और अन्य तीनों धामों की तिथि दिवाली के त्योहार से निर्धारित होती है।
देहरादून से केदारनाथ की दूरी कितनी है?
केदारनाथ हवाई जहाज (Aeroplan) से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। देहरादून कैदारनाथ से 239 कि. मी दूर है।।
केदारनाथ कपाट कब खुलेंगे 2021?
Kedarnath Kapat Opening Date 2021: इस तारीख से खुलेंगे केदारनाथ धाम के कपाट, जानिए कब हो जाते हैं बंद विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम के कपाट 17 मई को भक्तों के लिए खोले जाएंगे।
दिल्ली से केदारनाथ कैसे जाये?
दिल्ली से गौरीकुंड की दूरी 468 किलोमीटर और गौरीकुंड से केदारनाथ धाम के लिए करीब 21 किलोमीटर की पैदल यात्रा है। स्थानीय रोडवेज डिपो के सहायक महाप्रबंधक नेतराम ने बताया कि 166 व्हील बेस की नई बस सेवा रात आठ बजे दिल्ली से चलकर तड़के चार बजे ऋषिकेश पहुंचेगी। यहां कुछ देर रुकने के बाद गौरीकुंड के लिए रवाना होगी।
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