गोदान में वर्णित जाति-सामंती व्यवस्था टिप्पणी दीजिए ।

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गोदान में वर्णित जाति-सामंती :— जाति- सामन्ती व्यवस्था संस्थागत कठोर पर चलती है। उसमें एकता के सूत्र नहीं है, विभाजन ही विभाजन है। साधन-सम्पन्न और तिकड़मी आदमियों की रहती है। जमीन ही जमींदार के अधीन है और सारा गाँव उसके आधीन है।

 

काश्तकार आसामी उसके चंगुल में हैं। लगान अलावा वह कोई भी नजराना या तावान वसूल कर सकता है। वह संरक्षक होने का स्वांग रचता है, मगर वास्तव में शोषक होता है। सरकारी हुक्काम से ईनाम- इकराम का सम्बन्ध रखता है। चुनाव में भागीदारी भी करता है। ‘राष्ट्रीय भी है।

गोदान में वर्णित जाति-सामंती

गाँव में रहने वाले ताक में लगे रहते हैं। न रक्षा करती है। का कोई मतलब जो लोग- पटवारी, कारिंदा, पंडित, महाजन-सब छोटे किसान की मजबूरियों से फायदा उठाने की द्वारा ग्रामीण संस्कृति परिभाषित होती है। गाँव की सिविल सोसायटी होरी को न समर्थन देती है, को सहारा देते हैं, उन्हें तरह-तरह से सताया जाता है। संस्थागत नियमों के आगे मानवीय मूल्यों । ‘गोदान’ ग्रामीण जीवन की विफलता की भी कहानी है।

आज अगर कोई होरी के गाँव बेलारी का दौरा करे माफिया के अधीन है। ग्रामीण सिविल सोसायटी के असफल होने का गुमान प्रेमचन्द को था। तो पायेगा कि सारा गाँव गुटबाजी और । सुन्दरता के सारे भ्रम’ गोदान’ उपन्यास तोड़ देता है। परम्परागत नियमों और मूल्यों का आडम्बर उजागर करता है। किसी हद तक, इस व्यवस्था के प्रति विद्रोह के अंकुर भी उगाता है।

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