चढ़ा असाढ़ गंगन घन गाजा। कविता की संदर्भ सहित व्याख्या। मलिक मुहम्मद जायसी
चढ़ा असाढ़ गंगन घन गाजा | साजा बिरह दुंद दल बाजा। 1।
धूम स्याम धौरे घन धाए । सेत धुजा बगु पांति देखाए । 2 ।
खरग बीज चमके चहुं ओरा | बुंद बान बरिसै घन घोरा | 3 |
चढ़ा असाढ़ गंगन घन गाजा
अद्रा लाग बीज भुइं लेई | मोहि पिय बिनु को आदर देई | 4 |
औने घटा आई चहुं फेरी। कंत उबारु मदन हौं घेरी। 5 ।
दादुर मोर कोकिला पीऊ । करहिं बेझ घट रहै न जीऊ। 6 ।
पुख नक्षत्र सिर ऊपर आवा। हौं बिनु नांह मंदिर को छावा | 7 |
जिन्ह घर कंता ते सुखी तिन्ह गारौ तिन्ह गर्ब । कंत पियारा बाहिरें हम सुख भूला सर्ब ||
चढ़ा असाढ़ गंगन घन गाजा
प्रसंग : यह पद मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पदमावत’ के ‘नागमती वियोग खण्ड’ से लिया गया है। नागमती की विरहावस्था का वर्णन किया गया है।
व्याख्या : आसाढ़ का महीना आया तो आकाश में बादलों की गर्जन होने लगी, जो नागमती को ऐसी प्रतीत हुई कि विरह ने युद्ध की तैयारी की है और उसकी सेना ने कूच का नगाड़ा बजाया है। धुमैले, काले और भूरे रंग के बादल आकाश में दौड़ने लगे और उनमें उड़ती हुई बगुलों की पंक्तियाँ उनकी ध्वजाओं जैसी प्रतीत होने लगीं। खड्ग रूपी बिजली चारों ओर चमकने लगी और वर्षा की बूंद रूपी बाणों की घनघोर वर्षा होने लगी। आर्द्रा नक्षत्र के लगते ही बिजली चमककर भूमि को छूने लगी।
नागमती सोचने लगी कि ऐसे विरहोत्तेजक वातावरण में प्रियतम की अनुपस्थिति में मुझको कौन समादर देगा- अर्थात् मेरी कुछ भी पूछ नहीं रही है जबकि पति के यहाँ होने पर ऐसे उन्मादक वातावरण में अवश्य ही काम के लिए मेरी मनुहार करते। चारों ओर उमड़ी हुई घटाएं पृथ्वी पर झुकी-सी प्रतीत होती हैं, जिन्हें देखकर मेरी कामोत्तेजना और भी अधिक बढ़ उठी है। हे प्राणनाथ! आप शीघ्र ही आकर मेरी रक्षा कीजिए क्योंकि मुझको कामदेव की सेना ने घेरा हुआ है।
मेंढ़क, मयूर और कोयल के शब्द तो मुझे ऐसे प्रतीत होते हैं मानो मेरे हृदय को बेधे डाल रहे हैं और मेरे प्राण निकलेरहे हैं। अब तो पुष्प नक्षत्र सिर पर आ गया है जो इस बात का द्योतक है। – और भी अधिक वर्षा होगी। मेरे तो पति भी यहाँ नहीं हैं अतः मेरे भवन कौन छवाएगा। चढ़ा असाढ़ गंगन घन गाजा
स्व-प्रियतम की स्मृति में निमग्न होते हुए नागमती रुदन करने लगी कि हे प्राणेश्वर जिन स्त्रियों के पति उनके घर में हैं वे गर्व और गौरव की भावना से अभिभूत हैं, जबकि आपके परदेश में होने के कारण मेरा पति- प्रेम संबंधी गर्व और गौरव तो मिट्टी में मिल ही गया है, मैं अपने समस्त प्रकार के सुखों को भी भूल चुकी हूँ। चढ़ा असाढ़ गंगन घन गाजा चढ़ा असाढ़ गंगन घन गाजा
विशेष
1. जायसी के वियोग-वर्णन की यह विशेषता ही कही जाएगी कि उनकी नागमती अपने रानीपन को भूलकर किसी सामान्य नारी की भाँति यह कहकर विषादमग्न हो उठती है कि इस घोर वर्षा- काल में पति की अनुपस्थिति में मेरे भवन पर कौन छप्पर डालेगा।
2. प्रस्तुत पद में सांगरूपक अलंकार है। ”
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