जा दिन तें वह नन्द को छोहरो । कविता की संदर्भ सहित व्याख्या। रसखान ।
जा दिन तें वह नन्द को छोहरो या बन धेनु चराइ गयो है।
मीठहि ताननि गोधन गावत बैन बजाइ रिझाइ गयो है।
वा दिन सों कछु टोनों सों के रसखानि हिये में समाइ गयो है।
कोउ न काहु की कानि करै, सिगरो ब्रज वीर बिकाइ गयो है।।
जा दिन तें वह
संदर्भ : उपर्युक्त सवैया रसखान कृत “सुजान रसखान” से लिया गया है। इसमें रसखान ने श्रीकृष्ण की गोचारण-लीला और मुरली-माधुरी से अभिभूत ब्रज की गोपियों की प्रेम-दशा का वर्णन किया है।
व्याख्या : कोई गोपी कहती है कि जिस दिन से नन्द का दुलारा छोरा (पुत्र) इस वन में (वृन्दावन) अपनी गायें चराकर गया, अपनी मीठी तानों से गोचारण के गीत सुनाकर गया और मुरली बजाकर लोगों को रसमग्न कर गया, उसी दिन से वह सबके हृदय में ऐसे समा गया है जैसे उसने लोगों पर कोई जादू कर दिया हो। सब उसी की बात करते हैं, उसी को देखना चाहते हैं और उसी की मुरली-ध्वनि सुनना चाहते हैं। उसके अलावा किसी को और कुछ अच्छा ही नहीं लगता है। कोई किसी का ज़रा भी खयाल नहीं करता, लोगों ने कुल-मर्यादा छोड़ दी है। हे सखि! ऐसा लगता है कि सारा ब्रज उसी के हाथ बिक गया है।
विशेष : 1) इसमें कृष्ण के प्रति गोपियों की उस प्रीति-दशा का चित्रण हुआ है जो कृष्ण की गोचारण-लीला और मुरली-माधुरी से पैदा हुई। A a a a a a a a a s s s s a a a a a a
2) यह गोपियों की प्रेम-विह्वल दशा का आत्माख्यान है।
3) अंतिम दोनों पंक्तियों की भाषा मुहावरेदार हो जाने के कारण अधिक प्रभावशाली हो गयी है। A a a a a a a a a a a a a
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