जी हाँ हुजूर मैं गीत बेचता हूँ। कविता की सन्दर्भ सहित व्याख्या | भवानी प्रसाद मिश्र | - Rajasthan Result

जी हाँ हुजूर मैं गीत बेचता हूँ। कविता की सन्दर्भ सहित व्याख्या | भवानी प्रसाद मिश्र |

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जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।

मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,

मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ।

जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,

बेकाम नहीं हैं, काम बताऊँगा;

कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैने,

कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने यह गीत सख्त सरदर्द भुलायेगा;

यह गीत पिया को पास बुलायेगा।

जी हाँ, हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ

जी हाँ हुजूर

प्रसंग : “गीत.फरोश” कविता भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य व्यक्तित्व को परिभाषित करती है। जीवन की जटिल स्थितियों के कारण कवि कर्म कठिन होता गया। इतना ही नहीं, पूंजीवादी-व्यवसायी युग में हर चीज बिकाऊ हो गई। तीखे व्यंग्य का यह कविता उदाहरण है इस कविता में महत्वपूर्ण यह स्थिति है कि कवि को कैसे जीने के लिए गीत बेचने वाला बन जाना पड़ा। ऐसी हालत के अभिव्यक्त करने के कारण यह कविता कला और समाज दोनों पर व्यंग्य है।

व्याख्या : कवि कहता है कि स्थिति-परिस्थिति से लाचार होकर मुझे गीत बेचने वाला बनना पड़ा है। मैं तरह-तरह के अनेक दिलचस्प भावों, कार्यों को करने वाले गीत बेचता हूँ। मैं हर किस्म के हर रंग के गीत बेचता हूँ। आप इन गीतों को छांटकर पसंद करें, फिर मैं कीमत मागूंगा। इनका दाम अधिक नहीं लूंगा। वे गीत निरर्थक नहीं हैं, इनका सार्थक होना भी बताऊँगा। मैंने कुछ गीत आनंद और जीवन के उल्लास में लिखे हैं और कुछ गीत मुझे निराशा, अवसाद, पराजय की मनःस्थिति में लिखने पड़े हैं।

किन्तु मेरे गीतों का उद्देश्य है मानव की भीतरी तकलीफों को कम करना, तनाव को कम करना, मसलन सिर दर्द भगाकर चैन देना और गीतों से प्रियतम को प्रिया के पास लाना रहा जाहिरा तौर पर आभात कोटाका भात की स्थिति लिए मजाक किया अतः गीतों कवि कहता है कि स्थिति-परिस्थिति से लाचार होकर मुझे गीत बेचने वाला बनना पड़ा है। मैं तरह-तरह के अनेक दिलचस्प भावों, कार्यों को करने वाले गीत बेचता हूँ। मैं हर किस्म के हर रंग के गीत बेचता हूँ। आप इन गीतों को छांटकर पसंद करें, फिर मैं कीमत मागूंगा। इनका दाम अधिक नहीं लूँगा।

वे गीत निरर्थक नहीं हैं, इनका सार्थक होना भी बताऊँगा। मैंने कुछ गीत आनंद और जीवन के उल्लास में लिखे हैं और कुछ गीत मुझे निराशा, अवसाद, पराजय की मनःस्थिति में लिखने पड़े हैं। किन्तु मेरे गीतों का उद्देश्य है मानव की भीतरी तकलीफों को कम करना, तनाव को कम करना, मसलन सिर दर्द भगाकर चैन देना और गीतों से प्रियतम को प्रिया के पास लाना रहा है। जाहिर तौर पर मैने अभाव को हटाकर भाव की स्थिति के लिए सृजन कर्म किया है। अतः मेरे गीतों का कार्य जन जीवन की लोकमंगल की ओर ले जाना है।

विशेष

1. “गीत फरोश” एक ऐसी प्रसिद्ध कविता है जिसने कवि को अपार लोकप्रियता प्रदान की है।

2.  इस कविता ने गंभीर बात को निहायत सरल-सहज ढंग से अभिव्यक्त करने का एक नया ढंग ईजाद किया है। यह एक नया प्रयोग है काव्य तकनीक और कविमर्म की परख का । इस शैली की हिंदी में यह अकेली ही कविता है।

3. इस कविता का व्यंग्य कवि की “टोन” या लहजे में है और गीत बेचने वाले की लाचारी का कारण भी दिया गया है।

4. गरीबी से तंग आकर कुछ दिनों तक मिश्र जी ने पूना फिल्म इंस्टीट्यूट के लिए गीत लिखकर बेचे थे। उन्हें यह स्थिति असहनीय लगती थी। इस कविता में उसी व्यथा का यथार्थ चित्र है।

5. नयी कविता पर भाव एवं भाषा की क्लिष्टता का दोष लगाया जाता है पर इस कविता के भावों को व्यक्त करने वाले प्रतीक बिंब “मस्ती”, “पस्ती” एकदम स्पष्ट एवं सरल हैं।

6. काव्य का प्रयोजन है – आनन्द और भाव-परिष्कार, आत्मविस्तार । कवि लोक-संवेदना से अपनी व्यथा को आत्म-प्रसार की ओर मोड़ देता है। कविता की इस विश्व-दृष्टि ने उसे विशिष्ट बनाया है।

7.  यह व्यंग्य भी है कि जब कला बेचनी पड़े और उसके लिए गीतकार को झटकना पड़े तो समझना चाहिए कि संस्कृति खतरे में है।

8. यह कविता भाव और लय के कारण पढ़ने और गाने का मधुर सौन्दर्य प्रस्तुत करती है तथा काव्य-भाषा की सहज सर्जनात्मकता का ‘मॉडल’ भी सामने लाती है।

9. कविता तनाव को ऊर्जा से जन्मती है, वह कवि के मानस का मूल्यवान अंश है। उसे बेचने में कष्ट होता है, क्योंकि वह अनुभव की कन्या है।

 

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