देखिधौं आरसी लै बलि नेकु लसी है गुराई | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
देखिधौं आरसी लै बलि नेकु लसी है गुराई मैं कैसी ललाई ।
मानो उदोत्त दिवाकर की दुति पूरन चंदहिं भटैंन आई।
फूलत कंज क्रमोद लखें घनआनन्द रूप अनूप निकाई |
तो मुख लाल गुलालहि लाय के सौतनि के हिये होरी लगाई ॥
देखिधौं आरसी लै बलि
प्रसंग : यह पद्य कविवर घनानन्द की रचना ‘सुजानहित’ से लिया गया है। कवि घनानन्द स्वभाव से ही प्रेमी जीव थे। होली के गुलाल में रंगने से नायिका के मुख की शोभा और बढ़ गई है। उसी शोभा और प्रभाव का वर्णन इस पद्म में करते हुए कवि कह रहा है
व्याख्या : मैं इस रूप सौंदर्य पर बलिहारी जाऊँ, जरा आरसी (दर्पण) में अपने मुख को तो देखो। तुम्हारे गोरे-गोरे मुख पर गुलाल की लाली कितनी फब और जंच रही है। अर्थात् इससे तेरे मुख का सौंदर्य और बढ़ गया है। उसे देखकर लगता है, मानो उदयकाल का लाल सूर्य पूर्णमासी के चन्द्रमा से भेंट करने आया हो । अर्थात् नायिका का मुख तो पूर्णमासी के चन्द्रमा के समाना है
जबकि उस पर लगे गुलाल की लालिमा प्रातः उदय हो रहे सूर्य की शोभा की झलक प्रदान कर रही है। इस अनुपम रूप की सुन्दरता को देखकर सुबह खिलने वाले कमल और चांदनी रातों में खिलने वाली कुमुदनियाँ एक साथ खिलने लगी हैं। अर्थात् कमलों को सूर्योदय का भ्रम हो गया है, तो कुमुदों को चन्द्रोदय का।
इस प्रकार गुलाल की लालिमा से भरा नायिका का मुख दिन और रात दोनों की शोभा का आभास प्रदान कर रहा है। सखी कहती है हे नायिका तुमने अपने मुख पर गुलाल की लालिमा लगाकर केवल रात-दिन का भ्रम ही उत्पन्न नहीं कर दिया, बल्कि अपनी सौत के हृदय में होली भी जला दी है। अर्थात् तुम्हारी सुन्दरता देखकर सौत ईर्ष्या की आग में जलकर राख होने लगी है।
विशेष
1. मध्यकालीन नायिका के मुख सौंदर्य का होली के गुलाल के माध्यम से बड़ा ही रसीला और प्रभावी वर्णन किया गया है।
2. गोरे मुख पर गुलाल की लाली के कारण रात दिन का आभास कराना कवि की कल्पनाप्रवण कलात्मकता का द्योतक है।
3. एक ही स्थान पर, एक साथ कमल- कुमुद का खिलना चमत्कारवर्द्धक है।
4. पद्य में उत्प्रेक्षा, भ्रांतिमय और अनुप्रास आदि अलंकारों का बड़ा ही सजीव एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
5. भाषा माधुर्य गुण से पूर्ण, चित्रात्म एवं संगीतमयी है।
यह भी पढ़े 👇
- रस – आरस भोय उठी कछु सोय लगी लसैं | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
- रूप धरे धुनि लौं घनआनन्द सूझासि बूझ की | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
- देखिधौं आरसी लै बलि नेकु लसी है गुराई | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
Recent Comments