दोनों ओर प्रेम पलता है कविता की व्याख्या कीजिए ‘श्री मैथिलीशरण गुप्त’
दोनों ओर प्रेम पलता है :- श्री मैथिलीशरण गुप्त का महाकाव्य ‘साकेत’ उनकी प्रसिद्ध रचना है। गुप्तजी ने साकेत में रामकथा को नवीन दृष्टि से प्रस्तुत किया है। साकेत के नवम सर्ग में उन्होंने लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला की बिरहा जनने पीड़ा को गीत आत्मक अभिव्यक्ति दी है। इस र की रचना उन्होंने “महावीर प्रसाद द्विवेदी” के एक लेख कवियों की ‘उर्मिला विषयक उदासीनता’ से प्रेरित होकर की है हम यहां वचन के लिए इस सर के कुछ अंश नीचे दे रहे हैं।
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दोनों ओर प्रेम पलता है
सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है!
सीस हिलाकर दीपक कहता-
‘बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’
पर पतंग पड़ कर ही रहता
कितनी विह्वलता है!
दोनों ओर प्रेम पलता है।
बचकर हाय! पतंग मरे क्या?
प्रणय छोड़ कर प्राण धरे क्या?
जले नही तो मरा करे क्या?
क्या यह असफलता है!
दोनों ओर प्रेम पलता है।
कहता है पतंग मन मारे-
‘तुम महान, मैं लघु, पर प्यारे,
क्या न मरण भी हाथ हमारे?
शरण किसे छलता है?’
दोनों ओर प्रेम पलता है।
दीपक के जलनें में आली,
फिर भी है जीवन की लाली।
किन्तु पतंग-भाग्य-लिपि काली,
किसका वश चलता है?
दोनों ओर प्रेम पलता है।
जगती वणिग्वृत्ति है रखती,
उसे चाहती जिससे चखती;
काम नहीं, परिणाम निरखती।
मुझको ही खलता है।
दोनों ओर प्रेम पलता है।
दोनों ओर प्रेम पलता है का भाव पक्ष
मैथिलीशरण गुप्त ने जब काव्य रचना आरंभ की तब भारत पराधीन था गुप्त जी की पहली काव्य पुस्तक ‘रंग में भंग’ 1909 में प्रकाशित हुई थी। उस समय स्वतंत्रता संघर्ष में जनता की व्यापक भागीदारी बढ़ रही थी। मैथिलीशरण गुप्त पर भी इस संघर्ष का प्रभाव पड़ा उन्होंने 1912 में राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर भारत भारती जैसी अमर रचना की। यह कृति सिर्फ राष्ट्रीय भावनाओं से प्रेरित होकर ही नहीं लिखी गई थी बल्कि इसके माध्यम से भी जनता में अपने देश उसकी संस्कृति और महान परंपरा के प्रति गौरव की भावना जगाना चाहते थे। उनमें वर्तमान की दुर्दशा का भी बहुत था इसलिए उन्होंने भारत भारती में जहां अतीत का गौरव गान किया वहीं वर्तमान दुर्दशा का चित्र खींचते हुए उस से मुक्त होने का आह्वान भी किया गया था।
मैथिलीशरण गुप्त यद्यपि धर्म परायण व्यक्ति थे लेकिन उनका दृष्टिकोण मानवतावाद था। उन्होंने प्रबंध काव्य की रचना के लिए भारतीय इतिहास और पुराणों से कथाएं और चरित्र लिए लेकिन उन्हें वर्तमान के मानवीय धरातल पर ही प्रस्तुत किया। मानवीय दृष्टिकोण के कारण ही उन्होंने उर्मिला जो कि लक्ष्मण की पत्नी थी और यशोधरा बुध की पत्नी थी की व्यथा को वाणी दी नारी के प्रति उनमें विशेष सहानुभूति की भावना थी।
श्री मैथिलीशरण गुप्त जी आदर्शवादी थे उनका आशीर्वाद सामाजिक और पारिवारिक संबंधों में समानता और त्याग की भावना पर टिका हुआ था। उन्होंने धार्मिक असहिष्णुता और सांप्रदायिकता का सदैव विरोध किया। आस्था वादी होकर भी उनकी दृष्टि इस लोक पर ही टिकी रही व्यतीत की महान उपलब्धियों के प्रशंसक थे साथ ही भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों के आलोचक भी थे अपने काव्य की इन विशेषताओं के कारण ही वे राष्ट्र कवि के रूप में मान्य हुए।
‘साकेत’ उनकी प्रख्यात रचना थी यद्यपि साकेत का आधार भी रामकथा है लेकिन उन्होंने रामकथा के केवल उन्हीं प्रसंगों को लिया है जिनमें मानवीय संबंधों का उज्जवल पक्ष उजागर हो। उन्होंने राम के मानव को साकेत में प्रतिष्ठित किया है राम रावण के संघर्ष की कथा की बजाय ‘साकेत’ में रामकथा का पारिवारिक रूप अधिक उपरा है और यहां पर उनकी दृष्टि ऐसी पारिवारिक मर्यादा के पक्ष में रही है।
जहां नारी के सम्मान की पूरी रक्षा हो और उसे किसी भी तरह से लांच किया अधिकार विहीन ने बनाया जाए। उर्मिला के त्याग को इसलिए वे सीता से बड़ा मानते हैं क्योंकि वह परिवार के लिए अपने वैयक्तिक सुखों का परित्याग कर देती है। साकेत में गुप्त जी ने ‘लोकोन्मुख’ जीवन के चित्र प्रस्तुत किए हैं।
संरचना शिल्प
मैथिलीशरण गुप्त नहीं खड़ी बोली को उस समय काव्य भाषा के रूप में प्रयुक्त किया जब हिंदी कविता में ब्रजभाषा का ही जोर था गुप्त जी का प्रमुख योगदान यह था कि उन्होंने गद्य की भाषा को काव्य की भाषा बनाने का सफल प्रयास किया। हिंदी की सहजता और स्वाभाविक उनकी काव्य भाषा की प्रमुख विशेषता है यद्यपि कहीं-कहीं उनमें गद्दात्मकथा की झलक दिखाई दे जाती है। उन्होंने बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है किंतु तत्सम शब्दों का प्रयोग भी पर्याप्त है उनका मुख्य झुकाव वस्तु के मूर्त चित्रण की और रहा है। द्विवेदी युगीन व्यवहारिक भाषा के दबाव के कारण उनकी भाषा में वह कलात्मक सौंदर्य नहीं दिखाई देता जो बाद में छायावादी काव्य की विशेषता बनी।
गुप्त जी की प्रवृत्ति प्रबंध काव्य की और रही है साकेत और यशोधरा महा काव्यात्मक प्रबंध काव्य है। लेकिन महाकाव्य में जो उदारता संघर्ष और विरोधी नायक होता है वह उनके महाकाव्य में नहीं है प्रबंध काव्य में भी उनकी प्रवृत्ति गीत आत्मक ताकि और रही है। उनकी रुचि जीवन के सहज और भाव प्रवण प्रसंगों की और ज्यादा रही है ऐसे प्रसंगों में जीवन संघर्ष का गहन गांभीर्य कम होता है| जो महाकाव्यात्माकथा के प्रतिकूल है गुप्तजी ने काव्य में उन्हीं छंदों का प्रयोग किया जो खड़ी बोली हिंदी की प्रकृति के अनुकूल थे। उनके काव्य में रीति वादी कवियों की तरह अलंकारों के प्रति विशेष आग्रह नहीं है नहीं उन्होंने काव्य में चमत्कार पैदा करने की कोशिश की है। इस दृष्टि से भी उनके काव्य में सहजता दिखाई देती है ।
प्रतिपाद्य
मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रवादी कवि थे उनमें साहित्य रचना के पीछे राष्ट्रीय उत्थान की भावना प्रेरक रूप में मौजूद रही है। उन्होंने मध्ययुगीन काव्य चेतना से मुक्त होते हुए कविता के केंद्र में धर्म की बजाय मानव को स्थापित किया इसी मानव की सांस्कृतिक चेतना को वे काव्य में उतारना चाहते थे। इस दृष्टि से भारतीय संस्कृति उनके लिए आधार भूमि का काम करती है रही है भारतीय इतिहास और पुराण कथाओं के विभिन्न चरित्रों के माध्यम से मानवीय संबंध और मूल्यों को उन्होंने अपनी कविता में प्रस्तुत किया यही कारण है कि उन्होंने राम जैसे चरित्र को भी मानवीय धरातल पर उतारकर सहज मानव संबंधों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया। उन्होंने अतीत को अपने काव्य का आधार बनाया लेकिन अपनी दृष्टि को अतीतोन्मुखी नहीं बनने दिया। उन्हें भारत के उज्जवल भविष्य पर गहरा विश्वास था यह विश्वास उनकी कविता में बार-बार व्यक्त हुआ है अतः नवजागरण के संदर्भ में राष्ट्रीय चेतना का उत्थान उनकी कविता का प्रमुख प्रतिपाद्य माना जा सकता है।
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