धूरि भरे अति शोभित स्याम तू | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | रसखान | - Rajasthan Result

धूरि भरे अति शोभित स्याम तू | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | रसखान |

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धूरि भरे अति शोभित स्याम तू तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी |

खेलत खात फिरें अंगना पग पैजनी बाजति पीरी कछोटी ||

वा छवि को रसखानि बिलोकत वारत काम-कला निज कोटी |

काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयो माखन रोटी ||

धूरि भरे अति शोभित

संदर्भ : यह छंद भी रसखान की प्रसिद्ध रचनासुजान-रसखान से ही उद्धृत है। इसमें रसखान ने एक ओर श्रीकृष्ण की बालछवि का वर्णन किया है, दूसरी ओर कौए के द्वारा उनके हाथ से मक्खन लगी रोटी छीनने को ‘कौए का भाग्य’ कहकर उसकी सराहना की है और प्रकारान्तर से अपनी भाव-विह्वलता की अभिव्यक्ति भी की है।

 

व्याख्या : रसखान ने इस छंद में गोपी के माध्यम से श्रीकृष्ण के बाल-सौन्दर्य का वर्णन किया है। गोपी कृष्ण को आंगन में खेलते हुए देखकर आई है। वह अपनी सखि से कहती है कि श्रीकृष्ण का धूल-धूसरित (धूल में सना हुआ) शरीर बहुत सुन्दर लग रहा है।

उनके सिर पर उसी तरह सुन्दर चोटी गुंथी हुई है। वे खेलते-खाते हुए आंगन में घूम रहे हैं। वे पीली कछनी (कच्छी) पहने हुए हैं। उनके पैरों में घुघरुदार कड़े बज रहे हैं। उनके सौंदर्य को देखकर कामदेव अपनी करोड़ों कलाओं को न्योछावर कर देता है अर्थात् उनके इस बाल-सौन्दर्य और क्रीड़ाओं के समक्ष कामदेव का सौन्दर्य और क्रीड़ा-विलास फीका पड़ जाता है।

अंत में वह गोपी कहती है-हे सखि! वह कौआ बड़ा भाग्यशाली है जो भगवान् के हाथ से मक्खन लगी रोटी लेकर उड़ गया। अभिप्राय यह है कि वह कौआ धन्य है जिसे भगवान के हाथ की रोटी खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

कहा जाता है कि रसखान ने यह छंद रूपारण्य स्वामी से काकभुशुण्डि के द्वारा कौवे के रूप में श्री राम के हाथ से पुए को छीनने का प्रसंग सुनने के बाद रचा था।

विशेष:

1) इसमें श्रीकृष्ण के बाल सौन्दर्य की काव्यात्मक अभिव्यक्ति हुई है।

2) तीसरी पंक्ति में प्रतीक अलंकार का बड़ा स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।

3) भक्ति भावना की दृष्टि से अंतिम पंक्ति का बड़ा महत्व है। भगवान को देखने और उनके सान्निध्य-सुख को प्राप्त करने में ही भक्त अपने जीवन की सार्थकता समझता है। सूरदास ने भी ‘सोभित कर नवनीत लिये’ वाले पद के अंत में लिखा है-

‘धन्य सूर एकौ पल वा सुख का सत कल्प जिये।’ अर्थात धूल-धूसरित, गोरोचन तिलक लगाये और मक्खन खाते हुए श्रीकृष्ण के बालरूप को यदि एक पल के लिए भी देखने का सौभाध्य मिल जाये तो सैकड़ों वर्षों तक जीने का कोई मतलब नहीं है।

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