नगेन्द्र की जीवनी – भाषा शैली, आलोचना दृष्टि, ग्रंथावली
नगेन्द्र की जीवनी :— छायावादी कविता को स्थापित करने वाले, पश्चिमी और भारतीय कविता को समन्वित करने वाले सेतु, साधारणीकरण के व्याख्याता और महान रसवादी आलोचक डॉ. नगेंद्र का जन्म 9 मार्च 1915 ई. को अलीगढ़ के ‘अतरौली’ ग्राम में एक संपन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता पंडित राजेंद्र जी सुधारवादी आर्यसमाजी व प्रसिद्ध विचारक थे।
नगेन्द्र की जीवनी की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा पंडित प्रसादीलाल चूड़ामणि और वीरेंद्र शास्त्री की देखरेख में हुई, जिनकी जीवन दृष्टि का प्रभाव डॉ. नगेंद्र के जीवन पर भी दिखता है। डॉ. नगेंद्र की प्राईमरी शिक्षा अतरौली ग्राम से तथा हाईस्कूल की परीक्षा उन्होंने 1930 ई. में एंग्लो वैदिक हाईस्कूल, अनूपशहर से उत्तीर्ण की। इंटरमीडियट उन्होंने चंदौसी से तथा बी.ए. और एम.ए. की परीक्षा अंग्रेजी में सैंट जॉन्स कॉलेज, आगरा से उत्तीर्ण की।
नगेन्द्र की जीवनी
1937 ई. में इनकी नियुक्ति अंग्रेजी अध्यापक के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ कॉमर्स में हुई। अंग्रेजी के साथ-साथ उनका रूझान हिंदी साहित्य की ओर भी था। उन्होंने 1937 ई. में ही एम.ए. (हिंदी) की उपाधि नागपुर विश्वविद्यालय से और डी.लिट. की उपाधि हिंदी में ही 1947 ई. में आगरा विश्वविद्यालय से प्राप्त की। इनके शोध का विषय ‘रीतिकालीन पृष्ठभूमि में देव का स्थान’ था।
1947 ई. में वे अध्ययन कार्य छोड़ आकाशवाणी में आ गए, तत्पश्चात पुनः 1952 ई. में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने और 1970 ई. तक हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 50 के दशक में हिंदी साहित्य का केंद्र प्रयाग व काशी होता था।
डॉ. नगेंद्र ने अपने अथक परिश्रम व साहित्य सेवा के बल पर साहित्य का केंद्र दिल्ली विश्वविद्यालय को बनाया। इसी समय उन्होंने डॉ. महेंद्र कुमार, डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी, डॉ. रामदरश मिश्र, डॉ. नित्यानंद तिवारी, और मन्नू भंडारी जैसे कर्मठ रचनाकारों को दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थान दिया।
नगेन्द्र के जीवन पर राजनैतिक रूप से पंडित जवाहरलाल नेहरू और साहित्यिक दृष्टि से बाबू गुलाबराय का गहरा प्रभाव था। आजीवन साहित्य सेवा करने वाले डॉ. नगेंद्र का देहावसान 28 अक्टूबर 1999 ई. हो गया।
मर्मभेदी आलोचक एवं कुशल निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध डॉ. नगेंद्र के साहित्यिक जीवन का प्रारंभ भी आचार्य शुक्ल की तरह ही एक कोमल, भावुक और कल्पनाशील कवि के रूप में हुआ था। इनका पहला काव्यसंग्रह 1937 ई. में ‘बनबाला’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। तबसे लेकर जीवनपर्यन्त तक इन्होंने साहित्य सेवा की।
उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:—
सुमित्रनंदन पंत (1938 ई.), साकेत-एक अध्ययन (1939 ई.), नाटक (1940 ई.) विचार और अनुभूति (1944 ई.), विचार और विवेचन (1951ई.), आधुनिक हिंदी काव्य की मुख्य प्रवृत्तियाँ (1951 ई.), काव्य-चिंतन (1951 ई.), अनुसंधान और आलोचना (1951 ई.), विचार और विश्लेषण (1955ई.) अरस्तू का, काव्यशास्त्र (1957 ई),
कामायनी के अध्ययन की समस्याएँ (1962 ई.) आलोचक की आस्था (1966ई.), चेतना के बिंब (1967 ई.), रस सिद्धांत (1964 ई.), काव्य बिंब (1967 ई) आस्था के चरण (1967ई.), तंत्रलोक से यंत्रलोक तक (1968 ई.), नई समीक्षाः नए संदर्भ (1970 ई.), समस्या और समाधान (1971ई.) आदि।
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