नागमती चितउर पंथ हेरा । कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | मलिक मुहम्मद जायसी
नागमती चितउर पंथ हेरा । पिउ जो गए फिरि कीन्ह न फेरा। 1।
नागरि नारि काहु बस परा। तेइं बिमोहि मोसौं चितु हरा। 2।
सुवा काल होइ लै गा पीऊ । पिउ नहिं लेत लेत बरु जीऊ। 3 ।
भएउ नरायन बावन करा। राज करत बलि राजा छरा। 4।
करन बान लीन्हेउ के छंदू । भारथ भएउ झिलमिल आनंदू | 5 |
मानत भोग गोपीचंद भोगी। लै उपसवा जलंधर जोगी। 6 ।
लै कान्हहि भा अकरुर अलोपी। कठिन बिछोउ जिअ किमि गोपी। 7।
सारस जोरी किमि हरी मारि गएउ किन खग्गि झुरि झुरि पांजरि धनि भई बिरह के लागी अग्गि।।
नागमती चितउर पंथ हेरा
प्रसंग : यह पद मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पदमावत‘ के ‘नागमती वियोग खण्ड’ से लिया गया है। प्रस्तुत खण्ड में वह कथानक को चित्तौड़ की ओर मोड़ता है और विरहिणी नागमती की विरहावस्था का वर्णन करते हुए कहता है
व्याख्या : कवि कहता है कि उधर चित्तौड़ में नागमती प्रत्यागमन के मार्ग की ओर देखती हुई उसके लौटने की प्रतीक्षा करती रहती थीं और सोचती रहती थीं कि मेरे प्रियतम यहाँ से एक बार क्या गए कि उन्होंने लौटकर आने का नाम तक नहीं लिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि वे किसी चतुर नारी के वशीभूत हो गए हैं और उसने उनको मोहित करके उनके हृदय को मेरी ओर से अपहृत कर लिया है उनके हृदय से मुझका भुलाकर उनके हृदय में वह स्वयं बस गई है। वह तोता (हीरामन ) मरे लिए काल तुल्य बनकर मेरे प्रियतम को मुझसे विलग करके अपने साथ लिवा गया है। नागमती चितउर पंथ हेरा
उस तोते को मेरे प्रियतम को नहीं ले जाना चाहिए था चाहे उसके स्थान पर वह मेरी जान ले लेता। वह तोता तो मेरे प्रति उसी प्रकार छली सिद्ध हुआ है, जैसे राजा बलि के साथ वामन ने छल किया था (उनको स्वर्ग के स्थान पर पाताल भेज दिया था।) उसने इन्द्र की भाँति छल करते हुए कर्ण से उसके अमोघ वाणों को छलपूर्वक लेने के तुल्य मेरे पति को छलपूर्वक मुझसे विमुक्त किया है और जैसे महाभारत के युद्ध में कर्ण को संत्रस्त देखकर इन्द्र प्रसन्न हुआ था, वह भी उसी प्रकार प्रसन्न हो रहा होगा। राजा गोपीचन्द राजसी वैभवों के उपभोग में निमग्न रहते थे, किन्तु जिस प्रकार उनको जालधर योगी अपने साथ लिवा ले गये थे
उसी प्रकार राजसी भोगों में लिप्त मेरे प्राणेश्वर को हीरामन लिवा ले गया है। वह तोता मेरे प्रियतम को अपने साथ ले जाकर उसी प्रकार विलुप्त हो गया है, जैसे श्रीकृष्ण को अक्रूर अपने साथ मथुरा ले गए थे और अब मुझ विरहिणी का जीवित रहना उसी प्रकार दुष्कर हो गया है, जैसे कृष्ण के वियोग में गोपियों का जीवन दूभर हो गया था।
नागमती अंतर्विलाप-सा करते हुए कहने लगी कि अरे तोते! तूने हमारी सारसों की जैसी जोड़ी को भंग किया है, इससे अच्छा तो यह रहता कि खड्ग द्वारा मेरी हत्या कर देता। अब तो मेरी काया में ऐसी विरहाग्नि सुलगी तू रहती है कि उसमें जलकर मेरा शरीर झूर-झूर हो उठा है। उसमें रचमात्र भी सत्त्व नहीं नहीं बचा है। नागमती चितउर पंथ हेरा नागमती चितउर पंथ हेरा नागमती चितउर पंथ हेरा
विशेष
1. बावन करा- एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा बलि महादानी थे और उन्होंने स्वर्ग का राज्य प्राप्त करने की कामना से 99 यज्ञ पूर्ण कर लिये थे। यदि उनका एक यज्ञ और निर्विघ्न पूरा हो जाता तो वे स्वर्ग के राजा बन जाते। देवताओं में इस तथ्य को लेकर खलबली मच गई क्योंकि राजा बलि का दैत्य-कुल से सम्बन्ध था।
देवों द्वारा प्रार्थना किए जाने पर विष्णु ने वामन का रूप धारण करके राजा बलि से ढाई पग भूमि की मांग की थी और राजा बलि द्वारा इस मांग को स्वीकार कर लेने पर एक कदम में आकाश, दूसरे में पाताल को नाप लिया था। उनका तीसरा कदम सम्पूर्ण पृथ्वी से बढ़कर था अतः राजा बलि स्वयं भी लेट गए थे कि आप मेरे शरीर को भी नापकर अपना कदम पूरा कीजिए। इस प्रकार विष्णु ने राजा बलि के साथ छल करके बलि को पाताल का राजा बना दिया था। इस विषय में एक कहावत भी प्रसिद्ध है
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