पिउ बियोग अस बाउर जीऊ | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | मलिक मुहम्मद जायसी | - Rajasthan Result

पिउ बियोग अस बाउर जीऊ | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | मलिक मुहम्मद जायसी |

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पिउ बियोग अस बाउर जीऊ । पपिहा तस बोलै पिउ पीऊ। 1।

अधिक काम दगधै सो रामा । हरि जिउ लै सो गएउ पिय नामा। 2।

बिरह बान तस लाग न डोली । रकत पसीज भीजि तन चोली। 3 ।

सखि हिय हेरि हार मैन मारी। हहरि परान तजै अब नारी। 4।

खिन एक आव पेट महं स्वांसा | खिनहि जाइ सब होइ निरासा | 5 |

पौनु डोलावहिं पींचहिं चोला । पहरक समुझि नारि मुख बोला। 6। 

प्रान यान होत के राखा । को मिलाव चात्रिक के भाखा । 7।

आह जो मारी बिरह की आगि उठी तेहि हाकं । हंस जो रहा सरीर महं पांख जरे तन थांक ॥

पिउ बियोग अस बाउर जीऊ

प्रसंग : यह पद मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पदमावत’ के ‘नागमती वियोग खण्ड’ से लिया गया है। इसमें नागमती की वियोगावस्था का वर्णन किया गया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि अपने प्राणेश्वर के वियोग में पदमावती बावली सी हो गई और उसके मुख से सदैव पपीहे की भाँति पिउ- पिउ की ध्वनि निकलती रहती थी। उस रमणी को काम अत्यधिक पीड़ित करने लगा। हीरामन मानो उसके प्रियतम के रूप में उसके प्राणों को ही अपहृत कर ले गया था।

उसे ऐसा विरह-रूपी वाण लगा हुआ था कि वह हिल-डुल भी नहीं सकती थी और रक्त के पसीजने के कारण उसकी चोली सदैव गीली रहती थी। उसको देखकर सखियां सोचने लगी कि अब यह नारी कामदेव द्वारा परास्त की जा चुकी है-इस पर कामदेव ने विजय प्राप्त कर ली है और अब कांप-कांप कर अपने प्राण छोड़ देगी।

उसे एक क्षण के लिए श्वास आता था और उसके उदर में स्पन्दन होता था, किन्तु क्षण भर में ही वह श्वास निकल जाता था जिससे उसकी समस्त सखियाँ निराश हो उठी थीं। उसको बेहोश हुई देखकर सखियाँ उस पर पंखे से हवा करते हुए उसकी चोली पर जल छिड़कने लगीं।

तब कहीं जाकर एक प्रहर के बाद नागमती कुछ सचेत हुई और यह समझते हुए कि मैं अपनी परेशान सखियों से घिरी हुई हूँ, उसके मुख से कुछ शब्द निकले। वह कहने लगी कि अपने प्राणेश्वर के वियोग में मेरे उड़ते हुए प्राण पखेरुओं को किसने और क्यों उड़ने से रोक दिया है। अब मुझ चातकी का स्वप्रियतम-रूपी मेघ से कौन सम्मिलन करायेगा।

कवि कहता है कि विरहिणी नागमती ने जब आह भरी तो उसकी आह के साथ-साथ आग निकलने लगी। उस विरहाग्नि के कारण नागमती के शरीर में जीव रूपी जो हंस विद्यमान था उसके पंख जल उठे जिससे उड़ नहीं सका-उसका आत्मा-रूपी हंस पंख जल जाने के कारण उड़ने में असमर्थ होकर उसके शरीर में ही रह गया। पिउ बियोग अस बाउर पिउ बियोग अस बाउर पिउ बियोग अस बाउर

 

विशेष : उपरोक्त पद में उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा अलंकार हैं।

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