पूर्व सुकरातीय विचारक और उनका योगदान
उद्देश्य:— पूर्व सुकरातीय विचारक, आयोनियन मत एव मिलेसियन मत, पाइथागोरसवादी मत, इलिएटिक मत, अणुवादी मत, पूर्व सुकरातीय मत के अध्ययन की चुनौतियां । हम इस लेख में इन सभी विचारों को के ऊपर बात करेंगे इसलिए आप अंत तक जरूर पढ़ें धन्यवाद
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पूर्व सुकरातीय विचारक
छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व से जुड़े क्रांतिकारी विचारों को सम्मिलित रूप से पूर्व सुकरातीय दार्शनिक कहा जाता है उन्हें पूर्व सुकरातीय इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह सुकरात से पूर्व थे यह ग्रीक काल में विचारों का सबसे स्वर्णम युग था।
तथापि उनमें से कुछ अंतिम सुकरात के समकालीन भी थे कुछ अध्यक्षों द्वारा पूर्व सुकरात पद को सही रूप में ग्रहण नहीं किया जाता क्योंकि यह पद सुकरात एवं शुक्र आती है सुकरातीय विचारको (सुकरात प्लेटो और अरस्तू आदि) से अपना अर्थ ग्रहण करता प्रतीत होता है।
फिर यह केवल एक सतही कथन है कि यह एक वर्ग समूह में आते हैं लेकिन वास्तव में वह अपने पूर्व विचारक से आधारभूत रूप में ही पृथक हैं और उनके महान उत्तराधिकारी बस उनके अकादमिक तौर-तरीकों को ही प्रमाणित करते हैं उनकी सक्रियता के आधार पर हम तीन कालों को अलग अलग पहचान करते हैं पहला निडर प्रगतिशील विचारों का युग है दूसरा पूर्व में हुए साहसिक कार्यों की तुलना में अभावग्रस्त अनुसंधान का काल है ।
और तीसरा काल समन्वय का है जहां भिन्न प्रबोधन वाले विचार को ने अपने मार्ग पर पहले के विचार को की महत्वकांक्षी से सामंजस्य स्थापित करने की प्रयास किया इसलिए क्योंकि उन्होंने पश्चिम में विज्ञान और दर्शनशास्त्र की नींव रखी है इन पूर्व सुकराती विचारक के महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
पूर्व सुकरातीय विचारको का मत
जब ग्रीक विचारक अपने विचारों का इतिहास लिखने लगे तो उन्होंने स्वयं भी दार्शनिक मतों पर विमर्श करना पसंद किया उन्होंने अपने दर्शन का वर्गीकरण मतों के अनुसार किया और उनकी रूचि मुख्यतः अनुयायियों का वर्णन करने में थी।
जिनसे गुरु शिष्य परंपरा और उन स्थानों जहां वे विकसित हुए थे की कहानियों को जन्म दिया इस काल और इसके स्वरूप को इसके विचारों के इतिहास के अंतर्गत समझा और समझाया जा सकता है पूर्व शुक्र आती है काल के दौरान हमें आयोनियन मत पाइथागोरसवादी मत इलेक्ट्रिक और अनुवादी मतों की झलक मिलती है।
अध्येयताओ ने मुख्यतः ऐसे 2 प्रश्नों की ओर संकेत किया है जो उनके बौद्धिक क्रियाकलापों का सांझा अंश बनाते हैं।
1. सभी पदार्थों का आधारभूत तत्व क्या है?
2. हम परिवर्तन के चरणों की व्याख्या किस प्रकार कर सकते हैं?
ऐसा करते ही वे उस मार्ग पर चल पड़े जिसे वैज्ञानिक और तार्किक कहा जाता है इसका अर्थ यह हुआ कि जगत विक्रय हुए टुकड़ों का समूह नहीं है और ना ही इतिहास स्वेच्छाचारी घटनाओं का क्रम है और ना ही यह चीजें किसी सनकी भगवान द्वारा नियंत्रित की जाती हैं अर्थात विश्व बिना किसी देवी शक्ति के भी व्यवस्थित रह सकता है। यह माना गया है कि विश्व में क्रमबद्धता आंतरिक है और प्रकृति के आंतरिक सिद्धांत उनकी प्रकृति एवं उनकी संरचना की व्याख्या करने के लिए पर्याप्त हैं।
आयोनियन मत एवं मिलेशियन मत
यह अर्थ पूर्ण है कि थेलस (624–548), एनाक्सीमेंनस (6 शताब्दी ईसा पूर्व) सभी को एक साथ समाहित किया जाए यद्यपि यह विचार है कि यह सभी किसी एक दार्शनिक मत से संबंधित थे और उनके मध्य गुरु शिष्य का संबंध था। एक विकृत विचार है जिसे मुख्यतः पूर्व सुकरातीय दार्शनिकों के कार्यों में व्यवस्थित क्रमबद्धता प्रदान करने के लिए उपयोग में लाया गया है तथापि मिलेशियन नए बने छोटे नगरों के निवासी थे अतः सभी एक-दूसरे को जानते थे और ऐसा माना जाता है कि वह सभी एक दूसरे के कार्यों और विचारों से परिचित थे।
थेलस के बारे में कहा जाता है कि वे आयोनियन मत या मिलेशियन मत के प्रनेता थे। वह स्वयं को जानो संस्कृति के निर्माण के लिए उत्तरदाई हो सकते हैं इस संस्कृति को सुकरातीय परंपरा में अच्छे से अपना लिया गया था उन्हें जगत की व्याख्या करने की दृष्टि की सामूहिक चर्चा से परिचय करवाने के लिए श्रेय दिया जाता है।
छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व जबकि समुद्री के माध्यम से ज्ञान का संचरण सुचारू रूप से होता था मैं यह ज्ञान संपूर्ण व्यापारिक ग्रिक साम्राज्य में सोते ही फैल गया और इस समस्या पर और आगे अनु चिंतन एवं उनके और आगे विकास को प्रोत्साहित किया किंतु इस महान विचारक के संबंध में अल्प ज्ञान ही उपलब्ध है यद्यपि यह निश्चित है कि थेलस ने ब्रह्मांड के मूल तत्व संबंधी प्रश्न को उठाया और बताया कि यह मूल तत्व जल है।
बाद के आयोनियन मत के आयोनियन दार्शनिकों में हेराक्लिटस (536–470), जेनोफैन्स और इपीडोकलस (490–360) आदि हुए। मैं अपने दार्शनिक संप्रदाय के विचार को से न केवल कालिख रूप से बल्कि सैद्धांतिक रूप से भी पृथक थे वह पूर्व के विचारकों के एकत्ववादी सिद्धांत से पृथक होकर ब्रह्मांड की यांत्रिक की अवधारणा से जुड़ गए। हेराक्लिटस पहले और बाद के विचारकों के बीच की कड़ी के रूप में जाना जाता है।
पाइथागोरसवादी मत
छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में अधिकांश ग्रिक सिसली से लेकर दक्षिणी इटली की ओर प्रत्येक स्थान पर फैल गए थे जब पूर्वी ग्रीक असुरक्षित होता जा रहा था तब पाइथागोरस (580 से 497 ईसा पूर्व) सामोस के एक द्वीप पर पैदा हुए।
वह क्रोटोन में जाकर बस गए और उन्होंने धार्मिक दार्शनिक समाज की स्थापना की उनकी शिक्षाओं को लेकर गंभीर रहस्य बना हुआ है इसका कारण उनका यह सिद्धांत एवं शिक्षा पद्धति है जिसके अनुसार कुछ भी जो गुरु ने बताया है उसे अन्य के सामने ने तो लिखना चाहिए नहीं प्रगट होने देना चाहिए यहां तक कि इस धारा को दो वर्गों में बांट दिया गया।
मथेमाटिकाई, जिन्हें यह सुविधा थी कि वह गुरु के विचारों को जान सकते थे और आकोउसमाटकोई जो मात्र सुन सकते थे। उन्हें थोड़ा बहुत जानने का अधिकार तो था लेकिन वह पाइथागोरियोंवादी नाम के पात्र नहीं थे जैसा कि हम कुछ पाइथागोरियों वादी ग्रंथों से पता लगा सकते हैं कि वह क्योंकि सावधानीपूर्वक रक्षा की जाती थी पाइथागोरस परंपराओं ने ब्रह्मांड के अनंत खंड समूहों ने संख्याओं के माध्यम को प्रस्तुत किया इस प्रकार हम देख सकते हैं कि किस प्रकार विज्ञान जगत के लिए संख्याएं पाइथागोरस परंपरा का प्रमुख योगदान बन गई।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात जो हमारे मन में सदैव रहती है वह यह है कि आयोनियन मत ने ज्ञान को दैनिक भाषा में प्रसारित किया जिससे यह सभी के लिए प्राप्त हो जाए वही पाइथागोरियन मत ने ज्ञान का विकास गुप्त और मौखिक परंपराओं के माध्यम से किया जिसकी तहुको सिद्धांत बहार के लिए नहीं खोला जाता था।
इलिएटिक मत
इस्मत का प्रमुख प्रतिनिधि परमेनाइट्स (540–680) था वह इलेया के एक कस्बे में जन्मा था वह पहला विचारक है जिसके कारण हमें विश्वसनीय टुकड़ों में प्राप्त होते हैं यह हमें ने केवल अपने निष्कर्षों तक पहुंचने देता है बल्कि इस बात को जानने की अनुमति भी देता है कि हम यह भी जाने कि कैसे वह इन निष्कर्षों तक पहुंचा उसने इसके लिए दो ढंग बताएं। सत्य का रास्ता और मौत का रास्ता जिसे आस्था का रास्ता भी कहा जाता है सत्य प्रकृति की अंत एक वस्तुनिष्ठ अवस्था पर्यवेक्षक से पूर्णतया स्वतंत्र अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है ।
उसका विश्वास था कि हमारी इंद्रियां हमें पथभ्रष्ट करती हैं उसने दृढ़ता से ए परिवर्तनशील सत की बात रखी केवल सत्य ही शाश्वत और स्थिर है अर्थात वह सत्य को एक कल एक जैसा अचल और अपरिवर्तनीय के रूप में स्वीकार करते हैं एलिया का जेनों (490 से 430 ईसा पूर्व) इस मत का एक अन्य उत्साही सदस्य था।
अणुवादी मत
अणुवादी मत का मूल एब्ढेरा के लियुसिपस की शिक्षाओ में माना जाता है इस दार्शनिक के बारे में बहुत ही कम जाना जा सका है। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि वह ऐसा पहला विचारक था जिसने ब्रह्मांड के रिक्त और अदृश्य पदार्थ अपरिवर्तनशील अतिसूक्ष्मअणु से बने होने की बात कही थी डेमोक्रिटस संभवत लियुसिपस का शिष्य था उसने सास्वत और परिवर्तनशील सतत और असतत इलिएटिकस और आयोनियसवादियों में टकराव को देखा।
इस प्रत्यक्ष विरोधाभास को दूर करने के प्रयास में उसने अणुओं का सिद्धांत रखा इसके अनुसार ब्रह्मांड के मूल निर्माण कार्य तत्व अनु है और यह स्वभाव में अपरिवर्तनीय और अचल वेदंगी गति करते हुए एक प्रकार के आकर्षण और प्रतिकर्षण से नियंत्रित हैं आकर्षण का नियम प्राकृतिक एकरूपता का सिद्धांत है जिसके अनुसार समान वस्तु समान वस्तु का आकर्षित करती है।
पूर्व सुकरातीय मत के अध्ययन की चुनौतियां
पूर्व सुकरातीय मत का अध्ययन कठिन है क्योंकि उनका अधिकांश कार्य नष्ट हो चुका है इसलिए हमें बाद के लेखकों द्वारा उपलब्ध करवाए गए फ्रेगमेंट्स पर ही भरोसा करना पड़ता है इनमें से बहुत सी सूचनाएं अपने लेखकों की दिलचस्पीओं प्रयोजनों और सहानुभूति यों से ग्रसित हैं।
बहुधा यह लेखक व्यक्त और अव्यक्त रूप में पूर्व सुकरातीय मत से कोई सहानुभूति नहीं रखते थे। यहां तक कि कई बार वह उनके प्रति कठोर भी थे इस प्रकार उनके अपने मतों के कारण कुछ विरुद्ध की संभावना बनी हुई है हम महान अरस्तु तथा उनके शिष्यों थियोफ्रास्टस और उसके बाद के उत्तराधिकारीओ के ऋणी हैं कि उन्होंने पूर्व सुकरातीय विचारक सिद्धांतों से हमारा परिचय करवाया बिना किसी विश्वसनीय संख्या के यह स्थापित हो चुका है कि उन्होंने अपने पूर्वजों को पूर्णता अपने दर्शन के चश्मे से ही देखा है।
उदाहरण के लिए कहा जाता है की अरस्तु थेलश को भौतिकवाद का प्रेरनेता मानते थे क्योंकि थेलश ने सभी पदार्थों के पानी से बने होने की बात कही थी। अरस्तु थेलश के भौतिकवाद को चार कारण सिद्धांत के चश्मे से देखते हुए समझाते हैं लेकिन संभवत स्वयं ऐसा नहीं है अधिक संभावना यह है कि थेलश के अनुसार सब कुछ पानी से जन्मा है और पानी में ही समा जाएगा।
कई बार बाद के लेखकों द्वारा सुरक्षित द्वितीयक स्रोत उनके स्वयं के पूर्वाग्रहों के कारण दूषित हो जाते हैं हम फिर से देख सकते हैं कि अरस्तू ने किस प्रकार एनेक्सागोरस को चुना और उसकी प्रशंसा की अपने बकबक करने वाले पूर्वजों की तुलना में उसने उन्हें सभ्रांत व्यक्ति कहा है और समय के साथ चलने वाला विचारक बताया है ऐसा इसलिए क्योंकि अरस्तु को लगता था कि एनेक्सागोरस ने स्वयं उसके विचार तत्वों का पूर्वानुमान कर लिया था।
बाद के लेखक अरस्तु के शिष्य थियोफ्रास्टस की लुप्त पुस्तक द ओपिनियन ऑफ द नेचुरल साइंटिस्ट पर निर्भर करते हैं और इस प्रकार कोई भी अध्ययन पूर्ण आत्मविश्वास के साथ इस बात के साथ नहीं खड़ा हो सकता की पूर्व सुकरातीय विचारक विचारको के विचारों को सही अर्थों में सुरक्षित किया गया है क्योंकि सुरक्षित करने वाले शताब्दियों पश्चात पैदा हुए थे इस प्रकार पूर्व सुकरातीय विचारक को जानने में बहुत सी बाधाएं हैं यह स्थिति तब और अधिक कठिन हो जाती है जब हमें उन में से वैज्ञानिक धारणाओं को मत कर निकालना होता है क्योंकि हम कभी भी अपनी वैज्ञानिक धारणा को उनके कार्यों पर आरोपित किए बिना नहीं रह सकते।
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