पूस की रात कहानी का सारांश | प्रेमचंद | - Rajasthan Result

पूस की रात कहानी का सारांश | प्रेमचंद |

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पूस की रात कहानी का सारांश :–  आपने कहानी को ध्यानपूर्वक पढ़ा होगा। आप समझ गये होंगे कि प्रेमचंद ने कहानी के माध्यम से क्या कहना चाहा है।

‘पूस की रात’ कहानी ग्रामीण जीवन से संबंधित है। इस कहानी का नायक हल्कू मामूली किसान हैं। उसके पास थोड़ी-सी ज़मीन है, जिस पर खेती करके वह गुज़ारा करता है लेकिन खेती से जो आय होती है।

वह ऋण चुकाने में निकल जाती है। सर्दियों में कंबल खरीदने के लिए उसने मजूरी करके बड़ी मुश्किल से तीन रुपये इकट्ठे किये हैं। लेकिन वह तीन रुपये भी महाजन ले जाता है। उसकी पत्नी मुन्नी इसका बहुत विरोध करती है, किंतु वह भी अंत में लाचार हो जाती है।

पूस की रात कहानी

हल्कू अपनी फ़सल की देखभाल के लिए खेत पर जाता है, उसके साथ उसका पालतू कुत्ता जबरा है। वही अंधकार और अकेलेपन में उसका साथी है। पौष का महीना है। ठंडी हवा बह रही है। हल्कू के पास चादर के अलावा ओढ़ने को कुछ नहीं है। वह कुत्ते के साथ मन बहलाने की कोशिश करता है।

किंतु ठंड से मुक्ति नहीं मिलती। तब वह पास के आम के बगीचे से पत्तियाँ इकट्ठी कर अलाव जलाता है। अलाव की आग से उसका शरीर गरमा जाता है, और उसे राहत मिलती है। आग बुझ जाने पर भी शरीर की गरमाहट से वह चादर ओढ़े बैठा रहता है।

उधर खेत में नीलगायें घुस जाती हो। जबरा उनकी आहट से सावधान हो जाता है। वह उन पर भुंकता है। हल्कू को भी लगता है कि खेत में नीलगायें घुस आई हैं लेकिन वह बैठा रहता है। नीलगायें खेत को चरने लगती हैं, तब भी हल्कू नहीं उठता। एक बार उठता भी है तो ठंड के झोंके से पुनः बैठ जाता है और अंत में चादर तानकर सो जाता है।

सुबह उसकी पत्नी उसे जगाती है और बताती है कि सारी फ़सल नष्ट हो गयी है। वह चिंतित होकर यह भी कहती है कि ‘अब मजदूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी। इस पर हल्कू प्रसन्न होकर कहता है कि ‘रात को ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा!’ इसी के साथ कहानी समाप्त हो जाती है।

यहाँ हम कहानी के कुछ महत्वपूर्ण अंशों की संदर्भ सहित व्याख्या प्रस्तुत कर रहे हैं, इससे आपको कहानी समझने में और मदद मिलेगी।

उद्धरण: 1 जबरा शायद समझ रहा था कि स्वर्ग यही है, और हल्कू की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्ते के प्रति घृणा की गंध तक न थी। अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता है। वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा को पहुँचा दिया। नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वार खोल दिये थे और उसका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था।

संदर्भः यह उद्धरण प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ से लिया गया है। इस कहानी में हल्कू किसान अपने खेत की रखवाली कर रहा है और उसके साथ उसका कुत्ता जबरा है। हल्कू ठंड से बचने के लिए जबरे को अपनी गोद में चिपटा लेता है। कुत्ते में से दुर्गंध आ रही है।

व्याख्याः जबरा को अपनी देह से चिपटाए हल्कू को सुख का अनुभव हो रहा था। यह सुख वस्तुतः उस अकेलेपन, अंधकार और ठंड की रात में जबरा के साथ से हल्कू के मन में पैदा हुआ था। हल्कू में ऊँच-नीच का ही नहीं मनुष्य और पशु का भी भेद मिट गया था। वह कुत्ते को उतना ही आत्मीय समझ रहा था।

जितना वह अपने किसी रिश्तेदार और मित्र को समझता। हल्कू गरीब था, हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद, उसकी ज़िंदगी अभावों से ग्रस्त थी, लेकिन गरीबी ने उसकी आत्मा की पवित्रता को कुचला नहीं था।

इसीलिए वह एक जानवर के साथ भी बराबरी और आत्मीयता का व्यवहार कर सका था, उसे अपना मित्र बना सका था। जबरे के साथ मित्रता ने उसके हृदय को और उदार बना दिया था, उसकी आत्मा में जिन भावों का संचार हो रहा था।

उसने उसके व्यक्तित्व को आलोकित कर दिया था। जबरा के प्रति हल्कू की इस भावना का असर जबरा पर भी पड़ा था, और वह भी हल्कू के प्रति अधिक वफ़ादार हो गया था, जो कहानी के आगे के घटना विकास में व्यक्त होता है।

विशेषः

1) हल्कू गरीबी और ऋण से पूरी तरह दबा हुआ है। अपने खेत की रखवाली करते हुए अपने पालतू कुत्ते के साथ उसका व्यवहार किसान के हृदय की उच्चता और उदारता को उजागर करता है।

2) हल्कू और जबरा के बीच के संबंध को प्रेमचंद ने अत्यंत भावप्रवण रूप में व्यक्त किया है, जो उनके भाषिक-कौशल को भी बताता है। इसके लिए प्रेमचंद ने प्रसाद-गुण से युक्त भाषा का प्रयोग किया है अर्थात् भाषा भावों को व्यक्त करने में पूरी तरह सक्षम है।

उद्धरण: 2

मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें

संदर्भः यह उक्ति प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ से ली गयी है। कंबल के लिए बचाए गए तीन रुपये सहना (महाजन) को चुकाने के बाद पूस की ठंडी रात में, केवल चादर के सहारे हल्कू को खेत की रखवाली करनी है। खेत पर बैठे-बैठे हल्कू के मन में कई विचार उठते हैं।

व्याख्याः यह छोटी-सी उक्ति किसान के जीवन की विडंबना को पूरी तीव्रता से व्यक्त कर देती है। किसान और मज़दूर रात-दिन मेहनत करते हैं। उन्हीं की मेहनत से समाज की जरूरतें पूरी होती है। लेकिन अपनी मेहनत का वह लाभ नहीं उठा पाता। जो कुछ भी मेहनत-मजूरी से हासिल करता है, वह कर्ज चुकाने में निकल जाता है। जिनके पास रुपया है और जो गरीबों को ब्याज पर पैस देते हैं।

वे बिना कोई मेहनत किये ब्याज के रूप में गरीबों की मेहनत की कमाई लूटते रहते हैं। ब्याज बढ़ता रहता है और किसान कभी कर्ज नहीं चुका पाता। इस तरह वह गरीबी और अभावों में ही फंसा रहता है जबकि उनकी मेहनत की कमाई को लूटने वाले, जो किसी तरह की मेहनत भी नहीं करते, मेहनत करने वालों से कहीं ज्यादा आराम से रहते हैं।

विशेषः

।) यह छोटी-सी उक्ति हमारे समाज के मुख्य अंतर्विरोधों को बहुत ही तीखे रूप में व्यक्त कर देती है।

2) प्रेमचंद ने इतनी महत्वपूर्ण बात को बहुत ही सहज रूप में प्रस्तुत कर दिया है।

कथावस्तु

कहानी में कथावस्तु का निर्माण घटनाओं तथा पात्रों के पारस्परिक संयोग से होता है। कुछ कथानक ऐसे होते हैं जिनकी बुनावट में परिवेश की भी बहुत बड़ी हिस्सेदारी होती है। कथ्य के अनुसार ही कथावस्तु का स्वरूप बनता है, उसी के अनुसार कभी घटनाएँ प्रधान हो जाती है।

कभी चरित्र, कभी परिवेश या वातावरण। इस कहानी में घटनाएँ बहुत अधिक नहीं हैं, न ही परिवेश का विस्तृत चित्रण किया गया है। पात्र भी बहुत कम हैं। इस कहानी की विशेषता यह है कि इसमें घटना विकास, पात्रों का चरित्र और परिवेश तीनों अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

कहानी का आरंभ :-

‘पूस की रात’ प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियों में गिनी जाती है। इस कहानी में कथा का अधिक विस्तार नहीं है। न घटनाक्रम तेज़ी से बदलते हैं। कथा का आरंभ हल्कू के घर से होता है। कहानीकार हल्कू के घर का उतना ही वर्णन करता है, जितने का उस कहानी से संबंध है।

हल्कू ने कर्ज ले रखा है, सहना, जिससे कर्ज़ लिया है वह अपना रुपया माँगने हल्कू के यहाँ आता है। हल्कू अपनी पत्नी मुन्नी से रुपये माँगता है। मुन्नी के पास तीन रुपये हैं जो हल्कू ने मजूरी में से बड़ी मुश्किल से बचाए है ताकि एक कंबल खरीदा जा सके।

बिना कंबल के जाड़ों के दिनों में रात खेतों पर गुज़ारना कठिन होगा, इसीलिए मुन्नी रुपये देने का विरोध करती है। इस समय पति-पत्नी में जो बातचीत होती है वह अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुन्नी कहती है ‘न जाने कितनी बाकी है जो किसी तरह चुकने ही नहीं आती।’

मुन्नी के इस कथन में एक बड़ी सच्चाई को प्रेमचंद ने उजागर किया है। किसान मजबूर होकर महाजन ऋण लेता है, किंतु उसके बाद वह उससे मुक्त नहीं हो पाता। ब्याज-दर के जाल में वह ऐसा उलझ जाता है कि उसकी सारी मेहनत-मजूरी उसे चुकाने में ही चुक जाती है।

है क्या मुन्नी किसानों के जीवन की इस व्यवस्था को और उजागर करते हुए कहती है, ‘मर मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई। बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जन्म हुआ है।’ स्पष्ट ही ऋण चुकाते रहने की विडंबना से परेशान किसान के मन में यह सवाल ज़रूर पैदा होता है कि क्या उसका जन्म केवल ऋण चुकाने के लिए ही हुआ उसकी मेहनत इसी तरह दूसरे हड़पते रहेंगे। और अपना पेट भरने के लिए उसे मजूरी करनी पड़ेगी।

अगर अपना पेट भरने के लिए मजूरी ही करनी है तो फिर खेती से चिपके रहने का क्या मतलब इसी भावना से प्रेरित होकर मुन्नी हल्कू से कहती है, ‘तुम छोड़ दो अबकी से खेती। मजूरी में सुख से एक रोटी खाने को तो मिलेगी। किसी की धौंस तो न रहेगी। अच्छी खेती है। मजूरी करके लाओ, वह भी उसी में झोंक दो, उस पर धौंस।’ बहरहाल, हल्कू वह तीन रुपये सहना को दे देता है। यह कहानी का पहला भाग है।

इस भाग को पढ़ने से स्पष्ट होता है कि हल्कू जैसे गरीब किसान के लिए खेती कितनी मुश्किल होती जा रही थी। यहाँ तक कि वे यह भी सोचने लगते हैं कि क्यों न किसानी छोड़ कर मजूरी की जाए? कहानी का शेष अंश किसान की इसी मनोदशा का अत्यंत मार्मिक चित्रण करता है।

कहानी का विकास :-

कहानी का दूसरा भाग हल्कू के अपने खेत पर आरंभ होता है। पूस की अंधेरी रात है। हल्कू के साथ सिर्फ उसका पालतू कुत्ता जबरा है। ठंडी हवा चल रही है। हल्कू के पास सर्दी से बचने के लिए एक चादर भर है, लेकिन वह चादर उस ठंड से उसकी रक्षा नहीं कर पाती।

हल्कू की मनोभावनाएँ प्रेमचंद ने यहाँ जबरा के साथ हल्कू की बातचीत से व्यक्त की है। यद्यपि कुत्ता होने के कारण जबरा हल्कू की किसी बात को न समझ सकता है, न जवाब दे सकता है, लेकिन जबरा के प्रति हल्कू की आत्मीयता उसकी हृदयगत ऊँचाइयों को व्यक्त करती है।

खेत में हल्कू की सबसे बड़ी चिंता ठंड से बचाव की है। वह जबरा को संबोधित कर कहता है कि इतनी सर्दी में तुम मेरे साथ क्यों आए। फिर इसी तरह की बात करते हुए वह अपनी स्थिति की तुलना उन ‘भागवान’ लोगों के साथ करने लगता है जिनके पास जाड़ा जाए तो गरमी से घबराकर भागे। मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ, कंबल। मजाल है, जाड़े की गुजर हो जाए। तकदीर की खूबी है।

मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें। ‘यहाँ हल्कू की बातों के भाध्यम से प्रेमचंद समाज के एक बहुत बड़े अंतर्विरोध को उजागर करते हैं। वह एक तरह से यह प्रश्न उठाते है कि ऐसा क्यों है कि मेहनत करने वाला किसान तो भूखा सोता है और उसकी मेहनत का फल भोगने वाले मजे करते हैं?

जाहिर है, हल्कू के पास इस सवाल का जवाब नहीं है। वह तो इसे ‘तकदीर की खूबी ही मान रहा है। मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें।’ यहाँ हल्कू की बातों के माध्यम से प्रेमचंद समाज के एक बहुत बड़े अतर्विरोध को उजागर करते हैं। वह एक तरह से यह प्रश्न उठाते हैं कि ऐसा क्यों है कि मेहनत करने वाला किसान तो भूखा सोता है और उसकी मेहनत का फल भोगने वाले मजे करते है? जाहिर है, हल्कू के पास इस स्सवाल का जवाब नहीं है।

वह तो इसे ‘तकदीर की खूबी’ ही मान रहा है। हल्कू की इस मानसिकता की तुलना अगर कहानी के आरंभ में मुन्नी की बातों से करें तो हम आसानी से समझ सकते है कि दोनों एक-सी ही बात सोच रहे हैं। अगर हमारी मेहनत दूसरों के पास ही जानी है तो खेती से जुड़े रहने का क्या लाभ?

कहानी का आगे का हिस्सा हल्कू की जाड़े से बचाव की कोशिश के रूप में सामने आता है। पहले वह चिलम पीता है, फिर चादर ओढ़कर सोता है, तब भी सर्दी से बचाव नहीं होता, तो वह कुत्ते को अपनी गोद में सुला देता है। कुत्ता हल्कू की इस आत्मीयता को महसूस भी करता है। इसीलिए जब किसी जानवर की आहट आती है तो वह चौकन्ना होकर भौंकने लगता है।

आखिर जब सर्दी से किसी तरीके से बचाव नहीं होता तो हल्कू अलाव जलाता है। अलाव से उसको काफी राहत मिलती है। उसका शरीर गरमा जाता है। एक नया उत्साह उसके मन में पैदा होता है और वह जबरा के साथ अलाव पर से कूदने की प्रतियोगिता भी करने लगता है।

धीरे-धीरे अलाव भी बुझ जाता है, लेकिन शरीर की गरमाहट हल्कू को काफ़ी अच्छी लगती है, वह गीत गुनगुनाने लगता है। लेकिन बढ़ती सर्दी उसके अंदर आलस्य बढ़ाने लगती है। यहाँ कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ आता है।

कहानी की परिणति :-

हल्कू के खेत में नीलगायों का झुंड घुस आता है, जिनकी आहट पर जबरा भौंकता हुआ खेत की ओर भागता है। हल्कू को भी लगता है कि जानवरों का झुंड खेत में घुस आया है। फिर उनके कूदने-दौड़ने की आवाजें भी आने लगती हैं, और फिर खेत के चरने की भी। लेकिन हल्कू नहीं उठता।

वह अपने मन को झूठी दिलासा देते हुए सोचता है कि ‘जवरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता।’ जबरा लगातार भूकता रहता है, लेकिन हल्कू को आलस्य घेरे रहता है। एक बार वह उठता भी है, दो-तीन कदम चलता है, लेकिन ठंड के तेज़ झोंके के कारण वह फिर अलाव के पास आके बैठ जाता है। आखिरकार, नीलगायें पूरे खेत को नष्ट कर जाती है।

यहाँ प्रश्न उठता है कि हल्कू अपनी फ़सल को बचाने की कोशिश क्यों नही करता? क्या वह आलसी है? क्या वह ठंड के मारे इतना परेशान था कि अपनी फ़सल का नष्ट होना भी वह सर्दी के मुकाबले बर्दाश्त कर सकता था। स्पष्ट ही कारण ये नहीं है? कारण जैसा कि कहानी से साफ़ है हल्कू की वह मानसिकता है, जिसकी चर्चा हम पहले कर चुके हैं। आख़िर वह अपनी फ़सल की रक्षा किसके लिए करे? क्या सिर्फ़ महाजनों को लुटाने के लिए?

अगर उसकी मेहनत सूदखोरों और ज़मींदारों के पास ही जानी है तो फिर नीलगायें चर लें तो क्या? वस्तुतः लगातार शोषण ने हल्कू को अपनी ही मेहनत से उपजायी फ़सल से उदासीन बना दिया है, इसीलिए उसकी मुख्य चिंता सर्दी से बचने की हो जाती है, फ़सल को बचाने की नहीं। यही कारण है कि वह अपनी पत्नी के यह कहने पर कि अब मजूरी करके मालगुजारी चुकानी पड़ेगी तो वह कहता है रात को ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा।’

खेत नष्ट हो जाने पर भी हल्कूप्रसन्नता व्यक्त करता है? आप उन दो कारणों को बताइए जो हल्कू की प्रसन्नता” में व्यक्त हो रहे हैं?”

यह भी पढ़े :–

  1. हल्कू का चरित्र चित्रण | पूस की रात | प्रेमचंद |
  2. पूस की रात: मुंशी प्रेमचंद की संपूर्ण कहानी

 

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