प्रेमचंद और हिंदी कहानी |
प्रेमचंद और हिंदी कहानी :— प्रेमचंद ने हिंदी कहानी को एक नई जमीन और दिशा प्रदान की। एक युगनिर्माता कहानीकार के रूप में हिन्दी कहानी को उन्होंने जो स्थापत्य दिया वह विचार और कला दोनों ही दृष्टियों से युगप्रवर्तनकारी है। प्रेमचंद ने शुरू में अपने मूल नाम धनपत राय की जगह नवाब राय के नाम से उर्दू में कहानियाँ लिखना प्रारंभ किया।
प्रेमचंद और हिंदी कहानी
1904 से 1916 तक वे उर्दू में ही कहानियाँ लिखते रहे। 1905 में बंग-भंग के साथ भारतीय राजनीति में एक नए तरह की राष्ट्रीय चेतना का जन्म हुआ। इस चेतना ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को लड़ाकूपन और स्वाधीनता की भावना दी। इस नए राष्ट्रवाद के नए नेता थे-तिलक, पाल, लाला लाजपत राय, बारीन्द्र घोष आदि । इन सबमें तिलक की ‘स्वराज्य’ भावना सबसे जुझारू और ठोस थी ।
महात्मा गांधी के भारतीय राजनीति में आगमन से पहले तिलक की गिरफ्तारी और तत्पश्चात् विरोध में टेक्स्टाइल मजदूरों की हड़ताल । भारतीय मजदूर वर्ग की यह पहली राजनीतिक हड़ताल थी ।
लेनिन ने इस हड़ताल की प्रशंसा की थी । 1905 में बंग–भंग, 1907 में कांग्रेस में फूट, 1908 में तिलक को जेल, तेजी से बदल रहे इस राजनीतिक– यथार्थ पर ऐसा नहीं है कि प्रेमचंद की नजर नहीं है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रेमचंद एक कथाकार के साथ-साथ कुशल पत्रकार भी थे। तिलक भी उन्हें प्रभावित करते हैं, गांधी भी प्रभावित करते हैं और टैगोर भी।
उनके लेखन का आरंभ रवीन्द्रनाथ की कहानियों के प्रभाव और अनुवाद से ही होता है जिसमें राष्ट्रीय भावना मूल है। प्रेमचंद ‘जमाना’ पत्र में एक नियमित कॉलम सन् 1905 से लिखते रहे- ‘रतारे जमाना’ | स्वाधीनता संग्राम और राष्ट्र की चेतना का कोई ऐसा पहलू नहीं, जिस पर उन्होंने न लिखा हो । प्रेमचंद कभी जेल नहीं गए । सक्रिय राजनीति में उन्होंने कभी हिस्सेदारी नहीं की। परन्तु नवजागरण की दृष्टि से स्वतंत्रता आन्दोलन में उनका योगदान किसी राजनेता से कम नहीं है। उनकी कई कहानियों और अधिकांश उपन्यासों में राजनीतिक आंदोलनों की छाया देखी जा सकती है।
स्वदेशी, बाल विवाह, विधवा-विवाह, अस्पृश्यता, शिक्षा आदि राजनीतिक व समााजिक-सुधर के एजेण्डे का रूपायन प्रेमचंद की कई कहानियों में मिलता है। प्रेमचंद का कथा – साहित्य भारतीय ऐतिहासिक सामाजिक स्थितियों के तकाजे का आईना है। प्रेमचंद ने साहित्य के लिए ‘नए मेयार’ की बात की है। हिन्दी कहानी को उन्होंने नया मेयार दिया ।
यह नया मेयार किसानों, मजदूरों, अछूतों के जीवन-संग्राम से निर्मित हुआ है। जिन साधारण-जनों को सौंदर्य – ज और कला की दुनिया से बहिष्कृत रखा जाता था, प्रेमचंद ने मनुष्यता के धरातल पर, न्याय के धरातल पर समानता के धरातल पर उन्हें महत्त्व देकर कला और सौन्दर्य की दृष्टि ही बदल दी।
प्रेमचंद लिखते हैं – “हम जब ऐसी व्यवस्था को सहन न कर सकेंगे कि हजारों आदमी कुछ अत्याचारियों की गुलामी करें। तभी हम केवल कागज के पृष्ठों पर सृष्टि करके ही संतुष्ट न हो जाएंगे, किन्तु उस विधान की भी सृष्टि करेंगे जो सौंदर्य, सुरुचि, आत्मसम्मान और मनुष्यता का विरोधी न हो। “
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