प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए |

प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए |

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी :— कविता की तरह कहानी को भी इतिहास की आदि – विधा माना जा सकता है, चाहे वह आज गद्य में लिखी जाती हो, या इससे पहले पद्य में या उससे भी पहले संकेतों में । पद्यमय गीतों के माध्यम से रस ग्रहण करते हुए भी समाज – शिक्षा या उपदेश के लिए नेपथ्य में चलने वाली ‘कहानी‘ ही मनुष्य को अधिक बाँधती रही है।

आधुनिक युग में गद्य के उदय से पूर्व भावपूर्ण लोक कथाओं से उन कथा – स्थितियों का अनुमान किया जा सकता है जिसमें से आज की ‘कहानी’ का विकास संभव हुआ है। वैदिक युग से लेकर आज उत्तर-आधुनिक समय तक कहानी के विकास की कहानी ‘मनुष्य’ होने की कहानी है।

ऋग्वेद के यम- यमी, पुरुरवा – उर्वशी आदि के संवाद, उपनिषदों के रूपकीय आख्यानों, नहुष, ययाति आदि के उपाख्यानों से लेकर बौद्ध जातक-कथाओं, पुराणों, रामायण और महाभारत की कथाओं- उपकथाओं के प्राचीनतम रूपों से लेकर वृहत्कथा, कथासरित्सागर, पंचतंत्र, हितोपदेश तक, उससे आगे विक्रमादित्य, मुंज, भोज आदि राजाओं के शौर्य और प्रणय की गाथाओं तक कहानी निरंतर मनुष्य के अधिक बुद्धिमान, सतर्क और अनुभवी होते जाने की कहानियाँ हैं।

प्रेमचंद पूर्व हिंदी और प्रेमचंद कालीन हिंदी कहानी

आगे चलकर इन्हीं कथारूपों में अरबी-फारसी दास्तानों का मेल हुआ। जिसे हम आधुनिक कहानी कहते हैं, उसमें संस्कृत, प्राकृत, अरबी-फारसी के साथ ईसप की कहानियों का एक मिश्रित ढंग है । सिंहासन बत्तीसी, बेताल पच्चीसी, माधवानल कामकन्दला, राजा भोज का सपना, रानी केतकी की कहानी, देवरानी- जेठानी की कहानी इत्यादि इसके प्रारंभिक उदाहरण हैं।

प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की पृष्ठभूमि में इसी परिदृश्य की कहानियाँ मिलती हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में जिन तीन कहानियों का विशेष उल्लेख मिलता है उनमें-मुंशी इंशाअल्ला खाँ की रानी केतकी की कहानी’, राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द की कहानी ‘राजा भोज का सपना’ और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र लिखित ‘अद्भुत अपूर्व स्वप्न’, प्रमुख हैं।

कुछ इतिहासकारों और आलोचकों ने ‘रानी केतकी की कहानी को हिंदी की पहली कहानी के रूप में मान्यता दी है परंतु अधिकतर आलोचकों का मत है कि इसमें आधुनिक कहानी का ढ़ब और ढंग नहीं मिलता है। ‘राजाभोज का सपना’ और ‘अद्भुत अपूर्व स्वप्न’ के बारे में भी यही मत है। सही मायनों में, अन्य गद्य-विधाओं के विकास की तुलना में भारतेन्दु युग में कहानी – कला का विकास नहीं हुआ।

हिन्दी कहानी की वास्तविक शुरुआत बीसवीं शताब्दी से ही माननी होगी। 1900 ई. में ‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशन के साथ ही एक तरह से हिन्दी कहानी का जन्म होता है। बीसवीं सदी के पहले दशक में जिन प्रारंभिक छ: कहानियों का उल्लेख मिलता है, वे इस प्रकार हैं

1. इंदुमति ( 1900 ) – किशोरीलाल गोस्वामी 

2. गुलबहार (1902) – किशोरीलाल गोस्वामी 

3. प्लेग की चुड़ैल (1902 ) – मास्टर भगवान दास 

4. ग्यारह वर्ष का समय (1903 ) – रामचंद्र शुक्ल 

5. पंडित और पंडितानी (1903) – गिरिजा दत्त वाजपेयी

6. दुलाईवाली ( 1907 ) – बंगमहिला 

 

प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी का विकास

‘इंदुमति’ हिन्दी की पहली कहानी के रूप में मान्य है। शेक्सपियर के नाटक ‘टैम्पेस्ट‘ की छाप इस कहानी पर है । वातावरण तो भारतीय है परंतु कथानक पर ‘टेम्पेस्ट’ हावी है। इस प्रभाव के चलते ही कुछ आलोचक इसे मौलिक कहानी न मानते हुए ‘ग्यारह वर्ष का समय’ अथवा ‘दुलाई वाली’ को हिन्दी की पहली कहानी मानने के पक्ष में हैं परंतु प्रभाव मात्र से इसकी मौलिकता खारिज नहीं होती। किशोरी लाल गोस्वामी ने वर्णन शैली और कथ्य दोनों ही तरह से इसे मौलिक बनाने का प्रयत्न किया है । ‘गुलबहार’ और ‘प्लेग की चुड़ैल’ में कहानी – कला के तत्त्व कम हैं।

कहानीकला के तत्त्वों के अनुरूप मौलिक प्रयास के रूप में ‘ग्यारह वर्ष का समय’ और ‘दुलाईवाली’ ही उल्लेखनीय हैं। इनमें तत्कालीन सामाजिक जीवन के यथार्थ का अच्छा परिचय मिलता है। भाषा और कहन की दृष्टि से, आधुनिक लक्षणों की दृष्टि से ‘दुलाईवाली’ में जो निखार है वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 1911 ई. में काशी से ‘इंदु’ नामक पत्रिका का संपादन शुरू हुआ। 1911 ई. में जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘ग्राम’ का प्रकाशन ‘इंदु’ में हुआ ।

‘इंदु’ में ही राधिकारमण प्रसाद सिंह की कहानी ‘कानों में कंगना का प्रकाशन 1913 ई. में हुआ। आगे चलकर हिन्दी कहानी में प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले पं. विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक की पहली कहानी ‘रक्षाबंधन’ 1913 ई. में ‘सरस्वती’ में प्रकाशित हुई । यह समय अनुवाद, रूपांतरण, छाया–प्रभावों और हिन्दी कहानी की प्रौढ़ता के लिए किए जाने वाले मौलिक प्रयत्नों के साथ वस्तुतः प्रयोग का काल है।

हिंदी में कहानी की स्वाभाविक मौलिक मनोभूमि का विकास पहली बार सन् 1915 ई. में तब दिखता है जब ‘सरस्वती’ में पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ का प्रकाशन होता है। एक तरह से हिन्दी की आधुनिक कहानी का प्रारंभ यहीं से होता है। ‘उसने कहा था’ हिन्दी कहानी की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिसमें त्याग और बलिदान की भारतीय परंपरा और आधुनिक कथा- शिल्प की विदेशी उपलब्धियों का ऐसा कुशल संयोजन है कि वह अनायास ही हिन्दी कहानी को एक समृद्ध धरातल दे देती है।

साहित्येतिहासकार और आलोचक रामस्वरूप चतुर्वेदी का कहना है कि, “जिस प्रकार अंग्रेजी लेखिका ऐमिली ब्रांटे अपने एक उपन्यास ‘बुद्रिंग हाइट्स’ के लिए अमर हैं उसी प्रकार चंद्रधर शर्मा गुलेरी अपनी एक कहानी के लिए ।” हिन्दी कहानी की परिपक्वता का महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है ‘उसने कहा था’ । इसके साथ ही हिन्दी कहानी अपनी स्वतंत्र अस्मिता स्थापित करने की ओर अग्रसर हो जाती है और प्रेमचंद के हाथों आकर विश्व कहानी के समानांतर स्थापित होती है ।

प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी की प्रवृत्तियाँ

वातावरण, घटना, कथानक, चरित्र, संवेदन सभी दृष्टियों से प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी अपनी प्रवृत्तियों में आदर्शात्मक रोमान के साथ-साथ उपदेशात्मक धरातल पर खत्म होती हैं। ‘रानी केतकी की कहानी’ तो राजा उदयभान और रानी केतकी की प्रेमकथा को ‘राजा-रानी’ की कहानी की तरह ही बयाँ करती है।

इस बयान में ब्यौरेवार विवरण वस्तु – सत्य को ओझल कर देता है। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही किस्सागोई की मौखिक परंपरा से यह कहानी छूट नहीं पाई है। इस कहानी से हिन्दी कहानी को दिशा तो जरूर मिलती है पर यह कहना भी जरूरी लगता है कि इस कहानी का उद्देश्य कुछ और है, आदर्श कुछ और है, विषय कुछ और है और शैली कुछ और ।

प्रेमचंद पूर्व कहानियों में बहुरूपता तो मिलती है परन्तु उसमें सूक्ष्म मानवीय भावों की पकड़ या पर्यवेक्षण नहीं मिलता जिसे आगे चलकर, प्रेमचंद, प्रसाद, सुदर्शन या कौशिक ने विकसित किया। शायद इसका कारण यह हो सकता है कि जीवन अपने सत्य रूप में इतना स्पष्ट न रहा हो इसीलिए, एक तरह का वैचित्र्य, कुतूहल, रोमांस प्रेमचंद की पूर्ववर्ती कहानियों की प्रवृत्ति है।

इस युग की कहानियों में दृष्टांत का रूपांतरण गल्प में नहीं हो पाया। इसलिए, इतिहास, मिथक, चमत्कार, अंधविश्वास, जादू, तिलिस्म आदि कथा-दृष्टांतों और प्रसंगों को कहानी के पूरक के रूप में प्रयोग किया गया है।

अतएव, प्रेमचंद पूर्व की कहानियों से विचारों को उत्तेजित करने के लिए आपको कुछ नहीं मिलेगा हाँ, मन के सुन्दर भावों को जाग्रत करने के लिए वहाँ कुछ न कुछ अवश्य मिल जाएगा। घटना प्रधान होने के कारण ज्यादातर कहानियाँ आकस्मिकता और तद्जनित कौतूहल का निर्माण करने में ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं।

इन कहानियों में पात्रों / चरित्रों का कोई स्वतंत्र महत्त्व नहीं होता है वरन् घटनाएँ, चरित्रों को परिस्थितिवश नियंत्रित और विस्तारित करती चलती हैं। विलक्षण काल्पनिक घटनाओं के निर्माण में इस दौर के कहानीकारों का मन विशेष रूप से रमता है। राजा शिवप्रसाद ‘सितारेहिन्द’ की कहानी ‘राजाभोज का सपना’ और भारतेन्दु हरिश्चंद्र की कहानी ‘अद्भुत अपूर्व स्वप्न’ को भी इसी प्रवृत्ति के अन्तर्गत रखा जा सकता है ।

 

यह भी पढ़े :—

  1. गोदान उपन्यास का सारांश ||
  2. किसान जीवन के संदर्भ में गोदान का मूल्यांकन कीजिये ||
  3. गोदान में वर्णित जाति-सामंती व्यवस्था टिप्पणी दीजिए ||

 

प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए | – अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। और हमारेFaceBook Page”  को फॉलो करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।। धन्यवाद 🙏 ।।

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!