बद्रीनाथ का इतिहास, बद्रीनाथ कैसे पहुंचे? बद्रीनाथ कब जाना चाहिए? दिल्ली से बद्रीनाथ कैसे जाये? चार धाम यात्रा कब से चालू है? बद्रीनाथ क्यों प्रसिद्ध है? - Rajasthan Result

बद्रीनाथ का इतिहास, बद्रीनाथ कैसे पहुंचे? बद्रीनाथ कब जाना चाहिए? दिल्ली से बद्रीनाथ कैसे जाये? चार धाम यात्रा कब से चालू है? बद्रीनाथ क्यों प्रसिद्ध है?

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चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम के मंदिर का इतिहास काफी रोचक है। आठवीं शताब्‍दी से लेकर सोल्‍हवीं शताब्‍दी तक मंदिर में कई परिवर्तन हुए। कई बार हुई त्रासदी के बाद मंदिर का पुन: निर्माण हुआ और आज यह सनातन धर्म का प्रमुख तीर्थस्‍थल है। हालांकि श्री हरि का यह धाम शुरू से ही मंदिर रूप में नहीं था और न ही विष्‍णु भगवान की मूर्ति यहां स्‍थापित थी।

 

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कुंड से गुफा में पधारे बद्रीनाथ

 

कहा जाता है कि शंकराचार्यजी अपने बद्रीनाथ निवास के दौरान छह महीने यहां रुके थे। इसके बाद वह केदारनाथ चले गए थे। हालांकि उन्‍होंने ही अलकनंदा नदी से भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति प्राप्‍त की थी जिसे हिंदू और बैद्ध संघर्ष के दौरान सुरक्षित रखने के लिए साधुओं ने नारदकुंड में डाल दिया था।। इसके बाद तप्‍त कुंड नामक गर्म चश्‍मे के पास स्थित एक गुफा में मूर्ति को स्‍थापित कर दिया। हालांकि यह मूर्ति गुफा से विलुप्‍त हो गई और पुन: तप्‍तकुंड में ही पहुंच गई। यह दो बार हुआ। कथा मिलती है कि तीसरी बार संत रामानुजाचार्य ने म‍ूर्ति की स्‍थापना करवाई।

16वीं सदी में मंदिर में पहुंचे भगवान

पारंपरिक कथा के अनुसार शंकराचार्य ने परमार शासक राजा कनक पाल की सहायता से इस क्षेत्र से बौद्धों को निष्कासित कर दिया। इसके बाद कनकपाल और उनके उत्तराधिकारियों ने इस मंदिर की प्रबंध व्यवस्था संभाली। कथा मिलती है कि 16 वीं शताब्‍दी में गढ़वाल के तत्‍कालीन राजा ने बद्रीनाथ की मूर्ति को गुफा से निकालकर वर्ममान मंदिर में स्‍थापित कर दिया। बाद में इंदौर की महारानी अहिल्‍याबाई ने यहां पर सोने का छत्र चढ़ाया। 20वीं शताब्‍दी में जब गढ़वाल राज्‍य दो भागों में बंटा तब बद्रीनाथ मंदिर ब्रिटिश हुकूमत के आधीन हो गया। लेकिन राज्य बंटने के बाद भी मंदिर का प्रबंधन और प्रशासन गढ़वाल के राजा के पास ही रहा।

मंदिर कई बार हुआ है त्रासदी का शिकार

 

भगवान बदरीनाथ के इस मंदिर को हिमस्‍खलन के चलते कई बार नुकसान पहुंचा लेकिन गढ़वाल के राजाओं ने मंदिर के नवीनीकरण के साथ ही इसका विस्‍तार भी किया। 1803 में इस क्षेत्र में आए भूकंप से मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा। इस घटना के बाद जयपुर के राजा ने मंदिर का पुन: निर्माण करवाया। मंदिर का निर्माण कार्य 1870 के अंत तक चला। आज निरंतर प्रयास और विकास के क्रम में बद्रीनाथ का दरबार भक्तों के लिए खुला है जहां लाखों की संख्या में अब श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं।

बद्रीनाथ

बद्रीनाथ

 

बद्रीनाथ कैसे पहुंचे?

कैसे पहुंचे बद्रीनाथ धाम?

गूगल मैप पर बद्रीनाथ धाम के निर्देशांक: 30.73°N 79.48°E.

हवाई मार्ग से: बद्रीनाथ से निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट है, जो ऋषिकेश से सिर्फ 26 किमी दूर स्थित है। …

ट्रेन द्वारा: बद्रीनाथ धाम से सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (297 किलोमीटर), हरिद्वार (324 किलोमीटर) और कोटद्वार (327 किलोमीटर) हैं।

बद्रीनाथ कब जाना चाहिए?

चारधाम यात्रा 2021ः आगामी 18 मई को खुलेंगे बदरीनाथ धाम के कपाट, वसंत पंचमी के अवसर पर घोषित की गई ।

केदारनाथ से बद्रीनाथ कितना दूर है?

केदारनाथ से गोपेश्वर होकर बद्रीनाथ 230 किलोमीटर है. बद्रीनाथ धाम 11204 फिट की उँचाई पर है।

हरिद्वार से बद्रीनाथ का किराया कितना है?

गढ़वाल मंडल विकास निगम के टूर पैकेज ऋषिकेश से बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम तक यात्रा का वाहन के साथ टूरिस्ट रेस्ट हाउस में रहने का पैकेज 16 हजार रुपये प्रति व्यक्ति है। हरिद्वार से यही पैकेज प्रति व्यक्ति 16960 रुपये है। बच्चों के लिए यह 16,475 रुपये, वरिष्ठ नागरिकों के लिए 16,230 रुपये है।

दिल्ली से बद्रीनाथ कैसे जाये?

निगम रविवार से दिल्ली से पांडुकेश्वर (बदरीनाथ) के लिए सीधी बस सेवा शुरू कर रहा है। नई बस सेवा का लाभ दिल्ली से बदरीनाथ धाम के दर्शन करने वाले तीर्थयात्रियों और पर्वतीय रूट की सवारियों को भी मिलेगा। बस रोजाना रात नौ बजे दिल्ली के अंतरराज्यीय बस अड्डा कश्मीरी गेट से रवाना होगी और तड़के तीन बजे तीर्थनगरी पहुंचेगी।

ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी कितनी है?

ऋषिकेश से बदरीनाथ धाम की दूरी 295.3 किलोमीटर है। यानी कि बस सेवा शाम करीब 4 बजे बदरीनाथ पहुंचेगी। रात्रि पड़ाव के बाद अगले दिन बदरीनाथ से निर्धारित समय सारणी के मुताबिक ऋषिकेश के लिए रवाना होगी। ऋषिकेश से सोनप्रयाग की दूरी 211 किलोमीटर है।

चार धाम यात्रा कब से चालू है?

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बद्रीनाथ का नाम बद्रीनाथ क्यों पड़ा?

माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं, तब उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! … इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्री नाथ पड़ा।

बद्रीनाथ मंदिर को कितने भागों में बांटा गया है?

बदरी नारायण मंदिर जिसे बद्री नाथ भी कहा जाता है। ये तीर्थ उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे नीलकंठ पर्वत पर स्थित है। भगवान विष्णु को समर्पित ये मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा चारों धाम में से एक के रूप में स्थापित किया गया था। बद्रीनाथ मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप ।

बद्रीनाथ क्यों प्रसिद्ध है?

यह हिंदू देवता विष्णु को समर्पित मंदिर है और यह स्थान इस धर्म में वर्णित सर्वाधिक पवित्र स्थानों, चार धामों, में से एक यह एक प्राचीन मंदिर है जिसका निर्माण ७वीं-९वीं सदी में होने के प्रमाण मिलते हैं। … बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप “बद्रीनारायण” की पूजा होती है।

 

बद्रीनाथ में कौन सा मठ है?

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दक्षिण भारत का इनमें से कौन सा मंदिर मुख्य रूप से भगवान विष्णु के एक रूप को समर्पित हैं?

तिरुपति: तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. वहां साल के 12 महीनों में 1 भी दिन ऐसा नहीं जाता, जब वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता न लगा हो. भगवान वेंकटेश्वर स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है।

अन्य जानकारी —— तिरुपति बालाजी मंदिर के अन सुने रहस्य

केदारनाथ का इतिहास, व पूरी यात्रा की जानकारी ।

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