बैठे मारुति देखते रामचरणारविन्द | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

बैठे मारुति देखते रामचरणारविन्द | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

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बैठे मारुति देखते रामचरणारविन्द,

युग ‘अस्ति नास्ति’ के एक रूप, गुणगण अनिन्द्य,

साधना मध्य भी साम्य वामा कर दक्षिणपद,

दक्षिण करतल पर वाम चरण, कपिवर, गद् गद्

पा सत्य सच्चिदानन्द रूप, विश्राम धाम,

जपते सभक्ति अजपा विभक्त हो राम नाम।

युग चरणों पर आ पड़े अस्तु वे अश्रु युगल,

देखा कवि ने, चमके नभ में ज्यों तारादल।

ये नहीं चरण राम के, बने श्यामा के शुभ,

सोहते मध्य में हीरक युग या दो कौस्तुभ,

टूटा वह तार ध्यान का, स्थिर मन हुआ विकल

सन्दिग्ध भाव की उठी दृष्टि, देखा अविकल

बैठे वे वहीं कमल लोचन, पर सजल नयन,

व्याकुल, व्याकुल कुछ चिर प्रफुल्ल मुख निश्चेतन।

बैठे मारुति देखते रामचरणारविन्द

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कविवर निराला ने उस प्रतिक्रिया का वर्णन किया है जो राम के नेत्रों से टपके मोती जैसे अश्रुबिंदुओं को देखकर हनुमान के अंतर्मन में हुई थी।

व्याख्या – कवि कहता है कि राम के सम्मुख उनके चरणों में बैठे हुए हनुमान राम के चरण रूपी कमलों को देख रहे थे और सोच रहे थे कि राम के ये चरण युग की समस्त दार्शनिक मान्यताओं, जिनके अनुसार ब्रह्म का अस्तित्व स्वीकार भी किया जाता है और नहीं भी किया जाता, का प्रतिनिधित्व करते हैं और ये संपूर्ण गुण – गरिमा के फलस्वरूप अनिंद्य शोभा से ओतप्रोत हैं।

हनुमान सोच रहे थे कि राम के चरण साधक को समरसता का संदेश प्रदान करते हैंराम का बायां हाथ दाहिने चरण पर और दाहिने हाथ की हथेली बाएं पैर पर रखी हुई थी | साधना में लीन राम की इस मुद्रा को देखकर हनुमान को ऐसा लगा जैसे साधना की इस मुद्रा द्वारा भी राम संसार को समन्वय का संदेश दे रहे हैं। राम के इस स्वरूप में ब्रह्म के सत्, चित् और आनंद रूप को देखकर हनुमान भक्ति भाव से अभिभूत हो उठे क्योंकि आज उनको सत्य का साक्षात्कार हो चुका था।

उन्हें यह अनुभूति हो रही थी कि राम सत् चित् और आनंदमय ब्रह्म के अवतार हैं और मानव-आत्मा को इन्हीं में विलीन होकर चिर विश्राम मिला करता है। हनुमान अत्यधिक भक्ति-भावपूर्वक सहज भक्ति का आश्रय लेते हुए राम के नाम का अजपा जाप कर रहे थे—भाव यह है कि यद्यपि हनुमान अपने अंतर्मन में राम के नाम का जाप कर रहे थे तथापि बाहरी रूप में इस तथ्य का किसी को पता नहीं चल पाता था।

इसी समय राम के नेत्रों से गिरे हुए दो आंसू उनके चरणों पर आ गिरे। इन आंसुओं को देखकर हनुमान को प्रतीत हुआ मानो आकाश में तारों का समूह चमक उठा है। उन्हें यह भी प्रतीत कि वे राम के चरण न होकर स्वयं देवी शक्ति अर्थात् काली के शुभ चरण हैं और उनक मध्य में गिरकर सुशोभित होने वाली आंसू की दो बूंदें – दो हीरे हैं अथवा दो कौस्तुभ मणियां हैं। हनुमान के ध्यान का तार टूट गया और उनका स्थिर मन व्याकुल हो ठा। उन्होंने संदिग्ध भाव से अपनी दृष्टि उठाकर राम की ओर देखा। उन्होंने देखा कि वहां यद्यपि कमलनयन राम ही बैठे हुए थे किंतु उनके नेत्र अश्रुपूर्ण थे और उनका सदैव प्रसत्र रहने वाला मन कुछ-कुछ व्याकुल और उदास था। अपने स्वामी की इस उदासी को देखकर हनुमान भी स्तब्ध और निश्चेष्ट हो उठे।

विशेष

1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने राम के स्वरूप की भक्ति परक और वेदांतपरक व्याख्याएं की हैं। वेदांत की दृष्टि से वे द्वैताद्वैत हैं और भक्ति की दृष्टि से भक्तों के लिए सहज गम्य। साथ ही राम का मानव-रूप भी चित्रित है जो अपनी स्थिति से हैं। राम के स्वरूप की इस प्रतिष्ठा में प्राचीन और अर्वाचीन दार्शनिक मान्यताओं के साथ-साथ व्याकुल और उदास सहज मानवीय रूप का भी सुंदर समन्वय है ।

2. कवि ने राम के चरित्रांकन में तो परिवर्तन किया है, किंतु हनुमान को उनके परंपरागत राम-भक्त रूप में ही प्रस्तुत किया है।

3. अस्ति-नळेत और सच्चिदानंद पारिभाषिक शब्द हैं। इनके प्रभाग के कारण प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ-बोध क्लिष्ट हो गया है।

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