ब्रह्मांड शास्त्र से परिचय: वैज्ञानिक, दार्शनिक और उद्देश्य - Rajasthan Result

ब्रह्मांड शास्त्र से परिचय: वैज्ञानिक, दार्शनिक और उद्देश्य

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संभवत: यह कोई ऐसा दूसरा स्थान और जहां एक अन्वेषक के रूप में मानव की पहचान इतनी स्पष्ट और संपूरक के रूप में विज्ञान और दर्शन शास्त्र की प्रकृति इतनी मर्मभेदी हुई हो जितनी ब्रह्मांड शास्त्र में हुई है इसकी प्रकृति और ढंग दोनों ही इस तथ्य को उजागर करते हैं तो आइए जानते हैं।

ब्रह्मांड शास्त्र या वैज्ञानिक ब्रह्मांड विज्ञान

जब भी लोग ब्रह्मांड विज्ञान शब्द को सुनते हैं तो वह सबसे अधिक सापेक्षता रहस्यमय पदार्थ आकाशगंगा है एवं उनके गुच्छों आदि से डरते हैं। हालांकि यह सब विषय ब्रह्मांड विज्ञान के अध्ययन का एक भाग है किंतु यह उतने रहस्य में नहीं है जितना इन्हें समझा जाता है।

अल्बर्ट आइंस्टीन ने सन 1917 में ब्रह्मांड को देखने का हमारा दृष्टिकोण ही परिवर्तित कर दिया इस तथ्य तक पहुंचते हुए कि देश एवं काल एक ही हैं (देश और काल चौथा फलक) । हम आकाशगंगाओं को और रहस्यमय पदार्थों जैसे वे कार्बन जो प्रकाश के मार्ग को विचलित कर देते हैं के गुरुत्वीय प्रभाव को समझ सकते हैं इन गुरुत्वाकर्षण प्रभावों का निर्धारण कर हमने ब्रह्मांड के द्रव्यमान वितरण और यह कैसे विस्तार करता है के संबंध में एक दृष्टि प्राप्त कर ली है।

हम ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं को प्रकारों के साथ-साथ उनके समूह के वितरण पर भी एक दृष्टि डालेंगे साथ में हम उस रहस्यमय पदार्थ से भी परिचित होंगे। जिसे अब तक जाना नहीं जा सका है यह उस द्रव्यमान वाला एक ऐसा पदार्थ है। जो आकाशगंगा और उनके समूहों के रिक्त स्थान में वितरित है और ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड के सभी पदार्थों का 90% भाग यही है हम महा विस्फोटक बिग बैंग और इसके अवशेष के रूप में खगोलीय विकिरण से भी परिचित होंगे।

ब्रह्मांड शास्त्र के संबंध में हम जो भी जानते हैं वह कंप्यूटर अनुरूपण और पर्यवेक्षक आंकड़ों के आधार पर जानते हैं इसका अर्थ यह हुआ कि निरंतर परिवर्तित होने वाली इस घटना के बारे में हम जो भी जानते हैं वह सिद्धांत बहुत थोड़े पर्यवेक्षक साक्ष्यों के आधार पर बना है जो भी हो किंतु बाद में होने वाला यह पर्यवेक्षण अनुरूपण और सिद्धांतों का परिष्करण हमें ब्रह्मांड शास्त्र की प्रकृति को समझने में सहायता पहुंचा रहा है।

 

ब्रह्मांड शास्त्र

ब्रह्मांड शास्त्र

 

परंतु अब तक हम ब्रह्मांड शास्त्र के बारे में जानते ही क्या है?

महा विस्फोटक पर आधारित यह संक्षिप्त समयसीमा (T महा विस्फोटक के बाद समय को निरूपित करती है) ब्रह्मांड शास्त्र द्वारा उपलब्ध कराई गई कुछ प्रारंभिक जानकारियों की ओर संकेत करती है।

  • 13.6 बिलियन साल पहले T = 0 था, एक महाविस्फोटक से इस ब्रह्मांड का आरंभ होता है।
  • T= 300,000 महाविस्फोटक के इतने वर्षो पश्चात प्रोटॉन और न्यूट्रॉन का निर्माण हुआ।
  • T= 3000,000 से 10,000,000 वर्ष पश्चात संलयन प्रक्रिया से हाइड्रोजन के अणुओं का निर्माण हुआ है और ब्रह्मांड के विकिरण बढ़ गया है जिसे हम आज भी धारण करते हैं।
  • T= 10,000,000 से 1,000,000,000 वर्ष पश्चात पदार्थों के पुंज आपस में मिले और प्रोटो गैलेक्सी का निर्माण किया।
  • T= 1,000,000,000 से 3,000,000,000 वर्ष पश्चात क्वासर का निर्माण।
  • T= 3,000,000,000 से 8,000,000,000 वर्ष पश्चात— आकाशगंगाओं का निर्माण।
  • T= 8,000,000,000 से 12,000,000,000 वर्ष पश्चात— सौर्यमंडल और ग्रहों का निर्माण।
  • निकट आकाशगंगाओं की तुलना में सुदूर आकाशगंगाओ के तेजी से होते विस्तार के रूप में हमारे ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जा रही है।

वैज्ञानिक और खगोलीय आंकड़ों ने हमें वैज्ञानिक ब्रह्मांडविज्ञान दिया है जैसा कि भारतीय ब्रह्मांडवेता जयंत नारलीकर पाते हैं “अपनी विलक्षण उपलब्धियों के उपरांत ब्रह्मांड विज्ञान अभी भी संभावनाशील विषय है”

दार्शनिक ब्रह्मांडविज्ञान

ब्रह्मांड की विशालता एवं विरोधाभास ओं के समक्ष मानव की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति रही है कि वह अपने और अपने आसपास के विश्व के बारे में प्रश्न पूछे प्रत्येक प्रश्न का अर्थ आंशिक ज्ञान और आंशिक अज्ञान है इस प्रकार गए उत्तरों की खोज थमती नहीं। यह उत्तर हमें वैज्ञानिक ब्रह्मांड विज्ञान और आगे चलकर दार्शनिक ब्रह्मांड विज्ञान प्रदान करते हैं और इस प्रकार से हमें दार्शनिक ब्रह्मांड विज्ञान की एक धारा मिलती है।

उत्पत्ति के आधार पर अंग्रेजी शब्द कॉसमॉस (ब्रह्मांड) का हिंदी में अर्थ है अव्यवस्था के समक्ष एक सुव्यवस्था।

इस प्रकार से ब्रहमांड विज्ञान का मिथकिय अर्थ सुव्यवस्था (ब्रह्मांड में) का अध्ययन हुआ। वैसे प्रचलित अर्थ में कॉसमॉस का अर्थ सुव्यवस्थित तंत्र के रूप में लिया जाता है इस प्रकार ब्रह्मांड विज्ञान से तात्पर्य ब्रह्मांड में इलेक्ट्रॉन से लेकर आकाशगंगा तक में सुव्यवस्था का अध्ययन है।

इसी प्रकार फोली ब्रह्मांडविज्ञान को इस रूप में परिभाषित करते हैं “रहस्यमय ब्रह्मांड के सर्वोच्च सिद्धांत की खोज” । ब्रह्मांड विज्ञान का शब्दकोश में अर्थ होगा भौतिक ब्रह्मांड का समग्रता से समय और अंतरिक्ष के रूप में अध्ययन।

रेनोरिते इसे इस रूप में समझाते हैं भौतिक ब्रह्मांड के निर्माण के औचित्य की समस्या का अध्ययन । आगे के डाउटरटी के अनुसार एक ऐसा विज्ञान जो साधारणतया प्रथम सिद्धांत एवं कारक को सदैव ध्यान में रखता है।

वेन फ्रास्सेन द साइंटिफिक इमेज पुस्तक में कहते हैं विज्ञान का सिद्धांत एक लक्ष्य विश्व कैसा है की वास्तविक कहानी जानना है और किसी वैज्ञानिक सिद्धांत की स्वीकार्यता का अर्थ यह विश्वास होना है कि यह कहानी सत्य है।

उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट है कि ब्रह्मांड विज्ञान भौतिक यथार्थ पर दार्शनिक चिंतन है और अधिक ठीक ढंग से कहा जाए तो यह विज्ञान द्वारा परिष्कृत ब्रह्मांड के ज्ञान का चिंतन है क्योंकि यह सर्वोच्च सिद्धांत की खोज का चिंतन है इसलिए यह दार्शनिक है और क्योंकि जिन आंकड़ों पर चिंतन किया जाता है वह विज्ञान द्वारा उपलब्ध करवाए जाते हैं इसलिए यह वैज्ञानिक भी है।

ब्रह्मांडविज्ञान क्यों ?

इस बात पर विमर्श हो सकता है कि विज्ञान और विशेषताएं आधुनिक विज्ञान जब पुरुष और औरतों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम है फिर तो ऐसे में ब्रह्मांड विज्ञान एक अनावश्यक किया है यह तर्क आमतौर पर विज्ञान और दर्शन की भूमिका के बारे में दिग्भ्रमित समझ के कारण आता है ज्ञान के क्षेत्र में विज्ञान की भूमिका को तीन मुख्य कार्यों तक संकुचित किया जा सकता है।

  1. मापन एवं गुणों के मध्य अंकीय संबंध।
  2. तार्किक चेतना के रूप में नियमित होने वाले सिद्धांतों को नियमों में संश्लेषित करना।
  3. सामान्य नियमों के रूप में इन संबंधों की भावाभीव्यक्ति।

यह मानव की गहरी इच्छा होती है कि वह इन तीन सक्रियाओं से परे जाकर और अधिक गंभीर प्रश्न कर सके। सर्वोच्च कारणों का विकास करते हुए वह प्रश्न करना चाहते हैं कि यह ब्रह्मांड कैसे निर्मित हुआ? यह कहां से विकसित हुआ? ब्रह्मांड की सर्वोच्च प्रकृति क्या है? कुछ नहीं के बजाय यह कुछ कैसे बन गया? हम आकाशगंगाओं की संख्या की व्याख्या कैसे करेंगे? वह हमें वैज्ञानिक ब्रह्मांड विज्ञान से उठ रहे दार्शनिक प्रकरणों की ओर ले जाते हैं।

निसंदेह लगता है कि आधुनिक विज्ञान ने उपरोक्त संक्रिया उसे कहीं अधिक किया है यहां हमें यह स्मृत रखना चाहिए कि प्राचीन काल की अपेक्षा आज आधुनिक विज्ञान और दर्शन की आपसी अतः क्रिया अधिक उल्लेखनीय है और प्राय ही इनमें से एक दूसरे के कार्य क्षेत्र में अतिक्रमण करने लगता है अल्बर्ट आइंस्टाइन और स्टीफन हॉकिंस महान वैज्ञानिकों के ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने दर्शन और विज्ञान के बीच की सीमा रेखा को लागने की चेष्टा की है।

मानव जाति अपनी कभी न समाप्त होने वाली खोज में चीजों के कुछ थोड़े से ब्योरे और विवरण भर से संतुष्ट नहीं हो जाती भले ही वह व्यवस्थित और परिशुद्ध हो। वह अपने सिद्धांतों की पूर्व धारणाओं के निहितार्थ जानना चाहती है मानव जाति सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य से हुए अनुभवों से सीखना चाहती है।

मानव के इन मूलभूत प्रश्नों का उत्तर विज्ञान आंशिक रूप से भी नहीं दे सकता है यह बस कुछ निर्देशक और सुसज्जित आंकड़ों पर उपलब्ध करवा सकता है यहीं पर दर्शनशास्त्र की आवश्यकता पड़ जाती है कि वह आए और आगे की खोज जारी रखें इस प्रकार ब्रह्मांड विज्ञान को ऐसे समझा जा सकता है कि यह विज्ञान द्वारा उपलब्ध करवाए गए सुसज्जित आंकड़ों पर चिंतन कर मानव के ज्ञान को आगे ले जाता है जिसे विज्ञान पर्याप्त मात्रा में पूर्ण नहीं कर सकता था।

ब्रह्मांड विज्ञान का उद्देश्य

1. छात्रों को विज्ञान के विकास और उसके कुछ महत्वपूर्ण निहितार्थ से परिचित करवाना।

2. जगत के बारे में एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण देना और वैज्ञानिक विचारधारा को उनके मन में बिठा देना एक वस्तुनिष्ठ समझ और खुले दिमाग वाली प्रवृत्ति के साथ संधान की ललक है

3. छात्रों को हमारी आसपास के विश्व के विज्ञान और वैज्ञानिक विकास की महत्वता के प्रति जागरूक करना और इससे उत्पन्न होने वाली विशाल चुनौतियों का सामना करवाना।

 

इस उद्देश्य के लिए जो ढंग अपनाया गया वह विज्ञान पर आधारित है हम विज्ञान द्वारा प्रदत कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों और सिद्धांतों का अध्ययन करेंगे इस प्रकार विश्व के उदय और उसकी परिणति के संदर्भ में हम आधुनिक विज्ञान के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांतों को रेखांकित करने का प्रयास करेंगे इसके पश्चात वगैरे दार्शनिक निहितार्थ ओं को खोजने के लिए उन पर चिंतन करेंगे।

संभवत है यह कोई ऐसी दूसरा स्थान और जहां एक अन्वेषक के रूप में मानव की पहचान इतनी स्पष्ट और संपूरक के रूप में विज्ञान और दर्शन शास्त्र की प्रकृति इतनी मर्म वेदी हुई हो जितनी ब्रह्मांड विज्ञान में हुई है इसकी प्रकृति और ढंग दोनों ही इस तथ्य को उजागर करते हैं।

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