भारतीय-इस्लामी स्थापत्य शैली के विकास में अकबर के योगदान का परीक्षण कीजिए | - Rajasthan Result

भारतीय-इस्लामी स्थापत्य शैली के विकास में अकबर के योगदान का परीक्षण कीजिए |

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भारतीय-इस्लामी स्थापत्य

भारतीय-इस्लामी स्थापत्य

मुगल शासक सौन्दर्य के उपासक तथा कला और संस्कृति के संरक्षक थे। उन्होंने भारत में सुन्दर शहरों और भवनों का निर्माण किया | मेहराबों और गुंबदों के प्रयोग से 13वीं शताब्दी में ही भारत में स्थापत्य की नई शैली का प्रवेष हो चुका था । मुगलों ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और इसे तुर्की शैली की पूर्ववती शैली के साथ मिलाकर एक नयी स्थापत्य शैली का निर्माण किया; मसलन मेहराबों के साथ-साथ सहतीरों का प्रयोग किया जाने लगा। इसके परिणामस्वरूप स्थापत्य की एक अनूठी और नई शैली विकसित हुई।

 

बाबर के पास बड़े-बड़े भवनों का निर्माण कराने का समय नहीं था। इसके बावजूद उसने अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर भारत में कई बाग लगवाए। अपने संस्मरण (बाबरनामा) में वह कुछ मंडपों का भी उल्लेख करता है। दुर्भाग्यवश इस प्रकार की बहुत कम इमारतें बची हैं। हुमायूं के काल में भवन निर्माण के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है।

हालांकि लंबे समय तक ईरानी (Persian) संस्कृति के संपर्क में रहने के कारण उसके द्वारा निर्मित मकबरे में ईरानी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। इस मकबरे का निर्माण उसकी पत्नी हमीदा बानो बेगम के निरीक्षण में हुआ था । 1540 में शाह के शासनारूढ़ होने से भारत में मुगल शासन काल में गतिरोध पैदा हुआ। अगले 15 वर्षों तक सूरी वंश का शासन चलता रहा।

सूर शासन काल में कई भव्य भवनों का निर्माण हुआ। उनकी इमारतों ने वस्तुतः भवन निर्माण के क्षेत्र में मुगल स्थापत्य को आधार प्रदान किया जिसे मुगलों ने आगे विकसित किया। भवन के आकार में वृद्धि के साथ-साथ उसका निर्माण तालाब के बीचों बीच किया गया है और उस इमारत तक पहुंचने के लिए सेतु – पथ का इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा इमारत की मंजिलें भी बढ़ाई गई। यह पांच मंजिलों की सुंदर पिरामीडिय संरचना का आभास देता है।

शेरशाह का मकबरा एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है जिसके चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं । यह चारों तक पहुंचने के लिए सेतु – पत्र हान हुए हैं। निचले तक पहुंचने के लिए सेतु-पथ बने हुए हैं। निचले ओर तालाब से घिरा हुआ है । प्रवेष द्वार से मकबरे प्लेटफार्म के ऊपर गुंबद बनाते समय ध्रुव स्थापित ऊपर एक और गुंबद बनाकर सुधारा गया।

मुख्य इमारत में एक अष्टकोणीय कक्ष है जिसके चारों ओर छत्ते बने हुए हैं । प्लेटफार्म के सभी कोनों में गुंबदनुमा छत्तरियां बनी हुई हैं। नीचे से ऊपर की की ओर घटता अनुपात तथा चतुर्भुज, अष्टकोण और वृत्त की उत्कृष्टता का नमूना पेश करता है।

म्हराबों का आकार सूरी स्थापत्य की एक महत्वपूर्ण विषेषता है । इसके बीच के हिस्से में थोड़ी सपाटता है। यह मुगलों के चतुष्केन्द्रीय ट्यूटर मेहराब के विकास के पूर्व के अंतिम चरण का द्योतक था।

मुगलकालीन स्थापत्य अकबर के काल से समृद्धि की ओर बढ़ने लगा। उसने विदेशी और देशी तत्वों के संगम से उत्पन्न शैली को प्रोत्साहित किया । यह भारतीय – इस्लामी स्थापत्य शैली का सुन्दर नमूना है जिसमें तुर्की शासन से पूर्व के स्थापत्यगत तत्वों को भी शामिल किया गया है। इस शैली के प्रमुख तत्व इस प्रकार हैं:

प्रमुख भवन निर्माण के रूप में लाल पत्थर का उपयोग।

भवन निर्माण में शहतीर तकनीक का व्यापक प्रयोग |

मेहराबों का निर्माण मुख्य रूप से अलंकरण के लिए न कि संरचनात्मक उपयोग के लिए ।

“लोदी” शैली के गुंबदों का प्रयोग; कभी-कभी इन्हें खोखला भी रखा जाता था परन्तु तकनीकी रूप से ये वैज्ञानिक तरीके से बनाये गये दोहरे गुंबद नहीं थे।

बहुआयामीय धुरियों वाले स्तम्भों का प्रयोग; स्तम्भों पर सम्पूर्ण इमारत टिकी होती थी ।

अलंकरण के लिए इमारतों में नक्काशी और चटक रंगों का प्रयोग |

आगरा से लगभग 40 कि.मी. दूर स्थित फतेहपुर सीकरी में बनी अकबर की राजधानी उसके स्थापत्यगत आदर्शो की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है। यह भारत के प्रमुख स्मारकों में से एक है। अपनी डिजाइन और संरचना में फतेहपुर सीकरी एक ऐसा शहर है जिसमें निजी महल के साथ-साथ बरामदा, दीवाने आम और जामी मस्जिद, जैसे सार्वजनिक स्थल भी हैं। 

फतेहपुर सीकरी की इमारतों को दो श्रेणियों में विभक्त किया धार्मिक इमारतों में :-

क) जामी मस्जिद; 

ख) बुलन्द दरवाजा, और प्रसिद्ध हैं। लौकिक इमारतों में महल और प्रशासनिक इमारतें शामिल हैं।

 

शेख सलीम चिश्ती का मकबरा उत्तर- पश्चिमी हिस्से में जामी मस्जिद के परिसर में बना हुआ है। यह स्थापत्य का एक सुन्दर नमूना है जिसमें संगमरमर की महीन पच्चीकारी की गई है। इसका निर्माण 1581 ई. में हुआ था और आरम्भ में इसका कुछ ही हिस्सा संगमरमर का बना हुआ था। दो सर्पीले आकार के ताकों से छज्जे को सहारा दिया गया है। इसमें बनाई गई झीनी जाली प्रमुख विषेषता है।

महल परिसर में पंचमहल का पांच मंजिला इमारत है जो दीवाने – खास के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। जैसे-जैसे इमारत ऊपर की ओर उठती गई है वैसे-वैसे मंजिलों का आकार छोटा होता चला गया है। सबसे ऊपर मंजिल में छतरीनुमा एक छोटा गुबद बना हुआ है। इस इमारत के कुछ हिस्सों को लाल पत्थर की बनी जाती से घेरा गया था परन्तु आज इनमें से कोई सही सलामत नहीं है। एक रोचक तथ्य यह है कि इन पांचों मंजिलों के आधर स्तंभ अलग-अलग डिजाइनों के बने हैं।

भवन निर्माण कला की दृष्टि से जहांगीत और शांहजहां के युग को संगमरमर का युग कहा जा सकता है। इस काल में लाल पत्थरों के स्थान पर उत्कृष्ट कोटि के संगमरमर का प्रयोग होने लगा। इसके कारण निम्नलिखित महत्वपूर्ण शेलीगत परिवर्तन हुए।

मेहराबों का निर्माण खास शेली में होने लगा। इसमें घुमावदार फूल-पत्तियों को उभारा गया,

मेहराबों में संगमरमर के छत्ते बनाये जाने लगे,

गुंबद का आकार कंदनुमा कर दिया गया,

दोहरे गुंबद बनाए जाने लगे, अलंकरण के लिए रंगीन पत्थरों का इस्तेमाल किया जाने लगा, और इमारतों में अलंकरण की एक नई शेली विकसित हुई जिसे पित्राड्यूरा के नाम से जाना जाता कसित हुई जिसे विवाह के नाम से जाना जाता है। इसमें लैपिस-लजूली, सुलेमानी, जैस्पर, पुखराज और कार्नेलियन, जैसे कम बहुमूल्य पत्थरों से संगमरमर पर खूबसूरत फूल-पत्तियां बनाई जाती थीं ।

1622-28 ई. में नूरजहाँ द्वारा बनवाया गया अपने पिता मिर्जा गियास बेग का महबरा, जिसे इतमादुद्द्द्दौला के मकबरे क नाम से जाना जाता है, स्थापत्यगत शेली की दृष्टि से यह एक बदलाव की ओर संकेत करता है जिसमें अकबर की इमारतों की स्थूलता से आगे बढ़ने का प्रयास दिखाई देता है। यह मकबरा एक चौकोर ढांचा है जिसे एक चबूतरे पर बनाया गया है।

इसके चारों ओर चार अष्टकोणीय मीनारें हैं जिसकी छतें ग गुंबदनुमाकार है। मुख्य कक्ष के चारों ओर एक बरामदा है जिसमें संगमरमर पर सुन्दर अलंकरण किया गया है। मुख्य मकबरा सफेद संगमरमर का बना हुआ है और इसमें पित्राड्यूरा की शेली में अलंकरण किया गया है। केन्द्रीय कक्ष में इतमादुद्दौला और उसकी पत्नी के पीले संगमरमर से बने मकबरे स्थित हैं। बगल के कक्ष फूल-पत्तियों से अलंकृत किए गए हैं। इस इमारत के चारों ओर लाल पत्थर के दरवाजे बने हुए हैं और इसके चारों ओर चौकोर बागान भी स्थित हैं।

शाहजहां के शासन काल में भवन निर्माण में संगमरमर का बहुतायत से प्रयोग किया गया । निस्संदेह शाहजहां का ताजमहल उसकी सबसे बड़ी परियोजना और उपलब्धि थी इस परिसर की योजना आयताकार है जिसके चारों ओर ऊंची दीवारें हैं; दक्षिण की ओर बीच में ऊंचा प्रवेश द्वार है।

प्रत्येक कोने पर पूर्वी और पश्चिमी सिरे पर एक- एक अष्टकोणीय मंडप बनाए गए है।। ताजमहल की मुख्य इमारत उत्तरी छोर पर संगमरमर के बने ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। इस ढांचे के पश्चिमी और पूर्व में दोनों ओर एक ही प्रकार की मस्जिद बनी हुई है।

ताजमहल एक चौकोर इमारत है जिसके चारों ओर सुन्दर बागान हैं और इनके चारों कोनों के कटाव अष्टभुजीय है। इस ढांचे के ऊपर एक सुन्दर कुन्दनुमा गुंबद बनाया गया है जिसमें कमलनुमा कंगूरा और धातु का बना कलश कला हुआ है। चबूतरे के चारों कोनों पर चार वृत्ताकार मीनारें खड़ी हैं जिसके ऊपर स्तंभ युक्त बुर्जी बनी हुई है ।

इमारत के भीतर एक केन्द्रीय कक्ष है जिसके अलग-बगल छोटे कक्ष बने हुए हैं। ये सभी गलियार से जुड़ते हैं। मुख्य कक्ष की छत है जो दोहरे गुंबद की गोलाकार जोकि लिए सुलेख (calligraphy) और अंदरूनी हिस्से में निचली परत भी है। बाहरी हिस्से में अलंकरण के लिए सुलेख (calligraphy) और अंदरूनी हिस्से में पित्राड्यूरा का उपयोग किया गया है। प्रमुख ढांचे के सामने बना हुआ बाग चार हिस्सों में बंटा हुआ है

जिसके बीच में दो नहरें एक दूसरे का समकोण पर काटती हई बहती हैं।

उत्तर-मुगल काल के दौरान बनी इमारतों में दिल्ली स्थित समदरजंग का मकबना सबसे महत्वपूर्ण है। यह भी एक बड़े बाग के बीच में स्थित है। इसमें ताजमहल की योजना की नकल की गई है । इस डिजाइन में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह आया है कि मीनारें स्वतंत्र ढांचा नहीं हैं। प्रमुख इमारत तोरण युक्त चबूतरे पर स्थित है। यह दो मंजिली इमारत है और इसके ऊपर एक बड़ा और लगभग गोलाकार गुंबद बना हुआ है। भारतीय-इस्लामी स्थापत्य भारतीय-इस्लामी स्थापत्य

मीनारें कंगूरे के रूप में खड़ी हैं और इसके ऊपर गुंबदनुमा बुर्जी बनी हुई है। इमारत लाल पत्थर से बनी है जिसमें संगमरमर से पैनल बनाया गया है। मेहराबों के ऊपरी हिस्सों पर अलंकरण कम किया गया है। लेकिन इमारत की पूरी संरचना के परिप्रेक्ष्य में इसकी संगति अच्छे से बैठाई गई है।

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  1. मुगल कालीन स्थापत्य कला: Mughal era architecture |
  2. औपनिवेशिक काल की स्थापत्य शैलियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए |

 

 

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