भारतीय परंपरा में प्राचीन समय से लेकर तुलसीदास तक के राम भक्ति साहित्य के विकास पर प्रकाश डालिए |

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भारतीय परंपरा में प्राचीन

भारतीय परंपरा में प्राचीन हिंदी काव्य में रामभक्ति परंपरा 

हिंदी साहित्य में तुलसी पूर्व कवियों में रामानंद अग्रणीय है ये कवि, समाज यायावर प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। हिंदी भाषा-भाषियों के लोक जीवन में रामभक्ति का प्रस्फुटन इनके द्वारा ही हुआ। ये जिन दार्शनिक मतों से प्रेरित थे वह शंकराचार्य का अद्वैतवाद तथा रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत था।

ये दोनों दार्शनिक गुरू क्रमशः निर्गुण-सगुण उपासना के प्रचारक थे शंकराचार्य ज्ञान पर अधिक बल देते थे, ठीक इसी के विपरीत रामानुजा भक्ति पर वे विष्णु या नारायण की उपासना पर बल देते थे। नि समय से रामानंद ने इन दोनों अध्यात्म गुरुओं के दोनों मार्ग सभी जातियों के लिए खोल दिए।

वे निर्गुण व सगुण दोनों प्रकार की भक्ति में सार्थकता देखते हैं किन्तु वे स्वयं राम के उपासक के रूप में ही विख्यात हुए। रामानंद ने भक्ति के जिस रूप को लोक-सामान्य में रखा वह बहुत ही सरल व सहज था वे भक्ति के मार्ग में जाति-पाँति को बाधा समझते थे। उन्होंने अपने दोहे में स्वतः ही कहा है।

जाति- पाँति पूछे नहि कोई।

हरि को भजै सो हरि का होई।।

रामानंद ने सर्वप्रथम राम-सीता के साथ भक्ति साधना के लिए हनुमान की भी स्तुति की। रामानंद ने हनुमान की पूजा आरती का तुलसीदास से पहले उत्तर भारत में विस्तार किया। वे हिन्दी साहित्य की राम भक्ति परंपरा में मेरुदण्ड के रूप में प्रतिष्ठित हुए। ईश्वर दास ने राम कथा को आधार बनाकर दो ग्रंथ लिखे, ‘भरत मिलाप’ और अंगद पैज’। भरत मिलाप में करुण प्रसंग को तन्म न्यता से लिखा गया है तथा अंगद पैज में अंगद की वीरता का चित्रण हुआ है।

तुलसीदास रामभक्ति काव्य परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उन्होंने प्रत्येक दृष्टि से राम काव्य को हिन्दी साहित्य के शिखर पर पहुँचाया है। इनके द्वारा रचे बारह ग्रंथ प्रामाणिक माने गए हैं तुलसी दास ने अपने ‘रामचरितमानस’ को भाषा, रस, अलंकार, काव्य सौन्दर्य, चरित्र-चित्रण आदि काव्य गुणों को चर्मोत्कर्ष पर पहुँचाया है।

मानव व्यवहार के मार्मिक पक्षों का ऐसा विश्लेषण संसार के अन्य किसी भी ग्रंथ में दुर्लभ है, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने साहित्येतिहास में लिखा है, “यह एक कवि ही हिंदी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।”

तुलसी के परवर्ती कवियों ने प्रचुरता से राम कथा पर काव्यों की रचना की परन्तु वे उसे उस उत्कर्ष पर नहीं पहुंचा सके, जो कार्य तुलसीदास ने किया। केशव की ‘राम, चन्द्रिका’ अग्रदास ने रामध्यानमंजरी, ध्यानमंजरी, प्राणचन्द चैहान ने रामायण महानाटक तथा हृदयराम ने हनुमन्नाटक’ का सृजन किया। आधुनिक काल में भी राम के चरित्र को लेकर विभिन्न काव्य रचे गए।

जिसमें पंचवटी, साकेत, राम की शक्ति पूजा राम काव्य के बहुत ही उत्कृष्ट उदाहरण है। जिन्होंने आधुनिक संदर्भो में राम कथा के ऐतिहासिक व पौराणिक महत्त्व को चित्रित किया। निराला द्वारा रचित ‘राम की शक्तिपूजा’ तो अपने आप में महाकाव्य ही है। जो राम को पूर्णतः अवतार से बाहर लाकर शंकाकुल मनुष्य के रूप में चित्रित करती हैं।

‘राम भक्ति काव्य परंपरा में महाकवि तुलसी का स्थान ‘

गोस्वामी तुलसीदास का प्रादुर्भाव हिंदी साहित्य में ऐसे समय पर हुआ, जब मध्यकाल का अस्थिर दौर चल रहा था सामाजिक व्यवस्था चरमरा चुकी थी भारतीय जनता मुगुल शासकों के शासन से त्रस्त थी। समाज विभिन्न पंथ, धार्मिक कर्मकाण्ड में लीन था।

संत कवि समाज पर कुछ सम्यक प्रभाव ही डाल सके थे जिनसे जनता की बहुसंख्यक भावना मेल नहीं खा पाई। भारतीय संस्कृति को समग्रता से एक कर सके ऐसे युग प्रेरणा की आवश्यकता महसूस हुई। उसी रूप में तुलसी का आगमन हिंदी साहित्य में हुआ |

तुलसी वेद, पुराण, उपनिषद तथा विभिन्न दार्शनिक मतों के मर्मज्ञ थे वे संस्कृत के प्रकाण्ड ज्ञाता थे। वे अपने समय की राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझने की क्षमता रखते थे।

जीवन में समय-समय पर आघात पाने से वे मनुष्य रूपी स्वभाव की पैठ अपने हृदय-मन पर अविस्मृणीयता से छोड़ आए थे इसी कारण उन्होंने अपना भक्ति साहित्य विद्वत समाज में प्रचलित भाषा संस्कृत में न लिख कर लोक प्रचलित अवधि और ब्रज में रचा।

तुलसी पूर्व रामभक्ति का जो वातावरण रामानंद ने सम्पूर्ण उत्तर भारत में तैयार कर दिया था तुलसी ने उसे भारत के कोने-कोने में पहुंचा दिया। रामभक्ति काव्य की सबसे प्रौढ़ रचना ‘रामचरितमानस’ है तथा तुलसी द्वारा रचित जो बारह ग्रंथ प्रामाणिक माने गए हैं उनमें सबसे अधिक काव्य प्रतिभा हमें इस ग्रंथ में ही मिलती है।

तुलसीदास ने रामकथा को लेकर भारतीय जनता के लिए एक ऐसा नर-नारी चरित्र लिखा जिसका आदर्श रूप वर्तमान समाज में भी वही स्थान रखता है जो तुलसी के समकालीन था। भारतीय परंपरा में भारतीय परंपरा में भारतीय परंपरा में भारतीय परंपरा में

तुलसीकृत राम काव्य में जो मर्यादा, समन्वय तथा लोकमंगल की धारणा प्रस्तुत हुई है वह भक्तिकालीन अन्य किसी ग्रंथ में दुर्लभ है। रामचन्द्र शुक्ल अपने साहित्येतिहास में लिखते हैं:—

‘जैसे वीरगाथा काल के कवि उत्साह को, भक्तिकाल के दूसरे कवि प्रेम और ज्ञान को; अलंकार काल के कवि दांपत्य, प्रणय या शृंगार को महत्त्व देते हैं वहीं तुलसी की वाणी की पहुँच मनुष्य के सारे भावों और व्यवहारों तक है। एक ओर तो वह व्यक्तिगत साधना के मार्ग में विरागपूर्ण शुद्ध भगवद् भक्ति का उपदेश करती है, दूसरी ओर लोकपक्ष में आकर पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों का सौंदर्य दिखाकर मुग्ध करती है।’

 

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