हिंदी भाषा के विविध रूप पर प्रकाश डालें? व विविध रूपों की व्याख्या - Rajasthan Result

हिंदी भाषा के विविध रूप पर प्रकाश डालें? व विविध रूपों की व्याख्या

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भाषा के विविध रूप

भाषा के विविध रूप

1.भौगोलिक या क्षेत्रीयता के आधार पर

(क) व्यक्ति बोली

सामाजिक क्षेत्रीय और पर्यावरणीय संदर्भों का व्यक्ति की भाषा पर प्रत्यक्ष एवं दूरगामी प्रभाव पड़ता है इसी कारण हर व्यक्ति की अपनी व्यक्ति बोली होती है

होकेट के शब्दों में किसी निश्चित समय पर व्यक्ति विशेष का समूचा वाक व्यवहार उसकी व्यक्ति बोली है यह व्यक्ति बोली शाब्दिक और व्याकरण में व्यक्ति परखता के कारण ही संभव होती है।

(ख) स्थानीय बोली

बहुत से व्यक्ति बोलियां मिलकर एक स्थानीय बोली बनती हैं जिनमें ध्वनि रोग वाक्य एवं अर्थ के स्तर पर पारस्परिक बोधगम्यता होती है यह किसी छोटे स्तर पर बोली जाती है जिनमें व्यक्ति बोलियों का समाविष्ट रूप होता है।

(ग) उप बोली

एकाधिक स्थानीय बोलियां मिलकर एक उप बोली बनाती हैं जैसे भोजपुरी की छपरिया, खकार,सहावारी,गोरखपुरी,नागपुरिया आदि अनेक उप बोलियां हैं।

(घ) बोली

एकाधिक उप बोलियां मिलकर एक बोली बनाती हैं जिसे विवासा भी कहा जाता है हालांकि कुछ विद्वानों ने कुछ बोलियों के उप वर्ग को उपभाषा कहा है जैसे बिहारी उपभाषा में भोजपुरी मैथिली और मगही बोलियों का वर्ग है।

(ड) उपभाषा

कुछ विद्वानों ने कुछ बोलियों के एक वर्ग को उपभाषा कहा है जैसे बिहारी उपभाषा में भोजपुरी मैथिली और मगही बोलियों का एक वर्ग है। लेकिन यह वर्गीकरण भ्रामक और गलत है इसमें व्याकरणिक समानता और परस्पर बोधगम्यता तो काफी हद तक मिल सकती है किंतु जातीय अस्मिता के कारण इनमें बनता है अतः हिंदी को बिहारी राजस्थानी आदि उप भाषाओं से अलग रखना सही नहीं है।

(च) भाषा

भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है जिसमें एक अधिक बोलियों अथवा उपभाषाए मिलकर एक भाषा बनाती हैं एक भाषा के अंतर्गत एकाधिक बोली हो सकती हैं जैसे हिंदी भाषा के अंतर्गत खड़ी बोली ब्रजभाषा अवधी भोजपुरी हरियाणवी मारवाड़ी आदि 18 बोलियां अथवा पश्चिमी हिंदी पूर्वी हिंदी बिहारी पहाड़ी और राजस्थानी भाषाएं हैं भाषा में ऐतिहासिकता जीवंतता स्वायत्तता और मानवता चार गुण पाए जाते हैं ऐतिहासिकता से अभिप्राय उनकी परंपरा और विकास से है जीवंतता का अर्थ उसके प्रयोग और प्रचलन से है स्वायत्तता से आज से सभी कार्य क्षेत्र में इसका प्रयोग होना है और मानकता का अर्थ भाषा किंतु जातीय अस्मिता तथा जातीय बौद्ध के कारण भाषा विशाल समुदाय की प्रतीक बन जाती है की संरचना में एकरूपता है यद्यपि बोली और भाषा में व्याकरणिक समानता और बोधगम्यता तो प्राय मिल जाती है।

२. प्रयोग के आधार पर

(क) सामान्य बोलचाल की भाषा

किसी भी समाज में रोजमर्रा के रूप में प्रयुक्त होने वाली सामान्य भाषा होती है यह प्राय संपर्क भाषा का काम करती है यह अपनी विभिन्न भाषिक इकाइयों शब्दावली और व्याकरणता के आधार पर अपनी पहचान बनाती है।

(ख) साहित्यिक भाषा

यह भाषा का वह आदर्श रूप है जिसका प्रयोग साहित्य रचना शिक्षा आदि में होता है यह प्राय परिनिष्ठित होती है किंतु साहित्यिक भाषा कभी-कभी सामान्य भाषा के नियमों को तोड़ती है। विशिष्ट चयन संयोजन से यह विशिष्ट भाषा बन जाती है हिंदी अंग्रेजी फ्रेंच रूसी जर्मन आदि भाषाएं साहित्यिक भाषा के रूप में भी प्रयुक्त होती हैं।

(ग) व्यवसायिक भाषा

यह भाषा व्यवसाय व्यापार में प्रयुक्त होने के लिए विशेष रूप धारण करती है यह प्राय औपचारिक एवं अनौपचारिक और तकनीकी या अर्ध तकनीकी होती है यह लिखित और मौखिक दोनों रूपों में प्रयुक्त होती है इसकी व्यवसाय या व्यापार संबंधी अपनी विशिष्ट शब्दावली और संरचना होती है।

(घ) कार्यालय भाषा

इस भाषा का प्रयोग कार्यालयों निकायों कंपनियों प्रशासन आदि में होता है यह सामान्य भाषा पर आधारित तो होती है लेकिन शब्दावली तथा संरचना में अंतर मिल सकता है यह तकनीकी का अर्थ तकनीकी होती है इसलिए यह प्राय औपचारिक शैली में लिखी जाती है इसके मौखिक रूप के स्थान पर लिखित रूप का अधिक प्रयोग होता है।

(ड) राजभाषा

यह सरकार और जनता के बीच प्रयुक्त होने वाली भाषा है यह प्राय परिनिष्ठित और मानक होती है यह देश में अधिक बोले जाने वाली भाषा होती है इसमें विषय अनुसार शब्दावली और संरचना का प्रयोग होता है इसका प्रयोग प्राय सरकारी मंत्रालयों कार्यालयों कंपनियों नियमों निकायों संसद आदि में होता है ताकि जनता के साथ संबंध बनाया जा सके इसे सर्वजन सर्व कार्य सुलभ बनाने के लिए इसकी शब्दावली में उपयुक्त चयन करने की भी सुविधा रहती है देश में प्रयुक्त अन्य भाषाओं की अपेक्षा इसका प्राय प्रमुख स्थान रहता है भारत की राजभाषा हिंदी है।

(च) राष्ट्रभाषा

राष्ट्र की प्रतिष्ठा का प्रतीक राष्ट्रभाषा होती है इसे राष्ट्रीय स्तर पर गौरव में स्थान प्राप्त होता है जो राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का होता है वास्तव में राष्ट्रभाषा का संबंध राष्ट्रीय चेतना से होता है और राष्ट्रीय चेतना सांस्कृतिक चेतना से जुड़ी होती है इसमें अपने देश की महान परंपरा और सामाजिक सांस्कृतिक अस्मिता जागृत होती है राष्ट्रभाषा राजभाषा हो सकती है लेकिन राजभाषा राष्ट्रभाषा भी हो यह आवश्यक नहीं भारत में अधिकतर भाषाओं का गौरव में इतिहास रहा है इसलिए बहुभाषी भारत में इनको राष्ट्रभाषा कहा जाता है

(छ) गुप्त भाषा

यह भाषा किसी विशेष वर्ग या समूह या संप्रदाय में प्रयुक्त होती है जिसे उसी वर्ग के लोग समझ सके इसे वर्ग भाषा या चोर भाषा भी कहते हैं इसकी सीमा भौगोलिक नहीं होती है वस्तुत यह भाषा सेना डकैतों या चोरों द्वारा प्रयुक्त होती है इसे कूट भाषा भी कह सकते हैं जो गोपनीय और मनोरंजन के लिए प्रयुक्त होती है यह वस्तुत अंतरंग वर्ग की भाषा है।

(ज) मृतभाषा

जिस भाषा का प्रयोग भूतकाल में जीवंत भाषा के रूप में होता रहा हो जिसका विपुल साहित्य भंडार भी हो और जिसका प्रयोग राजकाज में भी हुआ हो किंतु वर्तमान काल में यदि जिसका व्यवहार सामाजिक दृष्टि से नहीं हो रहा हो अथवा उसका प्रयोग बहुत ही सीमित हो गया हो तो उसे मृतभाषा कहते हैं वर्तमान में इस भाषा का अस्तित्व परंपरा धर्म संस्कृति और सुरक्षित रखने की दृष्टि से होता है यह एक प्रकार से पुस्तकालय भाषा का रूप ले लेती है ग्रीक लेटिन संस्कृत आदि भाषाओं का कभी अत्यधिक प्रयोग होता था किंतु अब इनका प्रयोग अति सीमित संदर्भों में हो रहा है।

३. निर्माण के आधार पर

(क) सहज भाषा

सामान्य बोलचाल की भाषाएं जिन का उद्भव प्राकृतिक और सहज रूप में हुआ है जैसे हिंदी अंग्रेजी जर्मन आदि।

(ख) कृत्रिम भाषा

विभिन्न भाषाओं के बीच सार्वभौमिक रूपों को लेकर अंतरराष्ट्रीय संप्रेषण की दृष्टि से कृत्रिम भाषा के निर्माण कार्य का प्रयास हुआ जैसे एस्पेरेटो इंडो। इसका उद्देश्य विभिन्न भाषा भाषी लोगों को परस्पर लाकर भाषिक आदान-प्रदान की सुविधा देना था कृत्रिम भाषा के दो उपभेद हैं

 1. सामान्य कृत्रिम भाषा — सामान्य बोलचाल में प्रयुक्त करने के लिए बनाई गई भाषा जैसे एस्पेरेटो भाषा।

 2. गुप्त कृत्रिम भाषा — किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए बनाई गई भाषा जैसे सेना दलालों डाकुओं आदि की भाषा।

४. मानकता के आधार पर

मानक या परिनिष्ठित भाषा

जो व्याकरण सम्मत तथा प्रयोग सम्मत हो ध्वनि शब्द वाक्य आदि में व्याकरण सम्मत होने के साथ-साथ एकरूपता और लोक स्वीकृति हों जैसे मुझे घर जाना है

मानकेतर भाषा

जो प्रयोग सम्मत हो जिसमें लोग स्वीकृति हो किंतु व्याकरण सम्मत न हो जैसे मैंने घर जाना है

अमानक भाषा

जो व्याकरण सम्मत और एक रूपी ने हो तथा उसे लोग स्वीकृति भी प्राप्त न हो यथा मेरे को जाना है।

उपभाषा

यह भाषा व्यवहार में अनौपचारिकता अतिशय वादी रूप है जो प्राय अशिक्षित या अर्थ शिक्षित वर्ग के लोगों में चलती है इसमें तत्वों के साथ-साथ अशिष्ट एवं ग्राहक रूपों तथा स्थानीय बोलचाल के खेत और अश्लील शब्दों का भी प्रयोग धड़ल्ले से होता है।

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