मधु-कैटभ नाम धरे तिनके | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | चण्डी- चरित्र | गुरु गोविंद सिंह |
मधु-कैटभ नाम धरे तिनके।
अति दीरघ देह भये जिनके।
तिने देखि लोकेस डरौ हिय में।
जग-मातु कौ ध्यान धरौ जिय में ॥9॥
मधु-कैटभ नाम धरे
प्रसंग : यह पद्य दशम गुरु गोविंद सिंह विरचित ‘चण्डी- चरित्र’ में से उद्धृत किया गया है। पुराणों और ‘सप्तशती’ के आधार पर कवि ने अपनी इस रचना में अनेक नामा चण्डिका के चरित्र का काव्यात्मक गायन किया है। राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य के जिज्ञासा प्रकट करने पर चण्डी के प्रकाट्य की कथा सुनाते हुए मार्कण्डेय ऋषि ने जो कुछ कहा, उसका वर्णन करते हुए, कवि कह रहा है
व्याख्या : भगवान विष्णु के एक कान की मैल से जो दो दैत्य उत्पन्न हुए, उनके नाम क्रम से मधु और कैटभ रखे गए। उन दोनों के शरीर बड़े ही मोटे-तगड़े, ऊंचे-लम्बे और विशाल थे। वे दोनों इतने विशालकाय और भयानक थे कि स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा भी उन्हें देखकर मारे डर के आतंकित होकर रह गए। मारे डरके, उस भय और आतंक से छुटकारा पाने के लिए ब्रह्मा जी जगत् माता का मन-ही-मन में स्मरण और निरन्तर ध्यान करने लगे।
भाव यह है कि जिस राक्षस-द्वय ने सृष्टिकर्ता ब्रह्मा तक को संत्रस्त कर दिया था, आमजनों और देवों पर उसका प्रभाव कितना विषम एवं प्रलयंकर हुआ होगा।
विशेष
1. कवि ने पद्य में मधु-कैटभ नामक दैत्य की विकरालता का संकेत दिया है।
2. ब्रह्मादि देवों पर उन दैत्यों के आतंक को चितारा है।
3. ‘जग – मातु कौ ध्यान’ पद मूल कथावस्तु के आरम्भ के भाव को सूक्ष्मतः द्योतित करने वाला है।
4. सिवाए वर्णनात्मकता और कथा – सूत्र को आगे बढ़ाने के इस पद्य में और कुछ भी नहीं है।
5. वर्णन और अन्त्यानुप्रास अलंकार हैं। तोटक छंद है।
6. भाषा-शैली सामान्य वर्णनात्मक है।
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