मध्यकाल में भक्ति आंदोलन के अग्रणी संत - Rajasthan Result

मध्यकाल में भक्ति आंदोलन के अग्रणी संत

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मध्यकाल में भक्ति आंदोलन की शुरुआत सर्वप्रथम दक्षिण के अलवार तथा नयनार संतों द्वारा की गई। बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में रामानंद द्वारा यह आंदोलन दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाया गया। इस आंदोलन को चैतन्‍य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम, जयदेव ने और अधिक मुखरता प्रदान की। भक्ति आंदोलन का उद्देश्य था- हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार तथा इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय स्थापित करना। अपने उद्देश्यों में यह आंदोलन काफी हद तक सफल रहा।

मध्यकाल में भक्ति आंदोलन के अग्रणी संत

रामानुज

रामानुज आरंभिक सुधारकों में से एक है। दक्षिण में पैदा हुए रामानुज़ ने उत्तर भारत के कुछ तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया | उन्होंने ईश्वर को प्रेम और सोंदर्य का सागर माना | उनकी शिक्षाएं उपनिषदों और भगवद् गीता पर आधारित थी | उन्होंने जो भी शिक्षादी लोक भाषा में दी। जल्द ही बडी संख्या में लोग उनके अनुयायी हो गए। रामानंद उनके शिष्य थे। उन्होंने उनकी शिक्षाओं को उत्तर भारत के विभिन्न भागों में फेलाया ।

रामानंद

रामानद पहले मुधारक थे जिन्होंने उत्तर भारत की जनता को उनकी प्रमुख भाषा हिन्दी में उपदेश दिया। उनकी शिक्षा बनारस में हुई थी उन्होंने यह उपदेश दिया की उच्च और निम्न पैसा कुछ नहीं होता हैं। ईश्वर की दृष्ट्रि में सभी मनुष्य समान हैं। बे राम के प्रबल भक्त थे। उन्होंने सभी जातियो और स्तरों के लोगों को अपना अनुयायी बनाया। उसके बारह प्रमुख शिष्य थे I उनमें से एक नाई था, दूसरा जुलाहा, तीसरा मोची, चोथे कबीरदास, पांचवां एक स्त्री जिसका नाम पद्मावती था। उन्होंने ईश्वर को स्नेही पिता के रूप मे माना। उनका जीवन काल चौदहवी शताब्दी था |

कबीर

कबीर रामानंद के प्रसिद्ध शिष्य थे कहा जाता है कि वह एक विधवा ब्राह्मणी की संतान थी जिसने उन्हें जन्म के पश्चात एक तालाब के किनारे छोड़ दिया था एक मुस्लिम जुलाहा दंपत्ति ने उनका पालन पोषण किया वह बाद में जुलाहे का काम करने लगे लेकिन वह स्वामी रामानंद की शिक्षाओं की तरफ आकर्षित थे |

वह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता चाहते थे उन्होंने बताया कि हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही ईश्वर की संतान है मूर्ति पूजा धार्मिक रस्मों और कर्मकांड में उनकी कोई आस्था नहीं थी उन्होंने यह शिक्षा दी कि अल्लाह और ईश्वर तथा राम और रहीम एक ही है वह सर्वव्यापी हैं कबीर के वक्त कबीरपंथी के लाए हजारों हिंदू-मुस्लिम कबीर के अनुयाई बने उनका जीवन काल संभवत 15वी सदी है।

नामदेव

नामदेव जन्मना मल्लाह थे वह महाराष्ट्र के रहने वाले थे उन्होंने मराठी में सुंदर स्रोतों की रचना की वह सभी ईश्वर के प्रति गहन समर्पण से सरोवर हैं भगवान विथोबा के रूप में उन्होंने विष्णु की पूजा की उनके कुछ पद सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहब में भी संकलित है विभिन्न जातियों के असंख्य लोग उनके अनुयाई बने।

गुरु नानक 1469 -1538 ईसवी

गुरु नानक सिख धर्म के संस्थापक थे सांसारिक विषयों में उनकी बचपन से ही कोई रुचि नहीं थी 29 साल की उम्र में वे साधु हो गई मक्का और मदीना की यात्रा की उन्होंने अपने शिक्षाओं का प्रचार के लिए दूर-दूर तक की यात्राएं की अंत में वे करतारपुर में बस गए थे उन्होंने विशुद्ध और सहज जीवन पर बल दिया उन्होंने ईश्वर की एकता का ज्ञान दिया और मूर्ति पूजा का खंडन किया वे जाति व्यवस्था के विरोधी थे गुरु नानक के अनुयाई सिख कहलाए उन्होंने लंगर आरंभ किया जहां सभी जातियों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे |

नानक की शिक्षाएं पदबद्ध है। वे सभी आदि ग्रंथ में संकलित है बाद में आदि ग्रंथ गुरुमुखी में लिपिबद्ध किया गया सिखों के पवित्र पुस्तक ग्रंथ साहिब के नाम से लोकप्रिय है इसमें कबीर नामदेव और अन्य भक्त तथा सूफी संतों की रचनाएं संकलित है|

चैतन्य (1485-1533)

भगवान कृष्ण के उत्कृष्ट भक्त चैतन्य ने बंगाल के रहने वाले थे बचपन से ही विद्याध्ययन में उनकी गहरी दिलचस्पी थी| उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया उन्होंने एक साधु व्यक्ति की पुत्री से विवाह किया 24 साल की उम्र में उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़ दिया और सन्यासी हो गए उन्होंने संपूर्ण दक्कन बिहार बंगाल और उड़ीसा की यात्राएं की थी उनके अनुयायियों ने भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजे से थे उन्होंने वृद्धों और असहायों की सहायता की उन्होंने जाति व्यवस्था कि असमानता का विरोध किया|

उन्होंने भक्ति के संदेश को बंगाल में प्रचारित किया उन्होंने संकीर्तन अथवा भगवान के नाम के जनगान को लोकप्रिय बनाया उनके गीत आज भी बंगाल में बहुत लोकप्रिय हैं उनके अनुयायियों ने महाप्रभु के नाम से संबोधित करते हैं।

तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास राम के भक्त थे उन्होंने हिंदी में राम की कथा कहीं | वह राम संप्रदाय को लोकप्रिय बनाने वालों में प्रमुख थे उन्होंने राम चरित्र मानस की रचना की जानकी मंगल और पार्वती मंगल उनकी अन्य हिंदी रचनाएं हैं अपनी रचनाओं में उन्होंने मां-बाप के प्रति पुत्र के प्रति गुरु के प्रति शिक्षा के प्रति और प्रजा के प्रति राजा के कर्तव्य पर जोर दिया |

गुरु रामदास

वह एक प्रसिद्ध शिक्षक थे वह 1608 में पैदा हुए थे महान मराठा शासक छत्रपति शिवाजी रामदास के अनुयाई थे उन्होंने ईश्वर के समक्ष सभी मनुष्य की समानता पर बल दिया है | उन्होंने कहा कि भक्ति के माध्यम से कोई भी ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकता है गुरु रामदास केवल धार्मिक उपदेशक ही नहीं थे बल्कि राष्ट्र निर्माता भी थे I

तुकाराम

तुकाराम महाराष्ट्र के संत थे पांडुरंग अथवा कृष्ण की स्थिति में उन्होंने बड़ी संख्या में मराठी भाषा में अभंगो अथवा भक्ति गीतों की रचना की | उन्होंने एक ऐसे ईश्वर में आस्था दिखायी जो कृपालु दयालु और संरक्षक है

ज्ञानेश्वर

वह महाराष्ट्र के महानतम संतो में से एक हैं विथोबा अथवा कृष्ण के रूप में उन्होंने विष्णु की उपासना की 14 साल की उम्र में उन्होंने भगवद्गीता का मराठी में अनुवाद किया इस पुस्तक को ज्ञानेश्वरी कहा जाता है I

मध्यकाल में भक्ति आंदोलन दक्षिण भारत

नयनमार

दक्षिण भारत में नयनमार और आलवार भक्ति आंदोलन के विख्यात संत थे शिव के भक्त नयन मारो की संख्या 63 थी अप्पर सुंदरार तिरु गन्ना, सबंडर, और मनिकावाचाकार उनमें से प्रमुख थे भगवान कृष्ण की स्तुति में इन संतो ने बहुत से पदों की रचना की थी |

नांबियांडार नामक संत ने नयनमारों के भक्ति गीतों का संकलन किया| अप्पर, तिरुगन्ना, संबंडर ने थेवरम् स्रोत गान की रचना की । मनिकावाचाकार के गीत तिरुवाचकम् के रुप में लोकप्रिय है सेखिझार द्वारा रचित पेरियापुराणम् से हमें नयनमारों के जीवन के बारे में पता चलता है।

आलवार

आलवार भगवान् विष्णु के पूजक थे। और इनकी संख्या बारह थी। इनमें नम्मालवार, तिरूमगई आलवार. अंडाल और पेरीवालार प्रसिद्ध थे। आलवारों के गीतो को नादामुनी ने नलयिरा दिव्य प्रबन्धन के नाम से संग्रहित है। अंडार के भक्तिगीत तिरुप्पवई कहे जाते है |

बासव

बासव कर्नाटक के रहने वाले थे उन्होंने वीर से अथवा लिंगायत संप्रदाय की स्थापना की बासव के अनुसार शिव सर्वोच्च भगवान है बासव ने बाल विवाह और मूर्ति पूजा का विरोध किया |

 

भक्ति आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व

बहुत से भक्त कवि संतो ने मुक्ति के मार्ग के रूप में तपवाद को निरस्त किया वे अधिकांश गृहस्थ थे। साथ ही साथ उनमें संगठित धर्म कि अस्वीकृति और स्त्री और निम्न जातियों के भक्तों के प्रति और अधिक समानाधिकारवादी दृष्ट्रिकोण पर आधारित आत्मिक भवित विमर्श का सार्वभोम विषय था।

स्त्री और शूद्र जो परम्परागत पदानुक्रम वादी समाज व्यवस्था के निचले पायदान पर थे। सच्ची विनम्रता और समर्पण के उदाहरण बन गए। स्त्री कवयित्री संतो ने भी भवति आदोलन में बड़े पैमाने पर सार्थक भूमिकाए अदा की। फिर भी, इन में से बहुतों को इस पुरूष प्रधान आन्दोलन में अपनी स्वीकार्यता के लिए संघर्ष करना पड़ा |

ईश्वर के प्रति अपने उत्कृष्ठ समर्पण उत्कृष्ठ काव्य और आध्यात्मिक समानता के लिए अपने अडीग आग्रह के सहारे अनिच्छा से ही सही अपनी समकालिन बिरादरी में उन्होंने स्वीकृति और संज्ञान प्राप्त किया।

 

महिला संत

नीचे दी गई कवयित्रियां भक्ति आन्दोलन की कवयित्री संतो की चित्रमाला का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे ईश्वर के प्रति अपने प्रेम की प्रशंसा के लिए सामाजिक मानदंडों मूल्यों पतियों घर गृहस्ती या और समाज के त्याग में असाधारण रूप से क्रांतिकारी थी | अन्य महिला संतों ने पत्नियों और माताओं के रूप में अपने उत्तर दायित्व के निर्वाह के माध्यम से अपने को परंपरागत सामाजिक भूमिकाओं में समाने की कोशिश की सभी ने उत्कृष्ट काव्य की रचना की जो भाटो और गायकों के माध्यम से पूरे भारत में फैल गया I

अक्कामहादेवी

अक्का अथवा महादेवी नामों से भी जानी जाती है यह कर्नाटक के दक्षिण भाग में रहने वाली थी और शिव भक्ति थी इनका जीवन काल 12 वीं सदी है किंवदंतियों बताती हैं कि वह अपने देवीय प्रेमी की खोज में नग्न होकर घूमती थी उनकी कविताएं अथवा वकनाज, सामाजिक, मानदंडों और भूमिकाओं जिन्होंने उन्हें बांध रखा था के प्रति उनकी निराशा को प्रकट करती है वह भगवान शिव जिन्हें वह चेन्नामलिकार्जुन कहती थी के प्रति अपने तीव्र समावेशी प्रेम का साक्ष्य भी प्रस्तुत करती है शिव और केवल शिव के माध्यम से उनका प्यार पूरा हुआ और उनके वियोग में उनका हृदय बिखर गया I

जनाबाई

जनाबाई 13वीं सदी के आसपास महाराष्ट्र के एक शूद्र परिवार में पैदा हुईI युवावस्था में वे नामदेव प्रसिद्ध भक्त कवि के उच्च जाति परिवार में काम करने के लिए भेज दी गई इस घर में रहते हुए उन्होंने नामदेव की सेविका और वक्त दोनों रूपों में सेवा की जनाबाई ने घरेलू कामकाज और नीची जाति की औरत होने के कारण होने वाली समस्याओं पर 300 से ऊपर कविताएं लिखी |

मीराबाई

मीराबाई अथवा मीरा शासक राजपूत परिवार में पैदा हुई थी उनका काव्य कृष्ण के प्रति बचपन के उनके आकर्षण और अपने को उनकी विवाहिता मानने को अभिव्यक्त करता है उनकी इच्छा के विपरीत कम उम्र में ही उनकी शादी एक दूसरे राजपरिवार में कर दी गई किवदंतीयां के अनुसार मीरा कृष्ण को ही अपना सच्चा पति मानती थी यह किवदंतीया कृष्ण के प्रति उनके अमर प्रेम को भी अभिव्यक्त करती हैं यह विवरण मीरा के अपने वैवाहिक जीवन के संघर्ष का परिचय देते हैं जिनका संबंध उनके ससुराल से था उनके ईर्ष्यालु पति ने उन्हें मारने का असफल प्रत्यन किया।

कुछ किवदंतीया मीरा के भ्रमण सील साधुओं की संगत जो उस जाति की स्त्री के लिए अनुचित माना जाता था करने की उनकी इच्छा का ननंद द्वारा विरोध पर केंद्रित है अंत में उन्होंने वृंदावन समिति श्याम कृष्ण से संबंधित विभिन्न तीर्थ स्थलों के भ्रमण के लिए अपने पति और परिवार को छोड़ दिया | वहां उन्हें स्त्री होने के नाते पहले तो स्वीकार नहीं किया गया लेकिन बाद में उनके समर्पण निष्ठा और बौद्धिक चतुराई ने उन्हें वृंदावन के कृष्ण भक्तों की बिरादरी में शामिल करा दी ।

मीराबाई की कविता कृष्ण के साथ के आदित्य संबंध के चित्र करती है जिसमें मेरा केवल उनकी समर्पित पत्नी नहीं है बल्कि कृष्ण भी मीरा के अनुसरण में उत्कृष्ट हैं अपने पति गिरधर के प्रति एक निष्ठ भक्ति और समर्पण के कारण उन्हें मोटे तौर पर पत्नी के कर्तव्य और पितृसत्तात्मक मूल्यों को मानने वाली समझा जा सकता है लेकिन दूसरी और बहुत से उन्हें समाज व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में लेते हैं |

बहिना बाई

बहिना बाई अथवा बहिना 17वी सदीं मैं महाराष्ट्र की प्रसिद्ध कवित्री संत थी उनकी रचनाएं अब अंगों और खेतों में काम करने वाली महिलाओं के गीतों की शैली में रची गई है उनकी रचनाएं आत्मकथात्मक है जिनमें उनके बचपन गरीबी और विवाहित जीवन प्रसंग प्रमुखता से मिलते हैं विठोबा कृष्ण का दूसरा नाम के प्रति प्रेम आत्मक भक्ति के कारण पति से स्वाभाविक गोंद के बावजूद उन्होंने अपने सांसारिक पति के प्रति एक पत्नी की जिम्मेदारियों को गंभीरता से लिया।

उनके पति भक्त कवि तुकाराम के प्रति उनकी निष्ठा के भी आलोचक थे फिर भी उनकी कविता उनके पति और विवाह दोनों के प्रति उनके कर्तव्य को सम्मान का परिचय देती हैं इसका पता पति के प्रति पत्नी की जिम्मेदारियों पर उनकी रचनाओं से चलता है यद्यपि यह सामान्य है फिर भी यह माना जाता है कि उन्होंने कुछ शास्त्रीय प्रशिक्षण अपने पिता एक ब्राह्मण धर्म शास्त्री से ली थी उनकी कविताएं जाति के संत तुकाराम के विचारों पर आधारित है उस जाति में पैदा होने के बाद भी तुकाराम की अनुयायी बनी।

 

भक्ति आंदोलन के प्रभाव

भक्ति आंदोलन हिंदू और मुसलमानों को एक दूसरे के निकट लाया संतो ने जिस समानता की अवधारणा की शिक्षा दी उसे कठोर जाति व्यवस्था एक निश्चित सीमा तक कम हुई दमित लोगों में आत्मसम्मान का भाव जगह सुधारकों ने लोक भाषाओं में उपदेश दिए इससे देशी भाषाओं के साहित्य का विकास हुआ उन्होंने आम जनता की भाषा के स्रोत और गीतों की रचना की हिंदी और फारसी के मेल से उर्दू के रूप में एक नई भाषा विकसित हुई भक्ति आंदोलन में जनता को पुरोहितों की तानाशाही से मुक्त कराया इसने बहुदेववाद की अंतियों को सीमित किया |

इसमें सही सुनता की भावना को बढ़ाया हिंदू और मुसलमानों के बीच की दूरियां कम हुई वह मित्र भाव से साथ रहने लगे इसने दान और समर्पण के शुद्ध जीवन और मूल्यों पर बल दिया इस प्रकार इसने मध्यकालीन जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक स्तर में सुधार किया इसने भावी पीढ़ियों के लिए सहिष्णुता की भावना के साथ जीने का उदाहरण प्रस्तुत किया I

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