महाराणा प्रताप का इतिहास: History of Maharana Pratap - Rajasthan Result

महाराणा प्रताप का इतिहास: History of Maharana Pratap

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महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ के कटार गढ़ के बादल महल के जूनी कचहरी में हुआ।

बचपन का नाम = कीका

माता का नाम = जयवंता बाई

पिता का नाम = उदयसिह

महाराणा प्रताप की रानियों के नाम

1. अजब दे पवार

2. छीछर बाई

पुत्र का नाम = अमरसिह

राज्यभिषेक = 28 फ़रवरी 1572 गोगुन्दा उदयपुर

 

राज्याभिषेक के समय कृष्ण दास ने कमर पर तलवार बाधी थी|

प्रिय घोड़ा = चेतक

प्रिय हाथी = रामप्रसाद

 

राज्यभिषेक गुस्सा कुंभलगढ़ में 1572 में हुआ। इस समय मारवाड़ के राव चंद्रसेन उपस्थित हुए थे।

महाराणा प्रताप का भाई जगमाल अकबर की सेवा में चला गया। प्रताप को समझाने के लिए अकबर ने चार दूत मंडल भेजे थे जो निम्नलिखित हैं :-

1. जलाल खाँ कोरची – 1572

2. मानसिह कछवाह – 1573

3. भगवंत दास – 1573

4. टोडरमल – 1573

डूंगरपुर अभियान से लौटते समय मान सिंह ने उदयसागर झील की पाल पर प्रताप से भेंट की थी यहीं पर मान सिंह के सम्मान में प्रताप ने राजकीय भोज का आयोजन रखा था।

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप

हल्दीघाटी युद्ध 18 /21 जुन 1576

अकबर की तरफ से

सेनापति = मानसिंह

सहायक सेनापति = आसफ़ खाँ

लेख़क = बदायुनी – मुन्तख – उत – तवारीख

मध्यभाग = मानसिंह

अन्तिम चन्द्रावल = मिहत्तर खां, सेय्यद हाशिम बारहा

अग्रीम भाग का = आसफ़ खां

मानसिंह का हाथी = मर्दाना

 

बदायुनी ने इस युद्ध का आंखों देखा हाल वर्णन किया है।

मुगलों की अन्य हाथी :-

1. ग़ज़ मुक्ता

2. गजराज़

3. रणमदार

 

इस युद्ध की योजना अकबर का किला/मैगजीन दुर्ग में बनाई थी।

 

मेवाड़ी सेना का नेतृत्व हकीम खां सूरी ने किया था मेवाड़ी सेना के तीनों भागों के नेतृत्व करता निम्नलिखित हैं :-

1. हरावल = अग्रीम भाग- हकीम खां सूरी

2. ढोलान = मध्यभाग – महाराणा प्रताप सिंह

3. चन्द्रावल = पीछे का भाग – पूंजा भील

 

युद्ध में भाग लेने वाले महाराणा प्रताप के हाथी :-

1. लुणा

2. रामप्रसाद

युद्ध में भाग लेने के लिए महाराणा प्रताप कुंभलगढ़ से लोहसिंह होते हुए गोगुंदा पहुंचे थे इन्होंने लोहसिंह को शस्त्रागार और केलवाडा को आपातकालीन केंद्र बनाया|

बदायूनी के अनुसार इस युद्ध में मेवाड़ी सेना 3000 और मुगलिय के सेना 5000 थी।

इस युद्ध के प्रथम चरण में प्रताप की विजय हुई और दूसरे चरण में मानसिंह की विजय हुई।

मिर्जा राजा मानसिंह मांडलगढ़ मोलेला और खमनोर होते हुए हल्दीघाटी पहुंचा था। मानसिंह ने मांडलगढ़ में अपनी सेना को पहाड़ी युद्ध का प्रशिक्षण दिया था।

रक्त तलाई नामक स्थान पर मान सिंह और प्रताप के बीच सीधा युद्ध हुआ था।

छाला बिन जाने इस युद्ध में प्रताप की रक्षा की थी यह वीरगति को प्राप्त हुआ।

बलीचा नामक स्थान पर चेतक की मृत्यु हुई यहां चेतक का चबूतरा बना है यही पास की पहाड़ी पर चेतक पर आरूढ़ प्रताप की मूर्ति बनी है।

कोल्यारी नामक स्थान पर प्रताप ने घायल सैनिकों का उपचार करवाया था युद्ध के बाद प्रताप ने आवरगढ़ को राजधानी बनाया |

 

निम्नलिखित विद्वानों ने हल्दीघाटी को निम्नलिखित कहा गया है :-

1. बदायूनी = गोगुंदा का युद्ध

2. अबुल फ़ज़ल = खमनोर का युद्ध

3. A.L. श्री वास्तव = लोसिग का युद्ध

4. गोपीनाथ शर्मा = अनिर्णायक युद्ध/ स्थगित युद्ध

5. जेम्स टाँड़ = मेवाड़ की थमोपोली – प्रताप को हल्दीघाटी का शेर कहा |

 

ए एल श्रीवास्तव ने हल्दीघाटी को बादशाहबाग की संज्ञा दी।

हल्दीघाटी को स्वतंत्र सेनानियों की तीर्थ स्थल भी कहा जाता है |

युद्ध में निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति न होने पर अकबर ने मानसिंह के मुगल दरबार में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगाया और उसके घोड़े को शाहि दाग से मुक्त किया।

मिर्जा राजा मानसिंह ने अकबर को महाराणा प्रताप का हाथी रामप्रसाद भेट किया था जिसका नाम बदलकर अकबर ने पीर प्रसाद कर दिया।

अकबर ने इस युद्ध के बाद सही स्थिति की जानकारी लेने हेतु महमूद खां को भेजा था।

गोगुंदा के पास मायरा की गुफा को प्रताप ने शस्त्रागार के रूप में उपयोग किया था। 13 अक्टूबर 1576 को अकबर स्वयं मेवाड़ अभियान पर आया था परंतु असफल रहा।

 

अकबर ने शाहबाज खान को मेवाड़ अभियान पर तीन बार भेजा था।

1. 1577

2. 1578

3. 1579

 

कुम्भलगढ़ का युद्ध

इसी युद्ध के समय प्रताप ने सोण सोनगरा के किले का दायित्व सोपकर छाछन की पहाड़ी में शरण ली। भाण सोनगरा पराजित हुआ और कुम्भलगढ़ पर शाहबाज खां ने अधिकार किया ऐसा प्रथम बार हुआ जब इस दूर्ग पर मुस्लिम आधिपत्य संभव हुआ

1578- 80 के मध्य का काल प्रताप के भटकाव का काल माना जाता है इसी दौरान पाली के भामाशाह ने अपने भाई ताराचंद के साथ चुलिया नामक गांव में प्रताप से भेंट की और 20000 स्वर्ण मुद्राएं देकर प्रताप की सहायता की।प्रताप ने रामा महा साहनी के स्थान पर भामाशाह को प्रधानमंत्री नियुक्त किया |

अकबर ने 1580 में अर्ब्दुरहिम खाने खाना कोप्रताप के विरुद्ध भेजा था परंतु वह असफल रहा और अमर सिंह ने शेरपुर की मुगल चौकी पर अधिकार किया।

दिवेर का युद्ध 1582

दिवेर की मुगल चौकी का अधिकारी सेरिमा सुल्तान खान था इस युद्ध में प्रताप की विजय हुई और सेरिमा सुल्तान खां मारा गया |

कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा है।

दिवेर के युद्ध से ही प्रताप के विजयों का क्रम माना जाता है। इस युद्ध के बाद प्रताप ने लूणा चावंडिया को पराजित कर चावंड पर अधिकार किया और इसे अपनी आपातकालीन राजधानी बनाया। प्रताप ने चावंड में चावंड माता का मंदिर और बदनोर में हरिहर मंदिर का निर्माण करवाया ।

अकबर ने दिसंबर 1584 में जगन्नाथ कछवाहा को मेवाड़ अभियान पर भेजा परन्तु 1585 ईसवी में मांडल भीलवाड़ा नामक स्थान पर इसकी मृत्यु हुई यहीं पर इनकी 32 खंभों की छतरी बनी है।

1585 से 1597 के 12 वर्षों में अकबर ने एक भी मेवाड़ सैन्य अभियान नहीं भेजा क्योंकि वह उत्तर पश्चिमी सैन्य अभियानों में व्यस्त था।

19 जनवरी 1597 को चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई। चावंड के पास बाण्डोली नामक स्थान पर केजड़ बांध की पाल पर प्रताप की 8 खंभों की छतरी बनी है।

प्रताप का दरबारी साहित्यकार चक्रपाणि मिश्र था इनकी रचनाएं निम्नलिखित हैं :- 

1. मुहूर्त मार्तंड 

2. राजतिलक पद्धति 

3. विश्व बल्लभ

महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई

महाराणा प्रताप की मौत का कोई पुख्ता सुबूत तो नही मिल पाया था लेकिन कहा गया है कि चावंड में 56 की उम्र में शिकार करते समय एक दुर्घटना होने से उनकी मौत हो गयी।

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