मीरा के गिरधर नागर की छवि ईश्वर के सगुण-निर्गुण स्वरूप का अतिक्रमण करती है, कथन से अपनी सहमति का उल्लेख कीजिए |

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मीरा के गिरधर नागर सगुण भक्त कवियों के परम् आराध्य भगवान कृष्ण ही हैं। उनके समान ही वे उनके सगुण स्वरूप की लीलाओं का गान करती है। मीरा के पितामह रात्र बूदा जी वैष्णव भक्त थे । मीरा का पालन-पोषण और व्यक्तित्व निर्माण राव दूदा जी के वैष्णव संस्कारों के प्रभाव में ही हुआ। कहा जाता है कि मीरा को बाल्यकाल में ही गिरधर नागर का एक स्वरूप प्राप्त हो गया था और वह स्वरूप उन्हें अत्याधिक प्रिय था।

 

इस संदर्भ में लोक में कई किबदन्तियां भी प्रचलित हैं। एक प्रसंग मीरा की माता द्वारा उस स्वरूप को ही मीरा का वर बताने का भी है। संभवतः इन संयोगों से मीरा के बाल्यहृदय में कृष्ण के प्रति अनुरक्ति का बीज पड़ गया होगा जो उनके निरंतर कठिन होते जीवन का एक मात्र आधार या संबल बनता गया ।

मीरा के गिरधर नागर

कृष्ण को प्राय: वे ‘गिरधर नागर’ संबोधन देती है। संभवतः  मीरा को इस नाम में कृष्ण चरित्र की संपूर्णता का बोध होता है। गिरधर’ में यदि उनके लोकरक्षक स्वरूप की अभिव्यक्ति है तो ‘नागर’ में अद्भुत लोकरंजक स्वरूप की। इस प्रकार मीरा ने कृष्ण की ‘मोहिनी मूरत’ में सत्य, शील और कर्म का मेल देखा है। यह सौंदर्य मानवीय और सकर्मक है। उनमें मानवोचितता और अलौकिकता का अद्भुत मेल है। मीरा उन्हें अपने सबसे निकट का सच्चा साथी मानती है तथा उनके प्रति अपने सुख-दुख: भरे जीवन के समस्त अनुभवों के साथ निर्द्वन्द्व भाव से व्यक्त होती है।

कृष्ण मीरा के आराध्य हैं। अन्य भक्त कवियों के समान मीरा भी श्रीकृष्ण के लीलामय स्वरूप का ध्यान भजन या उनके प्रति आत्म निवेदन करती है, किन्तु मीरा का भावलोक प्रेमलोक है जिसमें वे आराध्य को उनके समस्त ऐश्वर्य और अलौकिकता के साथ निर्मित करन के बावजूद उनसे अपने सुख-दुख: का एक आत्मीय संबंध भी विकसित करती है

मीरा के गिरधर नागर को हरि, स्याम, नंदलाल, बिहारी जी, मोहन, गोपाल, गोविन्द, दीनानाथ, ब्रजनाथ, जोगिया जी, गिरधरलाल, मनमोहन, रमैया, भुवनपति, नन्द कुमार, पिया, पिव जैसे कितने ही संबोधन दिये हैं। वे कहती हैं :—

म्हारां री गिरधर गोपाल, दूसरों णाँ कूयां । 
दूसरां णां कूयां साधां सकल लोक जूयां ।।टेक।। 
माया छंडिया अन्ध छंडियां छांड्यां सगों सूयां । 
साधा ढिंग बैठ. बैठ, लोक लाज खूयां ।
गिरधर गोपाल मीरा के सर्वस्व हैं। वे स्वरूपवान और लोकहितकारी हैं। मीरा उनके अलौकिक सौन्दर्य के आगे प्रेम विवश हैं। उनका मुख सुंदर है। नेत्र कमल के समान हैं और दीर्घ नेत्रों की बांकी चितवन का तो कहना ही क्या। उनकी वाणी मीठी और सम्मोहन से भरी हुई है। सबसे बढ़कर तो उनकी वंशी का जादू है जिसके कारण प्रेम विवश मीरा उन पर बार-बार बलिहारी जाती है।
ऐसे कृष्ण के क्षण भर भी विलग होना मीरा को सह्य नहीं है। वे उन्हें अपनी आंखों में बसा कर रखती हैं। वह छवि क्षण भाव को भी विस्मृत न हो इसके लिए मीरा अपनी पलकों को अचल कर लेने की बात कहती है। यही नहीं कृष्ण सदैव उनके हृदय में बसे हुए हैं और उनसे प्रतिपल उनका मिलन होता वे कहती हैं । :—
‘स्याम मिलन सिंगार सजावाँ सुखरी सेज बिछावाँ । 
मीरा रे प्रभु गिरधर नागर, बार-बार बलि जावा ।।

ऐसे गिरधर को रिझाने का मीरा करोड़ों यत्न करती हैं। लोकलाज और कुल की मर्यादा के बंधनों की एक न सुनती हुई उनके प्रति प्रेम के धुंघरू पग में बांध कर मीरा नाच उठती है। इस प्रकार मीरा अपने रसिक के प्रति अपनी पुरानी प्रीत को जांचती है।
मीरा के गिरधर नागर में भक्त वत्सल प्रभु की करूणा के साथ-साथ लीला पुरूषोत्तम का रसित स्वरूप भी शामिल है। उनकी प्रीति से भक्त का मन उज्जवल रस से परिपूर्ण और लोकोपकारी हो उठता है। उसमें साधु तथा सुन्दर को पहचानने का विवेक आ जाता है। मीरा कहती हैं :—
भाई सांवरे रंग राची ।। टेक।। 
सज सिंगार बांध पग चूंघर, लोकलाज तज नाची। 
गया कुमत लयां साधों संगत श्याम प्रीत जग सांची।
ऐसे गिरधर मीरा के लिए अनमोल हैं। मीरा ने उन्हें तन-मन जीवन वार कर पाया है। कृष्ण को पाकर मीरा ने संसार से पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया है। उनके अनुसार यह संसार, इसके सुख वैभव से छोटे-मोटे तालाबों, झीलों जैसे हैं, जबकि कृष्ण महासागर हैं। उनके आगे तो गंगा-यमुना की भी बिसात नहीं। कृष्ण की सहज कृपा से मीरा उनके दरबार के महत्वपूर्ण सरदारों में से एक हो गयी हैं। कहती हैं :—

हल्या-मेल्याँ कामणा म्हारे, म्हा मिल्या सरदाराँ री ।
 कामदारौँ सूं काम णाँ म्हारे, जावा म्हा दरबाराँरी ।’
इस प्रकार मीरा यहां सामंती राज परिवार से मिले सत्ता और अधिकार के अनुभवों से अपने आराध्य के परम् अधिकारी स्वरूप का निर्माण करती है। इस प्रकार मीरा के कृष्ण में भक्त कवियों द्वारा निर्मित कृष्ण छवि का प्रभाव तो है, किंतु अपने भिन्न अनुभव लोक से वे उन्हें कई नये रूप भी प्रदान करती हैं ।
मीरा के प्रभु जीवमात्र की सद्गति के प्रेरंक सर्वव्याप्त और अविनाशी है। अपने आराध्य का स्पष्ट परिचय देती हुई मीरा कहती है :—
‘म्हारो गोकुल रो ब्रजवासी ।। टेक ।। 
ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ, बजवणताँ सुखरासी ।’
वे पुन: कहती हैं कि उनके अविनाशी प्रभु ने नंद यशोदा के पुण्य से उनके घर जन्म लिया है। अर्थात् उनके प्रभु में जन्म-मरण से परे होने का वही महात्म्य है जिसे निर्गुण संतों ने गाया है। ऐसे कृष्ण से मीरा अपने प्रेम संपन्न भावलोक में निर्विघ्न मिलती हैं। उसके रंग में रची हुई नाचती गाती हैं। वे साफ कहती हैं कि गिरधर नागर के रूप में उन्हें अचल-अविनाशी सुहाग प्राप्त हुआ है। लोकनिंदा के विष ने मीरा की भक्ति को तपा कर खरे सोने सा दमका दिया है।

गिरधर की सच्ची प्रीत से मीरा को कोई प्रलोभन डिगा नहीं पाया। हरि के रूठने की तो वे कल्पना भी नहीं कर सकतीं। हरि की कृपा से ही तो उनके जीवन का समस्त विष अमृत हो गया है । ऐसे करूणानिधान प्रभु समक्ष कभी-कभी मीरा कातर भी हुई हैं। ऐसे प्रसंगों में उन्होंने प्रभु को साभिप्राय गिरधर नागर’ या ‘गोवरधन गिरधारी’ कहा है। दृपद सुता, ‘सुदामा’, ‘शबरी’, ‘गजराज’, ‘गणिका’, ‘करमाबाई, ‘ आदि अनेक भक्तों को सहज ही मुक्ति देने वाले प्रभु के सम्मुख अतिभाव से प्रस्तुत होती हुई मीरा उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना भी करती है।
इसमें ही वे अपनी प्रीति का निर्वाह देखती है। मीरा ने इस प्रकार कृष्ण के प्रति अपने प्रेम की दृढ़ता और एक निष्ठता को अनेक प्रकार से कहने के साथ-साथ कृष्ण के स्वयं के प्रति प्रेम के प्रमाण भी चाहे हैं। वे कहती हैं :-
‘सांवरो म्हारो प्रीत विभाज्यो जी ।’
कृष्ण के लोक उद्धारक स्वरूप की नाना छवियों के साथ मीरा ने उनके लोकरंजक स्वरूप को भी निर्मित किया है। इस संदर्भ में वे ब्रजबिहारी की नाना लीलाओं का वर्णन करती हैं। श्रीकृष्ण का वंशीवादन, चीरहरण, नागनथैया, पनघट लीला, आदि अनेक लीलाओं को वे नये रंग में प्रस्तुत करती हैं। यहां कृष्ण का नटवर नागर स्वरूप व्यक्त हुआ है।
इस प्रकार मीरा के ‘गिरधर नागर’ की छवि उनके जीवन संघर्ष से शक्ति प्राप्त करने वाली एकनिष्ठ माधुर्यभाव की भक्ति द्वारा निर्मित हुई है। वे परमब्रह्म परमेश्वर समान जगत के उद्धारक और अविनाशी होने के साथ मीरा का अचल अविनाशी सुहाग भी है ।

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  2. मीरा की भक्ति में उनके जीवनानुभवों की सच्चाई और मार्मिकता है, कथन से आप कहां तक सहमत हैं ?
  3. मीरा के काव्य में पुरूष सत्तात्मकता और रूढ़िवादिता का तीखा विरोध मिलता है, कथन की विवेचना कीजिए |

 

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