मोक्षदा एकादशी की पूजा करते समय अवश्य पढ़ें यह व्रत कथा
मोक्षदा एकादशी :— महाभारत युद्ध के मैदान में महाराज युधिष्ठिर के अनुज अर्जुन के सामने बुजुर्ग थे जिन्हें देख उनके विरुद्ध शस्त्र नहीं उठा पा रहे थे। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
मोक्षदा एकादशी Vrat Katha:
महाभारत युद्ध के मैदान में महाराज युधिष्ठिर के अनुज अर्जुन के सामने बुजुर्ग थे जिन्हें देख उनके विरुद्ध शस्त्र नहीं उठा पा रहे थे। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था उस दिन मागशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। इसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी वर्ष की अंतिम एकादशी मानी जाती है। आइए जानते हैं इस व्रत की कथा।
मोक्षदा एकादशी की कथा श्रीकृष्ण ने खुद युधिष्ठिर को सुनाई थी। प्राचीन काल में चंपकनगर नाम का एक राज्य था जिसमें एक वैखानस नामक राजा राज्य करता था। वैखानस के राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। राजा वैखानस को अपना राज्य बेहद प्रिय था। वह अपनी प्रजा को पुत्र की भांति पालन करता था। एक रात राजा को बहुत बुरा सपना आया। उसने देखा कि की उसके पूर्वज नरक में पड़े हैं। यह देखकर वह बहुत दुखी हुआ। वह ब्राह्मणों के पास गया और सपने के बारे में बताया।
राजा ने कहा कि उसने सपने में अपने पूर्वजों को नरक में पड़ा देखा था। इससे वह बहुत दुखी है। वो उन्हें नरक से निकालने की गुहार लगा रहे थे। राजा ने ब्राह्मणों से कहा, ‘हे ब्राह्मण देवता! यह देख मुझे बहुत दुख हो रहा है। मैं उन्हें नरक से बाहर निकालना चाहता हूं। इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए।’ ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही में एक ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है जो भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता हैं। वहां आपकी समस्या जरूर हल हो जाएगी।
यह सुनकर राजा वैखानस ऋषि मुनि के आश्रम में गए। वहां जाकर उन्होंने बोला, ‘हे स्वामी, आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल मंगल है। लेकिन मुझे जो स्वप्न आया था उसमें मेरे पितर नरक भोग रहे हैं। मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूं। मैं बहुत असहाय महसूस कर रहा हूं। मैं उन्हें नरक से किस तरह निकालूं।’
राजा की बात सुन पर्वत ऋषि ने कहा, ‘महाराज, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में जो मोक्षदा एकादशी आती है उसका व्रत कीजिए। विधि विधान से पूजा कर दान-पुण्य करें। उस व्रत के प्रभाव से आपके पितर नरक से मुक्त हो जाएंगे।’ जैसा ऋषि मुनि ने कहा था ठीक राजा ने ऐसा ही किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के पितर नरक से मुक्ति पा गए।
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