आज है मोहिनी एकादशी, कथा, पूजा विधि, जानें क्यों पड़ा ये नाम और क्या है इसका महत्व - Rajasthan Result

आज है मोहिनी एकादशी, कथा, पूजा विधि, जानें क्यों पड़ा ये नाम और क्या है इसका महत्व

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मोहिनी एकादशी व्रत 22 मई को है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण करके समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को राक्षसों से बचाया था। ऐसी मान्यता है कि मोहिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति बुद्धिमान होता है, व्यक्तित्व में निखार आता है और उसकी लोकप्रियता बढ़ती है।

ऐसे नाम पड़ा मोहिनी एकादशी

 

समुद्र मंथन के अंत में वैद्य धन्वंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। दैत्यों ने धन्वंतरी के हाथों से अमृत कलश छीन लिया और उसे लेकर भागने लगे। फिर आपस में ही वे लड़ने लगे। देवता गण इस घटना को देख रहे थे, भगवान विष्णु ने देखा कि दैत्य अमृत कलश लेकर भाग रहे हैं और वे देवताओं को नहीं देंगे। ऐसे में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और दैत्यों के समुख आ गए। वह दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ही थी।

भगवान विष्णु के मोहिनी अवता को देखकर दैत्य मोहित हो गए और अमृत के लिए आपस में लड़ाई करना बंद कर दिया। सर्वसम्मति से उन्होंने वह अमृत कलश भगवान विष्णु को सौंप दिया ताकि वे असुरों और देवताओं में अमृत का वितरण कर दें। तब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग अलग कतार में बैठने को कह दिया। भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मुग्ध होकर असुर अमृतपान करना ही भूल गए। तब भगवान विष्णु देवताओं को अमृतपान कराने लगे।

इसी बीच राहु नाम के असुर ने देवताओं का रूप धारण करके अमृतपान करने लगा, तभी उसका असली रूप प्रत्यक्ष हो गया। इस भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसके सिर और धड़ को अलग कर दिया। अमृतपान के कारण उसका सिर और धड़ राहु तथा केतु के नाम से दो ग्रह बन गए।

मोहिनी एकादशी का महत्व

मोहिनी एकादशी का पौराणिक महत्व है। बताया जाता है कि माता सीता के वियोग से पीड़ित श्रीराम ने अपने दु:खों से मुक्ति पाने के लिए मोहिनी एकादशी व्रत किया था। इतना ही नहीं, युद्धिष्ठिर ने भी अपने दु:खों से छुटकारा पाने के लिए पूरे विधि विधान से इस व्रत को किया था।

मोहिनी एकादशी की पूजा विधि

इस दिन प्रातः स्नान करके भगवान का स्मरण करते हुए विधि विधान से पूजा और आरती करके भगवान को भोग लगाए। इस दिन भगवान विष्‍णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन ब्राह्मणों तथा गरीबों को भोजन या फिर दान देना चाहिए। इस दिन तिल का लेप लगायें या फिर तिल मिले जल से स्नान करें।स्नान के बाद लाल वस्त्रों से सजे कलश की स्थापना कर पूजा की जाती है।

भगवान विष्णु के मूर्ति या तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं और तुलसी, फल, तिल सहित भगवान की पूजा करें। इस व्रत को रखने वाले को स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए। व्रत वाले दिन निराहार रहना चाहिए। शाम में पूजा के बाद कुछ फलाहार कर सकते हैं। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का भी बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जागकर भगवान का भजन कीर्तन करें।

 

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