रवीन्द्रनाथ टैगोर का दर्शन | जीवन परिचय | - Rajasthan Result

रवीन्द्रनाथ टैगोर का दर्शन | जीवन परिचय |

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

 

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कलकत्ता में अपने परिवार के चौदहवें बच्चे के रूप में हुआ। उन्होंने अपनी पहली कविता आठ वर्ष की उम्र में लिखी। सन् 1873 में उनकी माता की मृत्यु हो गयी । दो सालों के बाद उन्होंने विद्यालय जाना छोड़ दिया। 1878 में वे वकालत पढ़ने के लिए इंग्लैण्ड गये, परंतु 1880 में वे बिना किसी शैक्षिक डिग्री के वापस घर आ गये। 1883 में उनका विवाह हो गया।

1901 में वे शांति निकेतन में बस गये और पांच शिष्यों के साथ अपना शैक्षणिक शोध प्रारंभ किया। 1913 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय की ओर से डी. लिट् उपाधि प्राप्त हुई। 1914 में उन्हें ‘गीतांजलि’ के लिए नोबल पुरस्कार मिला। 1915 में सरकार ने उन्हें सामंत (नाइट) बनाया।

1912 में वे संयुक्त राज्य गये, हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया और सितंबर 1913 में लौट आये। 1915 की मई में वे जापान गये। वहां से भारत लौटने के बाद वे गांधीजी के साबरमती आश्रम में गये। 22 दिसंबर, 1918 में शांति निकेतन में एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बना और भारतीय संस्कृति के केन्द्र विश्व भारती का 23 दिसंबर, 1921 को शुभारंभ हुआ। उन्होंने यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, ईरान, इराक में व्याख्यान दिये। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने टैगोर को 1940 में शांति निकेतन में डॉक्टर की उपाधि प्रदान की।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का दर्शन

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कविता की लगभग सैकड़ों पुस्तकें, लगभग पचास नाटक और लगभग चालीस उपन्यास, लगभग पंद्रह दार्शनिक व्याख्यानों व निबंधों पर पुस्तकें लिखी हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता गीतांजलि में आयी जो मूलतः बागला में लिखी गई थी और स्वयं उनके द्वारा अंग्रेजी में अनूदित की गयी।

उनकी दार्शनिक रूचि की रचनाएं हैं : साधना : द रियलाजेशन ऑफ लाइफ, पर्सनालिटी, क्रियेटिव यूनिटी, द रिलिजन ऑफ मैन । स्पष्टतः टैगोर ने अपने दर्शन की कोई व्यवस्थित व्याख्या नहीं की है । तथापि उनकी रचनाओं में । सत् का एक विशिष्ट दृष्टिकोण है और एक दार्शनिक तंत्र के अनेक सुझाव हैं। टैगोर के आधारभूत सिद्धान्तों के आधार पर उनके दर्शन की व्याख्या करने, आपादित निष्कर्ष निकालने और अनिवार्य व्यवस्थापन करने का प्रयास किया जा चुका है।

इन प्रयासों में सबसे विख्यात सर्वपल्ली राधाकृष्णन् द्वारा द फिलॉसोफी ऑफ रवीन्द्रनाथ टैगोर, 1918 का विशाल खंड है। टैगोर ने स्वयं इसकी प्रशंसा की है। टैगोर की दार्शनिक शिक्षाएं पूरे विश्व में मात्र इसकी साहित्यिक सुंदरता के कारण प्रसिद्ध नहीं हुईं बल्कि उनमें अंतर्निहित उन्नत व श्रेष्ठ विचारों के कारण हुईं। यहां पर उनके विचारों के मूलभूत तत्वों का एक संश्लिष्ट प्रस्तुतीकरण दिया जा रहा है।

ईश्वर

रवीन्द्रनाथ टैगोर अद्वैतवादी तो हैं परंतु शंकर के समान नहीं । ऐसा निरपेक्ष, जो इस विश्व में होने वाली घटनाओं से दूर अपनी पूर्णता में रहे वह मानव के किसी काम का नहीं है। निरपेक्ष इसके सारे रंगों, आभाओं और आकारों की सारी बाहुल्यता से युक्त वह चित्र है जिसमें हमारी रूचि है।

वह आधार नहीं है जिस पर कि यह विश्व चित्रित है। इस चित्र का रचयिता एक व्यक्ति, एक आध्यात्मिक सत् है । अतः, निरपेक्ष एक व्यक्ति है, एक रचयिता है, जो कर्ता है और रचना करता है, जिसे हम प्रेम कर सकते हैं और उसके द्वारा हमें प्रेम किया जा सकता है। असीम की सीमितता वैयाक्तिकता है। ईश्वर सब कुछ है, परंतु सभी वस्तुएं समानतः ईश्वर नहीं हैं।

ईश्वर को सर्वोच्च व्यक्ति के रूप में अनुभव करना हमारा लक्ष्य है, हमारा धर्म है। हम ऐसा तभी कर सकते हैं जब हम अपने वास्तविक स्वरूप को जानें, जो कि ईश्वर के साथ एकरूपता है। हम वस्तुतः अज्ञान के कारण ईश्वर के साथ अपनी एक रूपता को नहीं जान पाते । ईश्वर का दर्शन साक्षात् और आसन्न अंतर्ज्ञान है।

हम ईश्वर को अनुभव करते हैं जैसे कि हम प्रकाश का अनुभव करते हैं। सर्वोच्च के अपने दर्शन में हम जिस आनंद का अनुभव करते हैं, वह इस बात का प्रमाण है कि सर्वोच्च का अस्तित्व है।

प्रेम

प्रेम ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है। ज्ञान में या तो भेद को अलग रखा जाता है या फिर दुर्लभ एकता में पूर्णतः विघटित कर दिया जाता है। परंतु प्रेम में, प्रेमी और प्रिय भिन्न होते हुए भी एक होते हैं। प्रेम में एकता और भेद दोनों होते हैं। प्रेम ज्ञान की पूर्णता है। सर्वोच्च व्यक्ति इस प्रेम के आनंद को अनुभव कराने के लिए ही मनुष्य की रचना करता है, जो कि तभी संभव है जब प्रेमी व प्रिय दोनों भिन्न-भिन्न हों।

प्रकृति व मनुष्य

प्रकृति का निर्माण मनुष्य के घर के रूप में एक ऐसे साधन के रूप में किया गया है, जो अपनी सुंदरता के द्वारा मानव हृदय को जाग्रत करता है और उसे प्रिय, सर्वोच्च सत्ता, की ओर निर्देशित करता है। जैसे एक कलाकार एक कला की रचना कुछ व्यक्त करने और और निश्चित रस को उत्पन्न करने के लिए करता है, उसी प्रकार ईश्वर प्राकृतिक जगत का निर्माण मनुष्य में प्रेम को उत्पन्न करने के लिए करता है।

मनुष्य के विषय में एक मौलिक तथ्य उसका द्वैतवादी स्वभाव है। मनुष्य धरती का पुत्र और स्वर्ग का उत्तराधिकारी दोनों है। कमल के समान, जिसकी जड़ कीचड़ में परंतु फूल सूर्य के स्वच्छ प्रकाश में होता है। मनुष्य का इस अनिवार्य विश्व में सीमित आधार है और दिव्यता की लालसा के परिप्रेक्ष्य में असीमित आधार विद्यमान है। मनुष्य “आधिक्य का दूत” है क्योंकि मनुष्य में विद्यमान एक जैविक पशु की मांगों से कहीं अधिक, मनुष्य की आत्मा में आधिक्य है।

सभ्यता और संस्कृति –

कला, धर्म, दर्शन और विज्ञान के विकास द्वारा – मनुष्य के आधिक्य का उत्पाद है, जो मनुष्य को उसके जैविक उत्तराधिकार से परे ले जाता है। सर्वोच्च पर आधिक्य की इस अवधारणा को लागू करते हुए टैगोर कहते हैं कि सर्वोच्च अपनी बहुलता में असीम है, जो वैश्विक प्रक्रिया में स्वयं को व्यक्त करता है। अपने सबसे निम्न विकसित स्तर पर मनुष्य एक इच्छा करने वाला पशु है जो आत्म-विवर्धन के लिए वस्तुओं और व्यक्तियों की इच्छा करता है।

ज्ञान

मनुष्य के ज्ञान के तीन स्रोत हैं : इंद्रियां, बुद्धि और भावना | इंद्रियां : मनुष्य संसार को इंद्रियों के द्वारा जानता है। बुद्धि मनुष्य बुद्धि द्वारा विज्ञान और तर्क आधारित दर्शन की खोज करता है। भावना मनुष्य सर्वोच्च व्यक्ति की खोज भावना द्वारा करता है। सच्चा ज्ञान वस्तुओं का विश्व के संदर्भ में होने वाला ज्ञान है, वह ज्ञान जो भेद को धारण करता है और तब भी उन्हें उनकी एकता में ग्रहण करता है ।

साधना

साधना जीवन की वास्तविक अनुभूति, आत्म-प्रेम से अन्य के प्रति प्रेम को ओर ले जाती है। ईश्वर को प्रेम करना संपूर्ण विश्व को प्रेम करना है। यह द्वैत से अद्वैत की ओर गतिशील होना है। एक आदर्श मनुष्य जीवन की मांगों को पूरा करता है और अपने सभी सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है। संन्यास का मार्ग कोई आदर्श मार्ग नहीं है। जो संसार में पूर्ण रूप से लीन हैं और जो संसार का त्याग कर देते हैं, वे दोनों ही गलत हैं।

धर्म

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मानवता के धर्म का प्रतिपादन किया । व्यक्ति को अपने धर्म के साथ जीना चाहिए। व्यक्ति को ईश्वर की प्रेम पुकार का उत्तर प्रेम से देना चाहिए। ईश्वर के प्रति प्रेम में मानवता के प्रति और संपूर्ण प्रकृति के प्रति प्रेम अंतनिर्हित है। सच्चा धर्म प्रेम, संगति, सरलता, है। “जब ईश्वर अपने मंदिर के प्रेम द्वारा निर्मित होने की प्रतीक्षा करता है, मनुष्य ईंट लाता है।”

उन्होंने मूर्ति पूजा, अंधविश्वास और धार्मिक मतांधता के विरूद्ध भी लिखा। “हमें सभी संकरे बंधनों से परे जाना चाहिए और उस दिन की प्रतीक्षा करनी चाहिए, जब बुद्ध, ईसा और मुहम्मद तीनों एक हो जाएंगे।”

सामाजिक दर्शन

मनुष्य को बाह्य रूप में प्रकृति का सहयोगी बनने में और आंतरिक रूप में आध्यात्मिक रूप से विकसित होने में लग जाना चाहिए। टैगोर गरीबी, अंधविश्वास, छूआछूत और नारी उत्पीड़न जैसे अपने समाज की बुराइयों के विरूद्ध लड़े। उन्होंने पश्चिमी विज्ञान और विश्वासों का वैयक्तिक मूल्य, स्वतंत्रता व लोकतंत्र के लिए स्वागत किया। उनका मानना था कि राष्ट्रवाद का देशभक्ति से अंध भक्ति में पतन हो गया।

राष्ट्रवाद उच्चतर स्तर पर बढ़ाया गया वैयक्तिक स्वार्थ है। जैसे मनुष्य को आत्म केन्द्रीयता से सभी के प्रति प्रेम की ओर बढ़ना चाहिए, उसी प्रकार विश्व के राष्ट्रों को भी अन्य राष्ट्रों के प्रति प्रेम की ओर बढ़ना चाहिए ।

शिक्षा

रवीन्द्रनाथ टैगोर को अपने बाल्यकाल के अनुभव ने उनके शिक्षा के प्रति जीवन पर्यंत प्रतिबद्धता को प्रोत्साहित किया। उनके अनुसार, पारंपरिक विद्यालय बच्चों को कैदी बना देते हैं, जबकि स्वयं प्रसन्न होने और दूसरों को प्रसन्नचित्त करने की शक्ति के साथ पैदा हुए हैं । परंतु, पारंपरिक विद्यालयों में वे उन फूलों के समान हैं जिन्हें पुस्तक की प्रतियों के बीच दबा दिया गया है।

अतः उन्होंने भारत के प्राचीन आश्रमों पर आधारित एक आदर्श विद्यालय, शांति निकेतन की स्थापना की। इसमें एक बगीचा और एक हस्तकला की दुकान विद्यालय से जुड़े हुए थे। उनकी वातावरण के प्रति अभिरूचि उनके पेड़ रोपने के कार्यक्रम में अभिव्यक्त होती है। उन्होंने अपनी शैक्षिक प्रतिबद्धता का विस्तार एक विश्वविद्यालय विश्वभारती – की स्थापना द्वारा किया जहां उन्होंने विविधता में एकता की अंतर्राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतिपादन किया ।

यह भी पढ़े 👇

  1. श्री अरविन्द का जीवन परिचय व दर्शन
  2. विवेकानंद का दर्शन : philosophy of swami vivekananda
  3. गांधी का दर्शन क्या है आइए इसके बारे में जानते है?

 

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!