राधाकृष्णन का दर्शन, उद्देश्य, सारांश क्या है? जाने - Rajasthan Result

राधाकृष्णन का दर्शन, उद्देश्य, सारांश क्या है? जाने

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राधाकृष्णन का दर्शन:— इस इकाई का मुख्य उद्देश्य आपको भारत के महत्वपूर्ण विचारकों के दर्शन का एक संक्षिप्त विवरण देना है वह विचारक है डॉ एस राधाकृष्णन।

राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति थे जिनका जन्म दिवस प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है वह एक ऐसे दार्शनिक थे जिन्होंने दर्शन के वृहत विषय पर व्यापक रूप से कार्य किया।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888 से 1975) का जन्म तिरूतनी के एक मध्यवर्गीय तेलुगु परिवार में तमिलनाडु राज्य में हुआ था तिरूतनी ब्रिटिश भारत का एक नगर जो वर्तमान चेन्नई के उत्तर पश्चिम से 64 किलोमीटर दूर था उनका प्रारंभिक समय तिरूतनी और तिरुपति में बीता।

उनके पिता एक स्थानीय जमीदार की सेवा में एक अधिनस्थ राजस्व अधिकारी थे उनकी प्रारंभिक शिक्षा तिरूतनी के प्राथमिक बोर्ड हाई स्कूल में हुई 1896 में वे तिरुपति के हरमसबर्ग एवेजेलिकल लूथरल मिशन स्कूल में स्थानांतरित हो गए वह वेल्लोर में बोहिर्स कॉलेज में शामिल हुए।

परंतु 17 साल की उम्र में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज चले गए 1906 मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से दर्शन में स्नातकोत्तर की डिग्री के साथ उन्होंने स्नातक की या अपनी m.a. की डिग्री के लिए उन्होंने द अटैक्स ऑफ वेदांत एंडइट्समेटा फिजिकल फ्रिजपोजीशन पर शोध प्रबंध लिखा जब वह मात्र 20 वर्ष के थे तब यह प्रकाशित हुआ।

राधाकृष्णन का दर्शन

राधाकृष्णन विचार के किसी तंत्र के अनुयाई नहीं थे अपितु विभिन्न दार्शनिकों द्वारा प्रदर्शित विभिन्न विचारों के प्रति उन्मुख थे सभी दृष्टिकोण में निश्चित रूप से वह अद्वैत वेदांत के तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा और नीतिशास्त्र के साथ अधिक जुड़े हुए थे जिसने उनके विचार की धारा निश्चित की |

राधाकृष्णन का तत्व मीमांसा

शंकर के समान राधाकृष्णन भी यह जानते थे की सत्य ब्रह्म है जो एक आध्यात्मिक विश्व से परे एवं निरपेक्ष है उन्होंने उसे आध्यात्मिक कहा क्योंकि वह भौतिक नहीं है उन्होंने उसे विश्वास कहा क्योंकि विश्व उसे बांध नहीं सकता ।

और वह निरपेक्ष है क्योंकि वह एक है पूर्ण चैतन्य है अनंत संभावनाओं के साथ पूर्ण स्वतंत्रता है ब्रह्म अनिर्वचनीय है और ईश्वर के रूप में स्वयं को अभिव्यक्त करता है जो विश्व का रचयिता है उसके अनुसार यहां दो जगत हैं ।

भौतिक जगत जिसका अध्ययन विज्ञान करता है और आध्यात्मिक जगत जिसे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लोग देखते हैं वह इसे विश्व आती या आत्मा का अनंत पक्ष कहते हैं उपनिषद में कहा गया है सर्वम खलु इदम ब्रह्मा 

जो कुछ भी वह ब्रह्मा या आत्मा में व्याप्त है उसे किसी अन्य प्रकार से नहीं देखा जा सकता यह आत्मा मनुष्य में अपने पूर्ण रूप से अभिव्यक्त होता है जिसका एक अद्वितीय स्थान है उनके अनुसार मनुष्य

अहवाद और स्व: परात्पर का स्वार्थ और सार्वभौमिक प्रेम का विलक्षण संयोजन है यह मनुष्य में व्याप्त सीमित एवं असीम पक्षों के कारण है| अतः मनुष्य की सृष्टि में एक विशेष भूमिका है मनुष्य वह जीव है जो स्वयं परातत्पर आत्म प्रकाशन और योजना योग्य है।

क्योंकि मनुष्य एक शरीर धारी आत्मा है वह अपने अंतिम लक्ष्य को प्रत्यक्ष प्राप्त नहीं कर सकता अतः उसके भाग्य का पहला पक्ष उसका अपने शारीरिक अस्तित्व से मुक्त होना है। परंतु इसमें मानव स्वतंत्र तो हो सकता है किंतु इससे सृष्टि समाप्त नहीं हो जाती और जब तक यह वैश्विक प्रक्रिया समाप्त नहीं होती पूर्ण एकता स्थापित नहीं हो सकती ।

अतः किसी के लक्ष्य के अंतिम पक्ष अवश्य ही वैश्विक प्रक्रिया के अंत में होने वाली एकता की अनुभूति है व्यक्ति तब तक वैश्विक प्रक्रिया से मुक्त नहीं हो सकता जब तक कि सभी बच्चे हुए हैं वैश्विक प्रक्रिया तभी अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुंचेगी जब सभी व्यक्ति दिव्यता का अनुभव कर लेंगे राधाकृष्णन इसे सर्वमुक्ति कहते हैं एक बार इसका अनुभव हो जाने पर सृष्टि का उद्देश्य पूर्ण हो जाएगा और सभी वस्तुएं ब्रह्म में पुणे लीन हो जाएंगी।

ज्ञान मीमांसा

राधाकृष्णन ज्ञान के तीन स्रोत स्वीकार करते हैं इंद्रीयानुभव, बौद्धिक संज्ञान और सहज बोध। इंद्रीयानुभव द्वारा हमें बाहिय जगत की बाहिय विशेषताओं का ज्ञान होता है हमें वस्तुओं के एक इंद्र गुणों का ज्ञान होता है इंद्रीयानुभव द्वारा प्रदत्त आंकड़ों से प्राकृतिक विज्ञान की विषय वस्तु तैयार होती है बौद्धिक संज्ञान या जिसे राधाकृष्णन तार्किक ज्ञान कहते हैं प्रत्यक्ष ज्ञान के विश्लेषण और संश्लेषण पर निर्भर करता है हम प्रकृति की वस्तुओं को इसी ज्ञान द्वारा प्रबंधित और नियंत्रित करते हैं तार्किक ज्ञान और इंद्रीयानुभव से वह साधन है जिनके द्वारा हम व्यवहारिक उद्देश्यों में अपने और पर्यावरण पर नियंत्रण रखने में सक्षम हो पाते हैं।

यद्यपि वे ज्ञान के दो साधन स्वीकार करते हैं, किंतु वह प्रत्यक्ष वस्तु की वास्तविकता अखंडता को प्रकट करने में असफल होते हैं बौद्धिक प्रतीक प्रत्यक्ष वास्तविकताओं को जैसी वह हैं उसी प्रकार प्रदर्शित नहीं कर सकते।

इसके अतिरिक्त अनुभव और भावनाओं का संपूर्ण जीवन मांसपेशियों के आनंद एवं दुख आत्मा की वेदना और हर्ष विचार से बाहर रहता है राधाकृष्णन ज्ञान के ऐसे उच्च प्रकार के विषय में सोचते हैं जहां विचार भावना और संकल्प एक पूर्ण में विलीन हो जाते हैं जहां कोई द्वेत नहीं होता।

वास्तु के ज्ञान और उसके अस्तित्व में कोई भेद नहीं होता यह संभव द्वारा होने वाला ज्ञान का प्रकार है राधाकृष्णन इसे सहज बोध कहते हैं सहज बोध में ज्ञाता ज्ञात वस्तु के साथ तादात्म्य स्थापित करता है क्रोध के उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट किया जा सकता है कोई भी बौद्धिक विचार हमें क्रोध की भावना का विचार नहीं प्रदान कर सकता हम इसे केवल क्रोधित होकर ही जान सकते हैं।

अतः हम कहते हैं कि अंतर्ज्ञान एक एकता ज्ञाता और ज्ञात वस्तु के बीच लगभग एक तादात्म्य की स्थापना करता है। ज्ञात वस्तु को आत्मा के बाहर के विषय के रूप में नहीं बल्कि आत्मा के एक अंश के रूप में देखा जा सकता है।

जब वे अंतर्ज्ञान के विषय में बात करते हैं तो वे समग्र अंतर्दृष्टि शब्द का प्रयोग करते हैं इसका यह अर्थ नहीं है कि वह मनुष्य के ज्ञान के विभाग में उपखंड करते हैं बल्कि वह कहते हैं कि मनुष्य का अवबोध व्यापक रूप से तीन प्रकार का है प्रत्यक्षात्मक, तार्किक और अंतर्ज्ञात्मक ; मनस् या इन्द्रिय – मन, विज्ञान या तार्किक और आनंद जिसे हमारे वर्तमान उद्देश्यों के लिए आध्यात्मिक अंतर्ज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है |

यह तीनों मानव चैतन्य से संबंधित हैं जब राधाकृष्णन समग्र अनुभव शब्द का प्रयोग अंतर्ज्ञान को घोषित करने के लिए करते हैं तो वे तीन बातों पर बल देते हैं। पहला अंतर्ज्ञान इस अर्थ में समग्र है कि यह सभी अन्य अनुभवों को समन्वित और संश्लेषित करता है यह अन्य सभी अनुभवों का एक एकीकृत संपूर्ण में एकीकरण करता है।

दूसरा अंतर्ज्ञान इसलिए समग्र है क्योंकि यह सभी अन्य अनुभवों के आधार को बनाता है दूसरे शब्दों में राधाकृष्णन का मानना है कि सभी अनुभव अपने आंतरिक रुप में सहज होते हैं तीसरा अंतर्ज्ञान इस अर्थ में समग्र है कि अनुभव के परिणाम व्यक्ति के जीवन में एकीकृत होते हैं राधाकृष्णन के अनुसार अंतर्ज्ञान कर्म और सामाजिक संबंधों के विश्व में अभिव्यक्त होता है ।

राधाकृष्णन के लिए अंतर्ज्ञान अनुभव का अंतिम स्वरूप है यह अंतिम या श्रेष्ठ इस अर्थ में है कि अंतर्ज्ञान पूर्णता और इस प्रकार सत्य ब्रह्म की सर्वाधिक प्रमाणिक अनुभूति की रचना करता है राधाकृष्णन द्वारा अंतर्ज्ञान की श्रेष्ठा का कारण यह भी है कि यह अन्य सभी प्रकार के अनुभवों का आधार है |

अंततः राधाकृष्णन के अनुसार अंतर्ज्ञान अवर्णनीय है यह माया और तर्कशास्त्र की सीमाओं से परे है और ऐसी कोई अवधारणा नहीं है जिसके द्वारा इसे हम परिभाषित कर सके | ऐसे अनुभवों में विचार और वास्तविकता एक साथ आ जाते हैं और विषयी व विषय की विलीनता परिणित होती है |

जब स्वयं अनुभव अभिव्यक्ति के परे चले जाता है तो यह इसे उत्तेजित करता है राधाकृष्णन के अनुसार अभिव्यक्ति का उत्तेजीकरण अंतर्ज्ञान के रचनात्मक संवेग के लिए प्रमाण पत्र है सभी क्रियात्मकताएं और वस्तुत जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सभी प्रगति अंतर्ज्ञान के अनिवार्य परिणाम हैं ।

धर्म और नीति शास्त्र

राधा कृष्ण की नैतिक शिक्षाओं को उनके धार्मिक विश्वासों और तत्वमीमांसा के आधार पर ही समझना चाहिए प्रत्येक दर्शन और धर्म एक अंतर्ज्ञान के साथ प्रारंभ होता है जब अंतर्ज्ञान को दूसरों को व्याख्यायित करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है तो भाषा की आवश्यकता उत्पन्न होती है जब हम किसी परंपरा में जन्म लेते हैं तो अंतर्ज्ञान के मौलिक विषय हमें उस अनुभव की शर्त के रूप में प्राप्त होते हैं ।

जिसमें हमने जन्म लिया है बड़े हुए और अपने अस्तित्व को प्राप्त किया है इस अर्थ में राधाकृष्णन ने तथ्य के अनुभव प्रवाह के परे आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास को कभी नहीं खोया भारतीय संस्कृति के अपने अध्ययन से उन्होंने दो और अधिक मौलिक सिद्धांत प्राप्त किए दृष्टिकोण की सार्वभौमिकता और जीवन दर्शन में लोकतंत्र |

(दृष्टिकोण की यह सार्वभौमिकता उनके मानवता की आधारभूत एकता में विश्वास को घोषित करती है क्योंकि सभी का ब्रह्मा से तादात्म्य है या सभी उस ईश्वर के समान गुणों को रखते हैं जिसके द्वारा सभी आए और सामान्य अन्वेषण को प्राप्त किया लोकतंत्र जीवन दर्शन के रूप में विभिन्न दृष्टिकोण को देखने के विभिन्न रंगों और जीने के विभिन्न रंगों आदि के प्रति सहिष्णुता को घोषित करता है )

जब हम धर्म की बात करते हैं जैसा कि राधाकृष्णन का दर्शन ने इसे समझा है तो हमें धर्म और धर्मों के बीच अवश्य ही अंतर करना पड़ता है उनके लिए धर्म एक वैयक्तिक अंतज्ञानात्मक अनुभव है यह सबके स्वभाव दर्शन और सत्य के अनुभव के प्रति एक अंतर्दृष्टि है यह एक आंतरिक और वैयक्तिक अनुभव है।

जो सभी मूल्यों को एकीकृत और सभी अनुभवों को व्यवस्थित करता है यह संपूर्ण मानव द्वारा सत्य के संपूर्ण के प्रति प्रतिक्रिया है अपनी पुस्तक आइडियोलिस्टिंग व्यू ऑफ लाइफ मैं वह इसे आध्यात्मिक जीवन बौद्धिक नैतिक और सौंदर्यात्मक क्रियाओं की पराकाष्ठा या उनका संयोजन करते हैं|

उनके अनुसार विभिन्न धर्म इस अनुभव की विभिन्न व्याख्याएं हैं समय के साथ अंतर्ज्ञान अनुभव की व्याख्या करने के लिए प्रयास में पूजा पाठो उत्सवों कार्यक्रमों आदि के रूप में बाह्य स्वरूप उभरे ।

उनके अनुसार जब अतिशय जीवन शक्ति या अंतर जीवन वाले भक्तों को एक केंद्रीय तथ्य छूता है भीतर से एक अनुभव होता है तो परिणाम स्वरुप वह चैतन्य के परे चला जाता है फिर इसके अंतर भूत होकर आत्मा में एक नई विनम्रता का जन्म होता है तो घमंड पक्षपात स्वाधिकार एक विचार समाप्त हो जाते हैं |

सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शिक्षा में योगदान

विश्वविद्यालय एक नए विश्व के लिए साधन है और उच्चतर शिक्षा समस्याओं को हल करने का एक साधन है शिक्षा का उद्देश्य एक नैतिक मनुष्य को बनाना है ऐसा मनुष्य जिसमें सभी क्षमताएं पूर्ण रूप से विकसित हो सच्चे रूप से शिक्षित होने का अर्थ है सत्य को देखने में समर्थ हो ना और इसे विजयी बनाने की युक्ति से युक्त होना ।

सामाजिक एवं राजनीतिक दर्शन

राधाकृष्णन के सामाजिक दर्शन की मुख्य नीव यह प्रमेय हैं की सभी मनुष्य समान है और समान मौलिक अधिकारों के योग्य हैं मनुष्य धरती पर आत्म का सर्वाधिक मूर्ख अवतार है और जो कुछ भी व्यक्ति के सम्मान को नुकसान पहुंचाता है वह नैतिक रूप से गलत है वह राज्य जो सबसे कम शासन करें सर्वश्रेष्ठ है लोकतांत्रिक सरकार सर्वाधिक संतुष्टि जनक है क्योंकि यह शासित की सहमति पर आधारित है ।

अर्थशास्त्र

सामाजिक न्याय आर्थिक न्याय के साथ संभव है पूंजीवाद में आर्थिक शक्ति का असमान केंद्रीयकरण है | उन्होंने साम्यवाद और पूंजीवाद का विरोध किया राधाकृष्णन ने एक अंतरराष्ट्रीय राज्य का समर्थन किया जिसमें वेदों को समाप्त करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उनमें विरोध नहीं होना चाहिए |

सारांश

राधाकृष्णन के विचार और अभिव्यक्ति में स्पष्ट ता है यह बहुत ही अच्छे शिक्षक हैं पूरे विश्व में विख्यात है राधाकृष्णन अपने विश्व दृष्टिकोण में परिपक्व होने के बाद भी अपने धर्मों के दर्शन की समझ को पढ़ाने के लिए विदेश गए और उनका मौलिक क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप दर्शन शास्त्र नहीं बल्कि अर्थशास्त्र है ।

राधाकृष्णन मुख्य रूप से भारतीय संस्कृति की अंतर्दृष्टि संबंधी विचार का सम्मान करने वाले एक आध्यात्मिक एवं धार्मिक व्यक्ति थे |

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