रामचन्द्रिका की प्रबन्धात्मकता पर विचार व्यक्त कीजिये तथा उसके गुण-दोषों की समीक्षा कीजिये। - Rajasthan Result

रामचन्द्रिका की प्रबन्धात्मकता पर विचार व्यक्त कीजिये तथा उसके गुण-दोषों की समीक्षा कीजिये।

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सनादय ब्राह्मण कृष्णदत्त के पौत्र और काशीनाथ के पुत्र केशव का हिन्दी साहित्य जगत में आचार्य एवं कवि के रूप में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। ‘रामचन्द्रिका‘ ऐसी रचना है जो रामकथाश्रित है, जिसमें रामकथा का सुसम्बद्ध वर्णन किया गया है। इसी वजह से इसे प्रबन्ध काव्य माना है। वस्तुतः इस रचना में प्रबन्धात्मकता के साथ-साथ महाकाव्य के सभी गुण विद्यमान हैं। संस्कृत काव्य-शास्त्र में महाकाव्य को पर्याय रूप में प्रबन्ध-काव्य ही माना जाता है। ‘रामचन्द्रिका’ की प्रबन्धात्मकता को हम निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट कर सकते हैं

रामचन्द्रिका प्रबन्ध काव्य के रूप में

आचार्य विश्वनाथ को साहित्य का दर्पणकार माना गया है, उनके मतानुसार महाकाव्य वही है जो सर्वबन्धात्मक हो। इसका शुभारम्भ वस्तुनिर्देश रूप मंगलाचरण से किया जाता है। इसमें किसी न किसी ऐतिहासिक कथा अथवा घटना का चित्रात्मक वर्णन किया जाता है और इसका प्रयोजन चारों पुरुषार्थों का प्रतिपादन करना होता है।

महाकाव्य में धीरोदात्त नायक होता है अथवा प्रख्यातवंशी राजाओं के चरित्र का उदघाटन किया जिसमें नगर, ऋतु, वन, पर्वत श्रृंखलाएँ, सूर्य, चन्द्र, बाग-बगीचे, जल-क्रीड़ा, मधुपान आदि का वर्णन भी किया जाता है। अच्छा महाकाव्य वही माना जाता है जिसमें पर्याप्त छन्द विधान हो और विभिन्न प्रसंगों के द्वारा कथा नायक का अभ्युदय प्रदर्शित किया जाता हो साथ ही महाकाव्य में एकांगी रस की दरकार होती है तथा अन्य रसों का प्रयोग यथा स्थान कर देना भी ठीक ही होता है।

इस प्रकार प्राचीन आचार्यों ने प्रबन्ध काय अथवा महाकाव्य के लक्षणों में विविध तत्त्वों का समावेश करके उसके लिये अनेक दिशानिर्देश प्रस्तुत किये हैं।

आचार्य कवि केशव द्वारा विरचित प्रबन्ध काव्य ‘रामचन्द्रिका’ में काव्य) सभी गुण समाहित किये गये हैं जिसमें किसी प्रकार की कमी दिखाई नहीं देती है। इस ग्रन्थ का कथानक सर्गों में विभक्त है तथा इसके श्रीगणेश के साथ आशीर्वाद की कामना को लेकर मंगलाचरण है

जिसमें विघ्नविनाशक विनायक, विद्या की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती तथा परमेश्वर स्वरूप श्रीराम की वन्दना की गई है। कथावस्तु की ओर निर्देशित करते हुए इसके रचयिता ने कहा है कि मैं भगवान राम के कथा वैभव का अनेक छन्दों में वर्णन कर रहा हूँ

जगती जाकी ज्योति जग, एक रूप स्वच्छन्द।

रामचन्द्र की चन्द्रिका, बरनत हौं बहु छन्द।। 

इस महाकाव्य की कथावस्तु सुप्रसिद्ध एवं एतिहासिक है इसके नायक श्रीराम न केवल धीरोदात्त ही हैं अपितु साक्षात् जगदीश्वर श्रीहरिविष्णु के अवतार है। चारों पुरुषार्थों में से धर्म, अर्थ और काम इन तीनों की प्राप्ति होती है और चौथा पुरुषार्थ के संदर्भ में : उसके तो वे स्वयं दाता हैं

‘शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्, 

वश्वाधारं गगन सदृश्यं मेघ वर्ण शुभांगम्। 

लक्ष्मीकान्तं कमल नयनं योगिविर्धान्यगम्यम्

वन्दे विष्णु भव भय हरं सर्व लोकैक नाथम्।।

केशव की ‘रामचन्द्रिका सूर्यवंश की नगरी अयोध्या की अनुपम छटा को समाहित किये हुए है और दशशीश रावण की लंका नगरी वैभव का भी अत्यन्त सौन्दर्य लिये हुए है। इसके अतिरिक्त वन-बाग-बगीचे, पर्वत, सागर, नदियों शु-पक्षी, सूर्यदेव, चन्द्रदेव, चन्द्रिका, ऋतुएँ आदि को महाकाव्योचित विषयों के रूप में चित्रित किया गया है।

विशेष बात यह है कि इस महाकाव्य में शृंगार के दोनों रूपों (संयोग और वियोग) का संयोग समाहित है जिसकी भूमिका स्वयं काव्य नायक राम और जानकी निभाते हैं। लव और कुश के माध्यम से कुमारोत्पत्ति का भी वर्णन किया गया है। नायक राम और खलनायक रावण दोनों की एक मंत्री परिषद है जिसमें समय-समय पर मंत्रियों से यथोचित मंत्रणा भी की जाती है।

नायक और खलनायक के बीच सिद्धान्तों का मतभेद चलता है क्योंकि नायक धर्म, नीति, न्याय, सत्य व मानवता के अधिष्ठाता हैं जबकि खलनायक अधर्म, अनीति, अन्याय, असत्य व दानवता का पोषक है। दोनों के बीच घमासान युद्ध होता है जिसका अत्यन्त रोचक चित्रात्मक वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है और अन्त में कथानक के अनुरूप सात्विक गुणों से श्रीराम की विजय का चित्रोपम वर्णन किया गया है।

इस महाकाव्य का प्रमुख रस शृंगार रस रहा है किन्तु विभिन्न प्रसंगों में अन्य रसों का भी सफल प्रयोग किया गया है। इसमें अनेक छन्दों का गरिमापूर्वक किन्तु विचित्र ढंग से प्रयोग किया गया है। इस महाकाव्य में जितने भी अध्याय हैं वे आकार की दृष्टि से सामान्य हैं अतः हम कह सकते हैं कि इस महाकाव्यग्रन्थ ‘रामचन्द्रिका में सभी काव्यगत गुणों का यथायोग्य समावेश किया गया है।

कथा संगठन – ‘रामचन्द्रिका’ की प्रबन्धात्मकता पर अनेक विद्वानों व आधुनिक आलोचकों ने कई आक्षेप लगाये हैं और इसे मात्र लक्ष्य ग्रन्थ ही माना है किन्तु कथा संगठन की दृष्टि से देखा जाये तो इस रचना में पूरी तरह से सफल निर्वाह कवि के द्वारा किया गया है। कथानक में भी घटना क्रमानुसार अनेकानेक काट-छांट भी केशव द्वारा की गई है कुछ घटनाओं को तो छोड़ दिया है और कुछ का सांकेतिक वर्णन किया गया है। इसमें कथानक को कुछ ऐसे ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है कि कहीं पर शिथिलता न आये और निरंतरता भी बनी

प्रकृति चित्रण :— यह अवश्य कहना पड़ेगा कि आचार्य कवि केशव ने अपनी ‘रामचन्द्रिका‘ में प्रकृति चित्रण में कंजूसी बरती है। इस संदर्भ में एक आलोचक अपने मुक्त विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि ‘रामचन्द्रिका‘ में न रंगों की चटक है, न पत्तों की मर्मर, न फूलों की हास है; न पक्षियों की गूंजन, न झरनों का कल-कल निनाद है; और न लहरों का नर्तन ही। बस केवल उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकारों की ऊपरी टीम-टाम है।’ प्रबन्ध काव्य की दृष्टि से रामचन्द्रिका की यह सबसे बड़ी कमी रही है।

भावात्मक चित्रण :— केशव की रामचन्द्रिका में ऐसे प्रसंगों का अभाव रहा है भावात्मकता हो, फिर भी दशरथ द्वारा राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेजना, राम व सीता लक्ष्मण शक्ति, भरत-कैकेयी संवाद, हनुमान-रावण संवाद आदि कुछ भावात्मक, मार्मिकता का अहसास वाले दृश्य हैं। इन प्रसंगों में अलंकारों का चमत्कार भी है

 

मग को श्रम श्रीपति दूर सिय को शुभ बल्कल अंचल सौं।

श्रम तेउ हरै तिय को कहि केशव, चंचल चारु सौं।। 

इसी प्रकार अशोक वाटिका में जानकी विरह व्यथित रहती है –

पिउ-पिउ रटति चित चातकी ज्यों, 

बंद विौ चकई ज्यों चुप रहती है। 

सुनहु नृप राम विरह तिहारे ऐसी, 

सूरति न सीता जू की मूरति गहति है।।

इसमें का संदेह नहीं है कि ‘राम्चन्द्रिका में आकर्षक और रोचक प्रसंग भी है जिसमें अंगद-रावण संवाद और अश्वमेघ प्रकरण में लव-कुश द्वारा सुग्रीव, अंगदादि पर सुन्दर और रोचक कटाक्ष किये गये हैं। अतः रामचन्द्रिका में प्रबन्ध काव्य व महाकाव्य का पूरा-पूरा निर्वाह करने का प्रयास किया गया है और सफलता केशव को मिली है।

रामचन्द्रिका और प्रबन्धात्मकता के दोष

यद्यपि ‘रामचन्द्रिका’ में महाकाव्य के लगभग सभी गुण विद्यमान हैं, तथापि कुछ ऐसे दोष हैं जिनकी वजह से कई समालोचक न्यूनता बताने में जरा से भी नहीं हिचकिचाते हैं यथा

भावपूर्ण मार्मिक प्रसंगों का अभाव – केशव को हृदयहीन कहने वाले आलोचक इस बात को दावे के साथ कहते हैं कि कवि के शरीर में कवित्व तो कूट-कूट कर समाहित था किन्तु संवेदनशीलता या मर्म का अभाव रहा है इसका साक्षात् उदाहरण केशव की रचनाओं में मार्मिकता नहीं है।

रामचन्द्रिका में भी मार्मिक प्रसंगों की अवहेलना हुई है। जब कैकेयी ने राजा दशरथ से वरदान माँगे थे तो उस प्रसंग में जितनी मार्मिकता होनी चाहिये थी वह नहीं हुई। केशव ने राजा दशरथ व अन्य रानियों की व्याकुलता का थोड़ा सा भी खयाल नहीं रखा –

‘कीधौं कोउ न उरा हौ, ठगौरी लीन्हे कीधौं तुम।

हरि हर श्री हौं सिवा, चाहत फिरत हों।।

जब दशरथ का अंतिम संस्कार करने के लिये भरत व शत्रुघ्न जाते हैं तो उनकी और अयोध्यावासियों की व्याकुलता का भी केशव ने जरा सा ध्यान नहीं रखा। बस दो-तीन पंक्तियों में भरत द्वारा वल्कल धारण कर के गंगा पार कर चित्रकूट में जाने का संकेत दिया है।

प्रसंगों की असम्बद्धता :— केशव की ‘रामचन्द्रिका’ में कुछ प्रसंग तो ऐसे हैं जो जितने अधिक मार्मिक होने चाहिये थे उतने ही नीरस बने हुए हैं सीता हरण के पश्चात् प्रभु राम का सीता की किया जाने वाला प्रयास और उनका विरह विलाप तो शायद केशव भूल गये हैं

‘हे खग, हे मृग, हे मधुकर श्रेणी, तुम देखी सीता मृग

आदि विलाप से भी केशव द्रवीभूत नहीं हो सके और वहाँ पर भी वे अलंकारों की प्रवृत्ति में ग्रस्त रहे। कुछ प्रसंग कथावस्तु से असम्बद्ध हैं और वे कथावस्तु में उत्कर्ष बढ़ाने में अक्षम हैं। जैसे राम द्वारा विधवा धर्म का वर्णन, दान विधान सनादयोत्पत्ति, राजश्री निन्दा, रामविरक्ति और आख्यान आदि। चित्रकूट पहुँचने पर भरत ने जो वेदना व्यथा प्रकट की उसकी ओर भी केशव ने की मार्मिक प्रतिक्रिया नहीं जताई। अतः केशव की योजना असम्बद्ध मानी गई है।

वर्णन विस्तार के प्रति रूझान – केशव द्वारा विरचित प्रबच्छ काव्य ‘रामचन्द्रिका में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जिनके वर्णन को कुछ विस्तारपूर्वक व्यक्त किया गया है। विश्वामित्र के अयोध्या आगमन के अवसर पर सत्ताईस छन्दों में सरयू नदी का वर्णन, राजा दशरथ तथा अयोध्या नगरी व वहाँ के उद्यानों का वर्णन है। अन्य दर्शनों में अरुणोदय, राम विवाह व उसके पश्चात् पुनः अयोध्या का वर्णन, पंचवटी वर्णन, गोदावरी वर्णन, त्रिवेणी एवं ऋषि भारद्वाज के आश्रम का वर्णन आदि।

‘रामचन्द्रिका’ के उत्तरार्द्ध में तो केशव की यह प्रवृत्ति और भी अधिक दिखाई देती है। राम राज्य, राज-भवन, शयनागार, जलशाला, गन्धशाला, मंत्रशाला आदि का वर्णन इस प्रवृत्ति के ज्वलन्त उदाहरण है। इस दृष्टि से आचार्यत्व कवि केशव ने ‘रामचन्द्रिका’ को काफी उन्नत बना दिया है।

कथानक की असम्बद्धताओं कुछ विशेष ही कारण रहे हैं, जिनमें रामायण की लोकप्रियता एवं विशालता, रागकथा का वैभव वर्णन की प्रणाचता, कवि पर पड़ा दरबारी प्रभाव। कारण चाहे जो भी हो, इतना कहना पडेगा कि कथा की सुसंघटना एवं जीवन्तता के अभाव में कवि अपेक्षित गरिमा, गाम्भीर्य की योजना करने में असफल है, जिसकी वजह से जैसे महाकाव्य में शिथिलता व न्यूनता समाहित हो गई है अतः यह काव्य शिथिल महाकाव्य माना जा है।

निष्कर्ष हम यह कह सकते हैं कि आचार्य कवि केशव एक प्रबन्धकार की प्रतिभा तथा कवित्व की शक्ति से युक्त थे किन्तु परिस्थितिवश उनका समुचित उपयोग करने में असफल रहे और अपने पाण्डित्य प्रदर्शन के मोह में क्लिष्टता एवं स्व-कठोरता से घिरे रहे जिसको वजह से उनकी रचना में स्थूल दोष उत्पन्न हो गया। इस दृष्टि से रामचन्द्रिका की प्रबन्धात्मकता एवं महाकाव्यत्व कीचड़ में लिप्त कमल सदृश्य सुन्दर परिलक्षित होते हुए भी कुछ न्यून दिखाई देता है वैसे औसतन यह सफल रहा है।

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