राम का विषण्णानन देखते हुए कुछ क्षण | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

राम का विषण्णानन देखते हुए कुछ क्षण | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |

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राम का विषण्णानन देखते हुए कुछ क्षण,

“हे सखा” विभीषण बोले “आज प्रसन्न वदन

वह नहीं देखकर जिसे समग्र वीर वानर

भल्लुक विगत-श्रम हो पाते जीवन निर्जर,

रघुवीर, तीर सब वही तूण में है रक्षित,

है वही वक्ष, रणकुशल हस्त, बल वही अमित,

हैं वही सुमित्रानन्दन मेघनादजित् रण,

हैं वही भल्लपति, वानरेन्द्र सुग्रीव प्रमन,

ताराकुमार भी वही महाबल श्वेत धीर,

अप्रतिभट वही एक अर्बुद सम महावीर

हैं वही दक्ष सेनानायक है वही समर,

फिर कैसे असमय हुआ उदय यह भाव प्रहर।

रघुकुलगौरव लघु हुए जा रहे तुम इस क्षण,

तुम फेर रहे हो पीठ, हो रहा हो जब जय रण।

कितना श्रम हुआ व्यर्थ, आया जब मिलनसमय,

तुम खींच रहे हो हस्त जानकी से निर्दय!

रावण? रावण लम्प्ट, खल कल्म्ष गताचार,

जिसने हित कहते किया मुझे पादप्रहार,

बैठा उपवन में देगा दुख सीता को फिर,

कहता रण की जयकथा पारिषददल से घिर,

सुनता वसन्त में उपवन में कलकूजित्पिक

मैं बना किन्तु लंकापति, धिक राघव, धिक धिक?

राम का विषण्णानन देखते

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में राम को उदास देखकर विभीषण आदि सभासदों द्वारा उनको समझाने का वर्णन किया गया है।

व्याख्या – राम के उदास मुखमंडल को कुछ क्षणों तक देखने के उपरांत विभीषण ने कहा कि हे सखे! आज आपके मुख पर प्रसन्नता की वह झलक नहीं है जिसको देखकर समस्त वीर बंदर और भालुओं आदि की थकावट दूर हो जाती है और उनको बुढ़ापाहीन उम्र अर्थात् थकावट रहित नये जीवन की प्राप्ति होती है।

हे रघुनाथ ! आपके तरकस में वही पहले जैसे तीर सुरक्षित हैं, आपका वक्षस्थल भी वही है, आपके युद्ध करने में पहले ही जैसे कुशल हाथ हैं, आपके अंदर वही पूर्ववत् अपार शक्ति है, आपको उन्हीं लक्ष्मण का सहयोग प्राप्त है जिन्होंने युद्ध में मेघनाद को जीत लिया था। आपके साथ वे ही भालुओं के स्वामी जामवंत और वानरों के स्वामी सुग्रीव विद्यमान हैं।

इसी प्रकार श्वेत रंग वाला धैर्यबल और महाबली अंगद भी वही है। आपके वे ही कुशल सेनानायक हैं तथा वही रणक्षेत्र है- अभिप्राय यह है कि आपको अपने उन्हीं बलवान सेनानायकों का साथ प्राप्त है जो अब तक रावण- सेना का गर्व चूर करते आए हैं, फिर भी न जाने क्यों इस संक्रांतिकाल में आपके हृदय में निराशामय भावों का उद्रेक हो गया है।

हे रघुवंश के गौरव राम! आप इस समय न जाने क्यों लघुता की भावना से ओत-प्रोत हो उठे हो और उस समय युद्ध से मुख फिरा रहे हो जबकि आपकी विजय का क्षण उपस्थित होने वाला है। आप यह क्यों नहीं सोचते कि आपके द्वारा इस समय युद्ध से उदासीन हो जाने पर अब तक युद्ध में किया गया कितना परिश्रम बेकार हो जाएगा। जब आपका जानकी से सम्मिलन होने का अवसर निकट आ गया है तो आप निर्दय होकर उनको प्राप्त करने से अपना हाथ खींच रहे हैं— उनकी ओर से उदासीन हो रहे हैं।

विभीषण आगे कहने लगा कि रावण तो लचर, खल, पापी और आचारहीन है। मैंने उसको उसके हित की बात समझाने की चेष्टा की थी तो उसने मुझ पर प्रहार किया था। वह अशोक वन में बैठी सीता को अनेक प्रकार के संत्रास देता होगा और अपने सभासदों के मध्य में बैठा हुआ उनको अपनी विजय की कहानी कहता होगा अथवा कहा करेगा और वसंत ऋतु में कोयल की मीठी वाणी से गुंजित उपवन में आनंदपूर्वक अपने दिवस बिताएगा।

आप मुझको लंका का राजा भी नहीं बना सके जिसके बारे में आपने मुझको वचन दिया था। हे रघुपति! मैं अधिक क्या कहूं, यह मेरे और आपके दोनों के लिए ही धिक्कार की बात है।

विशेष

1. प्रस्तुत पंक्तियों में विभीषण ने राम को युद्ध के प्रति उत्तेजित करने के लिए मनौवैज्ञानिक तर्कों का आधार लिया है। वे इस तथ्य पर बल देते हैं कि यदि अब आप युद्ध बंद करते हैं तो रावण अपने मुंह मियां मिट्ठू बना करेगा जबकि आपका अपयश फैलेगा।

2. यहां विभीषण राम के शरणागत की अपेक्षा उनके मित्र के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं।

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