अंधेर नगरी में राष्ट्रीय चेतना | भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा कृत
राष्ट्रीय चेतना :— भारतेंदु हरिश्चंद्र पहले साहित्यकार थे जिनके नाटकों में राष्ट्रीय भावना उजागर हुई। उन्होंने अपने नाटकों में राष्ट्रीय भावनाओं को जगाने वाले दृश्यों को प्रस्तुत किया। कहीं-कहीं तो ऐसा लगता है कि नाटक का कथानक तो एक बहाना है वरण उसका असली उद्देश्य तो राष्ट्रीय भावना को जागृत करना है अर्थात सोए हुए देशवासियों को नींद से जगाना है।
राष्ट्रीय चेतना
भारतेंदु हरिश्चंद्र के मन में बहुत दिनों तक राज भक्ति और देश भक्ति के बीच द्वंद्व चलता रहा उन्होंने राज भक्ति के अनेक गीत गाए और अंग्रेजी शासकों तथा उनके शासन की प्रशंसा की उनकी अंग्रेजी राज्य पर एक गीत की पंक्ति देखिए ‘अंग्रेज राज सुख साज सजे सब भारी।’ उन्होंने अंग्रेजी राज पर खुश होकर काफी कविताएं लिखी परंतु इसका मतलब वह अंग्रेजों के चाटुकार और अंधभक्त नहीं थे। वह क्रांतिकारी भी थे वह भारत माता को मुक्त कराने के लिए उन्होंने भारत से उखाड़ फेंकने के लिए भी कृत संकल्प थे। हां, वह कट्टर देशभक्त और जनता के हित चिंतक थे और इसी मनोवृति तथा मानसिकता के कारण उन्होंने अपने यथार्थवादी नाटक तथा प्रहसन लिखें।
भारतेंदु हरिश्चंद्र यह समझते थे कि भारत की दुर्दशा का मूल कारण अंग्रेजों की साम्राज्य विस्तार एवं उनकी बर्बरता पूर्ण नीतियां है। भारत दुर्दशा में बंगाली अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल देने की बात कहता है एडिटर अपने लेखों द्वारा दुर्दशा को भगा देने की बात करता है। कभी अपनी कविता द्वारा उद्बोधन देता है वह जानते थे कि देश के सामंत जमींदार, देसी रियासतों के राजा और नवाब के आश्रय में पल रही सामंती व्यवस्था और संस्कृति मरणोन्मुख है वह देश की स्वतंत्रता को विदेशी शासक के हाथों बेच रही है।
उन्होंने महसूस किया कि देश भक्ति और राष्ट्रीय भावना का तकाजा है कि वह अपने साहित्य द्वारा भारत की जनता को असली दुश्मनों से आधे पतन के कारणों से परिचित कराए थे उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में शोषण तथा अन्याय करने वाले अंग्रेजी शासक की कटु आलोचना की तथा पाठकों में राजनीतिक चेतना जगाई। इस कार्य के लिए उन्होंने नाटकों को सर्वाधिक सशक्त माध्यम समझा क्योंकि दृश्य और श्रव्य में काफी अंतर होता है अंधेर नगरी प्रहसन इतना पढ़ने में समझ नहीं आता जितना यह मंच पर देखने में इसकी राष्ट्रीय भावना स्पष्ट नजर आती है। अंधेर नगरी में राष्ट्रीय चेतना अंधेर नगरी में राष्ट्रीय चेतना अंधेर नगरी में राष्ट्रीय चेतना
भारतेंदु द्वारा लिखित प्रहसन अंधेर नगरी का राजा देसी रियासत का विवेक सुनने मूर्ख दुराचारी शासक तो है ही अप्रत्यक्ष रूप से लेखक ने उस के माध्यम से तत्कालीन अंग्रेज शासकों और उनकी देश के लिए विनाशकारी नीतियों की ओर भी संकेत किया है। क्योंकि पुलिस कानून रिश्वत न्याय व्यवस्था मन मान अपन जैसा और जितनी अंधेर नगरी में दिखाई गई है वैसे ही अंग्रेजों द्वारा प्रशासित प्रदेशों में भी थी। कर लगने वाले और कानून बनाने वाले तो मुख्यता अंग्रेजी थे देशी रजवाड़े उन्हीं के बनाए कानून पर चलते थे और अनेक स्थलों पर तो लेखक ने खुलकर अंग्रेजों तथा उनके शासन तंत्र पर चोट की है। राष्ट्रीय चेतना राष्ट्रीय चेतना
साहब, विलायत विधर्मी आदि शब्दों का प्रयोग अंग्रेजों के लिए ही हो सकता है। चूरन वाले तथा गोवर्धनदास दोनों अपने गीतों में सीधे साधे शब्दों में ऐसी बातें कह जाते हैं कि सुनने वालों को अंग्रेजी सरकार की काली करतूतों का तुरंत पता चल जाता है अंधेर नगरी में पाए संवादों के माध्यम से लेखक ने अंग्रेजी शासन तंत्र पर गहरी चोट की है।
वास्तव में ईस्ट इन्डिया कम्पनी का उद्देश्य भारत की धन-दौलत को लूटना और यहां के भोले-भाले लोगों का आर्थिक और धार्मिक चोट पहुंचाना था। असल में ईस्ट इन्डिया कम्पनी ब्रिटिश की एक व्यवसायिक कम्पनी थी जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ धन कमाना था फिर चाहे व्यक्तियों को कैसा ही भी आघात क्यों न लगे।
परन्तु सत्ता परिवर्तन के बाद भी, विक्टोरिया के भारत की साम्राज्ञी बनने पर भी अंग्रेजो की इस नीति में कोई परिवर्तन नहीं आया। अंग्रेज प्रशासन पहले की तरह यहां की कृषि, उद्योग-धन्धों को नष्ट करते रहे। सबसे दारूण एवं घातक नीति की नये-नये टैक्स लगाकर यहां के लोगों को विपन्न बनाना जिसके कारण कृषि और घरेलू उद्योग-धन्धे तो ठप्प हुए ही लोगों को दो जून खाना मिलना भी दूभर हो गया।
‘अन्धेर नगरी’ में चने बेचने वाला घसीराम कहता है :-
चना हाकिम सब जो खाते,
सब पर दूना टिकस लगाते।
ब्रिटिश शासन काल में सभी सरकारी अफसर भ्रष्ट थे वे अपनी काली करतूतों द्वारा जनता के साथ मनमानी कर रहे थे क्योंकि जैसा राजा वैसी प्रजा। वे जनता का पैसा लूट कर अंग्रेज लोगों की तिजोरिया भर वाही-वाही लूट रहे थे। परन्तु उन्हें यह पता नहीं था कि अंग्रेज लोग तो सिर्फ व्यवसायी हैं। परन्तु भ्रष्ट सरकारी अफसर तो जनता का मन-माना कर लगाकर अपनी और सरकार की जेबें गरम कर रहे थे। :-
चूरन साहब लोग जो खाता
सारा हिन्द हजम कर जाता।
यहां ‘हजम’ करने में व्यंजना केवल अनुचित उपायों रिश्वत आदि से धन कमाने की ही नहीं है साम्राज्य विस्तार करने की भी है, डलहौजी की ‘डाक्ट्रिन आफ लैप्स’ की और भी है। अंग्रेज अफसर सम्पूर्ण भारत को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने, देश की स्वतन्त्रता मिटाने, रियासतों को हटाने या उनके सिंहासन पर अपनी कठपुतलियों को बिठाने का षड्यन्त्र रच रहे थे
और उसमें उन्हें पर्याप्त सफलता भी मिल रही थी। जब भारतीयों ने सन् 1851 में अंग्रेजों के विरुद्ध शान्ति का बिगुल बजा दिया तो उन्होंने बड़ी बेरहमी के साथ उसे कुचल दिया परन्तु अब अंग्रेज लोग सतर्क हो गए थे क्योंकि उन्हें शायद पता चल चुका था कि भारतीय शोषित जनता में अब क्रान्ति की लहर दौड़ गई हैं ।
इसलिए उन्होंने बड़ी कुशलता तथा सावधानी से कान्ति को रोकने के लिए राष्ट्र में तरह-तरह के भेदभाव उत्पन्न कर देश की अखंडता को नष्ट करने पर तुले थे। अपनी योजना को सफल बनाने के लिए उन्होंने चाटुकारों, देशद्रोहियों तथा छल-प्रपंच करने वालों को प्रोत्साहन दिया,
उन्हें सत्ता में भागीदारी दी और उनके द्वारा भारतीय जनता पर तरह-तरह के अत्याचार कराए ताकि वे ‘शान्ति’ की तरफ ना जाए अर्थात अंग्रेज लोग जनता पर मनमानी कर उनका आर्थिक शोषण कर सके।
जैसा कि ‘अन्धेर नगरी’ में दिखाया गया है कि निरअपराध को अपराधी घोषित शायद इस प्रहसन के माध्यम से भारतेन्दु जी ने अंग्रेजों पर व्यंग्य किया है क्योंकि अंग्रेजो राज्य में रिश्वत से हर गलत काम कराया जा सकता था। निपराधी को दंडित तथा अपराधी को दंड-मुक्त कराया जा सकता था।
( चूरन अमले सब जो खावै । दूनी रिश्वत – तुरत पचावै) ‘अमले सब’ का इशारा है कि सरकार का कोई विभाग, कोई कार्यालय, कचहरी न्यायालय, पुलिस आबकारी विभाग सबमें रिश्वत चलती थी जिससे न्याय नहीं हो पाता था।
असल में अंग्रेजी राज्य में कानून का उद्देश्य केवल भारत में अंग्रेजी राज्य की जड़ें मजबूत बनाना और अपने समर्थकों, पिट्टुओं को संरक्षण प्रदान करना एवं उनके काले कारनामों पर कानून की मुहर लगाना था।
अंग्रेजों द्वारा कानून जैसे बनाये गये कि उनके द्वारा भारत के स्वातंत्र्य संग्राम में भाग लेने वालों देशभक्तों, समाचार पत्रों, लेखकों, बुद्धिजीवियों आदि को आतंकित किया जाय, उनका शोषण किया जाय। उन्हें सिर उठाने का मौका तक न दिया जाय। और यह अधिकार, पुलिस और कानून तब मिलकर यह कार्य कर रहे थे। अन्धेर नगरी में भी पुलिस और कानून का यही चरित्र उद्घाटित किया गया है ।
चूरन पुलिस वाले खाते।
सब कानून हजम कर जाते ।
‘अन्धेर नगरी’ में पुलिस कानून कचहरी, सरकारी अमले से सम्बद्ध कटूक्तियों को भले ही देशी रजवाड़े से जोड़ा जाय पर जब हम गोबर्धनदास के गीत में निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़ते हैं तो हमें लेखक के सही उद्देश्य का पता चलता है। उनका यह नाटक एक और युग की कठोर, कटु और प्रेरणा भी देता है।
यह नाटक लेखक की प्रगतिशील सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना और राजनैतिक दुराचार तथा कुशासन विरोधी क्रान्ति भावना एवं देशभक्ति का ज्वलन्त उदाहरण हैं। अपने नाटक में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जो राष्ट्रीयता का स्वर मुखरित किया है वह युगों-युगों तक हमारे कानों में गूंजता रहेगा- अन्धेर नगरी चौपट राजा। अन्त में हम यही कह सकते हैं कि भारतेन्दु सच्चे राष्ट्रभक्त, समाज सेवी और मनुष्यता के हिमायती थे। उस के लिए उन्होंने अपना समस्त जीवन समर्पित कर दिया।
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