रूपनिधान सुजान सखी | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद I
रूपनिधान सुजान सखी जब तैं इन नैननि नेकु निहारे।
दीठि थकी अनुराग-छकी मति लाज के साज-समाज बिसारे।
एक अचंभौ भयौ घनआनंद हैं नित ही पल-पाट उघारे।
टारैं टरैं नहीं तारे कहूँ सु लगे मनमोहन-मोह के तारे।।
रूपनिधान सुजान सखी
प्रसंग – यह पद्य कवि वर घनानंद की रचना ‘सुजानहित’ के आरंभ से लिया गया है इसमें नायिका द्वारा नायक के प्रथम दर्शन के बाद आंखों और मन पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया गया है। नायक या श्रीकृष्ण के सौंदर्य से प्रभावित नायिका या गोपी अपनी सहेली से कह रही है|रूपनिधान सुजान सखी
व्याख्या – ऐ सखि! सौंदर्य के आगार उस साजन (श्री कृष्ण) को मेरी आंखों ने जब से तनिक सा पर एक बार देखा है तब से बडी ही अनोखी दशा हो गई है। उसके अनोखे सौंदर्य को देखते ही आंखें चकित सी रहकर उसके प्रेम में मगन हो गई हैं। प्रेम की निमग्रताभिकारण मेरी बुद्धि ने जीवन और समाज की सारी लोक – जाल भुला दी है। अर्थात प्रेम ने इतना मगन कर दिया है कि सभी तरह की शर्म हया जाती रही है छोटे बर्थडे या घर समाज का कोई भैया भाव प्रेम की तल्लीनता के कारण रही नहीं गया है।
घनानंद कवि कहते हैं कि जब से उस प्रिय को तनिक सा देखा है उसकी सुंदरता और प्रेम के कारण एक और आश्चर्य भी हुआ है वह यह की अब पलक रूपी पर्दे हमेशा खुले रहने लगे हैं। आदमी उसकी सुंदरता के प्रभाव से एक बार जो आंखें खुली की खुली रही अब उसे देखते रहने के लिए हमेशा ही खुली रहती है। एक पल के लिए भी कभी पलकें नहीं लगती उस मनमोहन के प्रेम भरी आंखों के तारे कुछ इस प्रकार से लग गए हैं कि अब टालने पर भी नहीं टलते। रूपनिधान सुजान सखी रूपनिधान सुजान सखी रूपनिधान सुजान सखी a s d f g h j k l m n b v c x z
अर्थात बार-बार प्रेत में करने पर भी आंखें उस रूप सौंदर्य की ओर से हटती नहीं है उसकी सुंदरता और प्रेम ने बड़ी ही विचित्र स्थिति बना दी है।
विशेष
1. घनानंद की कविता में ‘सुजान’ पद श्री कृष्ण का भी सूचक या प्रतीक है और साजन या नाटक का भी। वैसे सुजान व्यवहारिक जीवन में कवि की बेवफा प्रेमिका का नाम था।
2. पद्य में रूपक, विशेषोक्ति, अनुप्रास आदि कई अलंकार हैं।
3. भाषा माधुर्य गुण प्रदान है|
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