लहना सिंह का चरित्र चित्रण | उसने कहा था | Chandradhar Sharma Guleri | - Rajasthan Result

लहना सिंह का चरित्र चित्रण | उसने कहा था | Chandradhar Sharma Guleri |

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लहना सिंह का चरित्र चित्रण ‘उसने कहा था’ का नायक है। कहानी का सारा घटनाचक्र उसी के इर्द-गिर्द घूमता है। लेकिन इस चरित्र की संपूर्ण विशेषताओं को तभी समझा जा सकता है जब हम कहानी के कुछ और चरित्रों को समझें ।

इनमें सूबेदारनी, सूबेदार हजारासिंह और उसका बेटा बोधासिंह है। इसके अतिरिक्त वजीरासिंह, लपटन साहब आदि अन्य पात्र हैं। लेकिन ये गौण पात्र हैं। बोधासिंह के चरित्र पर भी विशेष प्रकाश नहीं डाला गया है। यहाँ हम लहनासिंह और सूबेदारनी के चरित्र पर विचार करेंगे। इनके आधार पर आप शेष पात्रों के चरित्र का विश्लेषण भी कर सकते हैं।

लहना सिंह का चरित्र चित्रण

लहनासिंह से हमारा पहला परिचय अमृतसर के बाज़ार में होता है। उसकी उम्र सिर्फ 12 वर्ष है। किशोर वय, शरारती, चुलबुला । उसका यह शरारतीपन बाद में युद्ध के मैदान में भी दिखाई देता है। वह अपने मामा के यहाँ आया हुआ है। वहीं बाज़ार में उसकी मुलाकात 8 वर्ष की एक लड़की से होती है।

अपनी शरारत करने की आदत के कारण वह लड़की से पूछता है ‘तेरी कुड़माई हो गई और फिर यह “मजाक” ही उस लड़की से उसका संबंध सूत्र बन जाता हैं लेकिन मज़ाक-मज़ाक में पूछा गया यह सवाल उसके दिल में उस अनजान लड़की के प्रति मोह पैदा कर देता है।

ऐसा ‘मोह’ जिसे ठीक-ठाक समझ सकने की उसकी उम्र नहीं है। लेकिन जब लड़की बताती है कि हाँ उसकी सगाई हो गई है तो उसके हृदय को आघात लगता है। शायद उस लड़की के प्रति उसका लगाव इस खबर को सहन नहीं कर पाता और वह अपना गुस्सा दूसरों पर निकालता है। लहनासिंह के चरित्र का यह पक्ष अत्यंत महत्त्वपूर्ण तो है लेकिन असामान्य नहीं।

लड़की के प्रति लहनासिंह का सारा व्यवहार बालकोचित है। लड़की के प्रति उसका मोह लगातार एक माह तक मिलने-जुलने से पैदा होता है और यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन लहनासिंह के चरित्र की एक और विशेषता का प्रकाशन बचपन में ही हो जाता है, वह है उसका साहस, अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरे को बचाने की कोशिश।

लहनासिंह जब सूबेदारनी से मिलता है तो वह बताती है कि किस तरह एक बार उसने उसे तांगे के नीचे आने से बचाया था और इसके लिए वह स्वयं घोड़े के आगे चला गया था।

इस तरह लहनासिंह के चरित्र के ये दोनों पक्ष आगे कहानी में उसके व्यक्तित्व को निर्धारित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। एक अनजान बालिका के प्रति मन में पैदा हुआ स्नेह भाव और दूसरे उसका साहस । तांगे वाली घटना यह भी बताती है कि बचपन में उन दोनों के बीच जो संबंध बना वह कितना गहरा और तीव्र था।

लेकिन पच्चीस साल का अंतराल कम नहीं होता। वह बालिका किसी और की पत्नी बन जाती है और लहनासिंह जो एक किसान का बेटा है, खेती छोड़कर सिपाही बन जाता है। लेकिन सिपाही बन जाने के बाद भी उसकी मानसिकता, उसके स्वप्न और उसकी आकांक्षाएँ किसानोंसी ही रहती हैं। सेना में वह मामूली सिपाही है। जमादार के पद पर।

लेकिन वहाँ भी किसानी जीवन की समस्याएँ उसका पीछा नहीं छोड़तीं। वह छुट्टी लेकर अपने गाँव जाता है – ज़मीन के किसी मुकदमें की पैरवी के लिए। कहानीकार यह संकेत नहीं देता है कि लहनासिंह विवाहित है या अविवाहित |

लेकिन लहनासिंह की बातों से तो यही लगता है कि वह अविवाहित है। उसका एक भतीजा है – कीरतसिंह। जिसकी गोद में सिर रखकर वह अपने बाकी दिन गुज़ारना चाहता है। अपने गाँव, अपने खेत, अपने बाग में। उसे सरकार से किसी ज़मीन-जायदाद की उम्मीद नहीं है, न ही खिताब की।

वह एक साधारण जिंदगी जी रहा है, उतनी ही साधारण जितनी कि किसी भी किसान या सिपाही की हो सकती है। उस लड़की की स्मृति भी समय की पर्तों के नीचे दब चुकी है। जिससे उसने कभी पूछा था कि क्या तेरी कुड़माई हो गई?

लेकिन उसके साधारण जीवन में ज़बरदस्त मोड़ तब आता है जब उसकी मुलाकात सूबेदारनी से होती है। पच्चीस साल बाद, यानी जब उसकी उम्र 37 साल की व सूबेदारनी की उम्र 33—34 साल की है। लेकिन पच्चीस साल ने बहुत कुछ बदल दिया है। सूबेदारनी अब सूबेदार हज़ारासिंह की पत्नी है और बोधासिंह की माँ है।

सूबेदार हज़ारासिंह लहनासिंह की तरह मामूली किसान नहीं है। उसको बहादुरी का खिताब मिला है और लायलपुर में ज़मीन-जायदाद भी है। सूबेदार की हैसियत लहनासिंह से बहुत ऊँची है।

सूबेदारनी उसे इतने सालों बाद भी देखते ही पहचान लेती है। इससे पता चलता है कि बचपन की घटना उसको कितनी अधिक प्रभावित कर गई थी। जब वह उसे बचपन की उन घटनाओं का स्मरण कराती है तो वह अवाक् सा रह जाता है। भूला वह भी नहीं है, लेकिन समय ने उस पर एक गहरी पर्त बिछा दी थी।

आज वह एकाएक धूल पोंछकर साफ हो गई। लहनासिंह के लिए सूबेदारनी से इस तरह मिलना चमत्कार से कम नहीं था। सूबेदारनी से हुई यह मुलाकात युद्ध के मोर्चे पर उसके कार्यों को विशेष दिशा देते हैं। सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों को अब तक अपने मन में जिलाये रखा, यह लहनासिंह के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। उसी संबंध के बल पर सूबेदारनी का यह विश्वास करना कि लहनासिंह उसकी बात टालेगा नहीं, लहनासिंह के लिए यह और भी विस्मयकारी था।

वस्तुतः उसका लहनासिंह पर यह विश्वास ही बचपन के उन संबंधों की गहराई को व्यक्त करता है और इसी विश्वास की रक्षा करना लहनासिंह के जीवन की धुरी बन जाता है।

लहनासिंह एक वीर सिपाही है और खतरे के समय भी अपना मानसिक संतुलन नहीं खोता। युद्ध में वह इसलिए शामिल नहीं हुआ है कि उसे अंग्रेज सरकार के प्रति वफादारी व्यक्त करनी है या सरकार से कुछ इनाम हासिल करना है। सिपाही हो जाने के बावजूद वह तो किसानी के ही सपने देखता है। लेकिन युद्ध के मोर्चे पर वह एक वीर नायक भी है।

खंदक में पड़े-पड़े उकताने से वह शत्रु पर आक्रमण करना बेहतर समझता है। यहाँ भी उसकी कृषक मानसिकता प्रकट होती है जो निकम्मेपन और ऊब से बेहतर तो लड़ते हुए अपनी जान देना समझती है। जब उनकी टुकड़ी में जर्मन जासूस लपटन साहब बनकर घुस आता है तब उसकी सूझबूझ और चतुराई देखते ही बनती है। लहना सिंह का चरित्र

उसे यह पहचानने में देर नहीं लगती कि यह लपटन साहब नहीं वरन् जर्मन जासूस है और तब वह उसी के अनुकूल कदम उठाने में नहीं हिचकिचाता। और बाद में उस जर्मन जासूस के साथ मुठभेड़ या लड़ाई के दौरान भी उसका साहस और चतुराई स्पष्ट उभर कर प्रकट होती है। किंतु इस सारे घटनाचक्र में भी वह सूबेदारनी को दिये वचन के प्रति सजग रहता है और अपने जीते जी हजारासिंह व बोधासिंह पर किसी तरह की आँच नहीं आने देता। लहना सिंह का चरित्र

यही नहीं उनके प्रति अपनी आंतरिक भावना के कारण ही वह अपने घावों के बारे में सूबेदार को कुछ नहीं बताता। पसलियों में लगी गोली उसके लिए प्राणघातक होती है और अंत में वह मर जाता है। लेकिन मृत्यु शय्या पर उसकी नजरों के आगे दो ही चीजें मंडराती हैं एक सूबेदारनी का कहा वचन और दूसरा आम के बाग में कीरतसिंह के साथ आम खाना।

सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों के बल पर लहनासिंह पर जो भरोसा किया था, उसी भरोसे के बल पर उसने अपने पति और पुत्र की जीवन रक्षा की भीख मांगी थी। लहनासिंह अपनी जान देकर उस भरोसे की रक्षा करता है।

यह विश्वास और त्याग सूबेदारनी और लहनासिंह के संबंधों की पवित्रता और गहराई पर मोहर लगा देते हैं। स्त्री-पुरुष के बीच यह बिल्कुल नये तरह का संबंध है और इस दृष्टि से लहनासिंह एक नये तरह का नायक है जो नये सूक्ष्म रूमानी मानवीय संबंधों की एक आदर्श मिसाल सामने रखता है|

अपने व्यक्तित्व की इन ऊँचाइयों के बावजूद उसकी मृत्यु त्रासद ही कही जाएगी। उसका साहस, उसकी चतुराई, जिसके कारण जर्मनों को शिकस्त खानी पड़ी, इस योग्य भी नहीं समझी जाती कि कम से कम मृत्यु की सूचना में इतना उल्लेख तो होता कि युद्ध के दौरान साहस दिखाते हुए प्राणोत्सर्ग किया,

बल्कि समाचार इस रूप में छपता है कि “मैदान में घावों से मरा” | इससे यह ज़ाहिर होता है कि जिस सूबेदारनी के कारण वह उसके पति और पुत्र की प्राण रक्षा करता है, उसके लिए भी लहनासिंह का बलिदान अकारथ ही चला जाता है। लहनासिंह का ऐसा दुखद अंत उसे त्रासद नायक बना देता है। लहना सिंह का चरित्र लहना सिंह का चरित्र

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