भारत में लोकतंत्र: उद्देश्य, उपलब्धियां, चुनौतिया
अनुच्छेद 19 (2) में यह उल्लेखित है कि देश की एकता अखंडता तथा संप्रभुता के आधार पर स्वतंत्रता के ऊपर रोक लगाई जा सकती है।
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लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां
छत्तीसगढ़ के जनजातीय नेता महेंद्र कर्मा का सलवा जुडम अभियान में योगदान है नंदिनी सुंदर बनाम छत्तीसगढ़ 2010 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने सलवा जुडम को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन मानते हुए रोक लगा दी| नंदिनी सुंदर दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की समाजशास्त्र के प्रोफेसर है |उन्होंने नक्सलवाद पर बर्निग फॉरेस्ट नामक पुस्तक लिखी है।
2. सांप्रदायिकता
मूल कर्तव्य में सामासिक संस्कृति का उल्लेख है 1909 मार्ले मिंटो अधिनियम द्वारा मुसलमानों के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत की गई इसे सांप्रदायिकता की वैधानिक शुरुआत कहा जाता है |
सांप्रदायिक की समस्या पर विचार करने हेतु पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार पर राष्ट्रीय एकता परिषद की स्थापना हुई | 1963 में इसकी पहली बैठक हुई अब तक 16 बार बैठक हो चुकी है अंतिम बैठक वर्ष 2013 में हुई थी। प्रधानमंत्री इस का पदेन अध्यक्ष होता है इसमें कुल 147 सदस्य हैं।
3. जातिवाद
डॉक्टर अंबेडकर ने जातिवाद की समस्या पर निम्न पुस्तक लिखी हैं
- अनटचेबल्स
- हिंदू धर्म की पहेलियां
- शूद्र कौन थे
सीएसडीएस के संस्थापक प्रोफेसर रजनी कोठारी ने कास्ट इन इंडियन पॉलिटिक्स नामक पुस्तक लिखी है पुस्तक में उन्होंने राजनीति में जाति की भूमिका के 3 आयाम बताए हैं।
- टिकट का बंटवारा जाति के आधार पर।
- जाति के आधार पर मतदान।
- जाति के आधार पर मंत्री परिषद का गठन।
रामचन्द्र गुहा अपनी पुस्तक इंडिया आफ्टर गांधी (पिकाडोर, 2007) में जवाब देते हैं- ‘जवाब है फिप्टी-फिप्टी (50:50)।’ जब चुनाव कराने और आंदोलन व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति की बात आती है, तब यह बात लागू होती है। लेकिन जब राजनेताओं और राजनीतिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली की बात आती है तो ये लागू नहीं होती है। लोकतंत्र की खामियां, विशेष रूप से इसके संचालन में, ‘अनिवार्य रूप से इसकी संरचना में नहीं पाई जाती हैं।’ अक्सर ये खामियां इसको चलाने वाले लोगों के चरित्र और कार्यप्रणाली में होती हैं।
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