वैष्णव करोड़पति है | भगवान विष्णु का मंदिर है | की संदर्भ सहित व्याख्या | हरिशंकर परसाई |

वैष्णव करोड़पति है | भगवान विष्णु का मंदिर है | की संदर्भ सहित व्याख्या | हरिशंकर परसाई |

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वैष्णव करोड़पति है । भगवान विष्णु का मंदिर है । जायदाद लगी है । भगवान सूदखोरी करते हैं। व्याज से कर्ज देते हैं । वैष्णव दो घंटे भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, फिर गादी तकिए वाली बैठक में आकर धर्म को धंधे से जोड़ते हैं। धर्म धंधे से जुड़ जाए, इसी को ‘योग’ कहते हैं । कर्ज लेने वाले आते हैं । विष्णु भगवान के मुनीम हो जाते हैं ।

वैष्णव करोड़पति है की व्याख्या

संदर्भः प्रस्तुत उद्धरण स्वर्गीय हरिशंकर परसाई के व्यंग्य निबंध वैष्णव की फिसलन से लिया गया है। निबंध की इन आरंभिक पंक्तियों में लेखक ने सूदखोर-व्यापारी, करोड़ों के मालिक तथाकथित वैष्णव (विष्णु भगवान का भक्त) का टूटे-फूटे अधूरे वाक्यों में अत्यंत मार्मिक व्यंग्य-चित्र प्रस्तुत किया है।

व्याख्याः लाखों-करोड़ों के मालिक विष्णु भक्त व्यवसायी ने विष्णु भगवान का भव्य मंदिर बनवा कर बेइमानी से अर्जित की गई अपनी सारी सम्पत्ति मंदिर के नाम कर दी है। इस लिए उसका सारा कारोबार भगवान करते हैं। सूदखोरी या ब्याज पर पैसे उधार देने का कार्य वैष्णव ने भगवान के जिम्मे कर दिया है।

वह तो उपासना गृह में दो घंटे तक भगवान की निष्ठापूर्वक (झूठी या मक्कारी से भरी) पूजा करने के बाद तकिए वाली सजी बैठक (गद्दी) में आकर धर्म को धंधे से जोड़ने मात्र का कार्य करता है। इस रूप में वह परम साधक बन जाता है। धर्म धंधे से जुड़ सके, इसी को वह ‘योग’ मानता है। इस योग-साधना में वह परम निपुण है। वैष्णव करोड़पति है

जब व्याज पर उधार लेने वाले उसकी गद्दी पर आते हैं तो वह भगवान विष्णु का मुनीम बनकर काम करता है। कहने का तात्पर्य यह कि वह अपनी सम्पत्ति का मालिक न रहकर भगवान का अदना सेवक बन कर रहता है।

विशेषः

1) छोटे-छोटे, प्रायः अधूरे वाक्यों का प्रयोग। कहीं कर्ता तो कहीं क्रिया गायब है। फिर भी व्यंजना से भरपूर भाषा का प्रयोग इस उद्धरण में हुआ है।

2) पूरे निबंध को सही ढंग से समझने के लिए यह उद्धरण बीज या कुंजी का काम करता है।

3) धर्म को धंधे से जोड़ने को ‘योग’ की संज्ञा देकर लेखक ने भ्रष्ट व्यवसायियों की अत्यंत घीनौनी मन:वृत्ति पर करारी चोट की है।

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