वैष्णव की फिसलन का सारांश | हरिशंकर परसाई |

वैष्णव की फिसलन का सारांश | हरिशंकर परसाई |

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

वैष्णव की फिसलन का सारांश :— इस निबंध को पढ़कर आपने समझ लिया होगा कि इसमें आरंभ से अंत तक एक करोड़पति ढोंगी वैष्णव (विष्णु भगवान के भक्त) के लगातार अधःपतन का व्यंग्य-चित्र प्रस्तुत किया गया है।

करोडपति वैष्णव ने भगवान विष्णु का एक भव्य मंदिर बनवाकर अपनी सारी जायदाद उनके नाम कर दी है। इसलिए सूदखोरी से लेकर कालाबाजारी के सारे काम उन्हीं के नाम पर होते हैं। वैष्णव नियमित रूप से दो घंटे विष्णु भगवान की पूजा करता है।

वैष्णव की फिसलन का सारांश

पूजा के बाद मसनद लगे गद्दीदार बिस्तरे वाली बैठक में आसन लगाकर वह धर्म से धंधो को जोड़ने की साधना करता है। धर्म से धंधे को जोड़ने को योग की संज्ञा देकर लेखक ने धर्म की आड़ में भ्रष्टाचार करने वाले व्यवसाइयों पर करारा व्यंग्य किया है।

वैष्णव के पास जब कर्ज लेने वाले आते हैं तो वह भगवान विष्णु का मुनीम बन जाता है। कर्ज लेने वाले से खाते में यह दर्ज करवाया जाता है – “दस्तावेज लिख दी रामलाल वल्द श्यामलाल ने भगवान विष्णु वल्द नामालूम हो…।” विष्णु भगवान की वल्दियत इस लिए नहीं दर्ज की वल्दियत ठीक होगी।

जाती क्योंकि उनके पिता का नाम मालूम नहीं है। मालूम होने पर ही इस कथन के पीछे भी धार्मिक पाखंड पर एक गहरा व्यंग्य छिपा हुआ है। अपनी काली करतूत के कारण वैष्णव के पास काफी पैसा एकत्र हो गया है। इन पैसों से वह कई एजेंसियाँ लेकर बहुत बड़ा आढती (स्टाकिस्ट) बन गया है। माल दबाकर मनमानी चोरबाजारी को भी वह प्रभु की कृपा ही मानता है।

इस पर टिप्पणी करते हुए लेखक कहता है कि उसके प्रभु भी दो नम्बरी बन गए हैं। नम्बर दो के पैसे को नंबर एक का बनाने के लिए वैष्णव प्रभु से प्रार्थना करता है कि अब मैं इसका क्या करूँ? …… प्रभु कष्ट हरो सबका।

‘वैष्णव की शुद्ध आत्मा से आवाज़ उठती है कि अधम, माया जोड़ी है तो माया का उपयोग भी सीख! तू एक बड़ा होटल खोल ले।’ वैष्णव इसे प्रभु का आदेश मानकर एक शानदार होटल बनवाता है। आधुनिक सुख-सुविधाओं से पूर्ण सुंदर कमरे, बाथरूम और नीचे लांड्री, नाई की दूकान, टैक्सियों की व्यवस्था के साथ ही बाहर खूबसूरत लम्बे-चोड़े लॉन से होटल की शान में कई गुना वृद्धि हो जाती है।

अपनी तथाकथित धार्मिक प्रकृति के कारण वैष्णव होटल में विशुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था करता है, जिसमें शुद्ध घी की सब्जी, दाल, फल, रायता, पापड़ आदि सम्मिलित हैं। होटल का नाम चल पड़ता है। बड़ी-बड़ी कपंनियों के कार्यकारी अधिकारी, ऊँचे दर्जे सरकारी अधिकारी, बड़े-बड़े सेठ आने लगते हैं।

तीस रुपए प्रति कमरे किराया और खानपान की व्यवस्था की आमदनी से वैष्णव संतुष्ट है। लेकिन होटल में ठहरने वाले कुछ बड़े लोग अब भी असंतुष्ट है। एक बड़ा कार्यकारी अधिकारी तैश में आकर वैष्णव को फटकारता है कि इतने महंगे होटल में क्या हम घास-पात खाने के लिए ठरहते हैं? यहाँ ‘नान वेज’ की व्यवस्था क्यों नहीं?

वैष्णव के सामने धर्म-संकट उपस्थित हो जाता है। इस संकट से मुक्ति के लिए वह प्रभु विष्णु के चरणों में लेट कर प्रार्थना करता है कि यह होटल बैठ जाएगा। ठहरने वालों को यहाँ बड़ी तकलीफ होती है। वे शुद्ध वैष्णव भोजन की जगह मांस माँगते हैं। मैं क्या करूँ?

वैष्णव की शुद्ध आत्मा से सधी हुई आवाज़ आती है, ‘गांधी जी से बड़ा वैष्णव इस युग में कौन हुआ है। उनका प्रसिद्ध भजन है, वैष्णवजन तो तेणे कहिए, जे पीर पराई जाणे रे । तू होटल में रहने वालों की पीर रामझ और उसे दूर कर। इससे बड़ा वैष्णव धर्म क्या होगा?

प्रभु के आदेश से वैष्णव ने जल्दी ही गोश्त, मुर्गा, मछली आदि की व्यवस्था करवा दी। ग्राहक बढ़ने लगे। लेकिन एक दिन फिर उसी कार्यकारी अधिकारी ने शिकायत की कि मांसाहार की व्यवस्था तो ठीक है, लेकिन उसके पचने का भी इंतजाम होना चाहिए।

वैष्णव द्वारा लवण भास्कर चूर्ण के इंतजाम की बात सुनकर कार्यकारी अधिकरी ने माथा ठोंक लिया। उसकी ना समझी पर तरस खाते हुए कहा, ‘मेरा मतलब शराब से है। यहाँ ‘बार खोलिए।’

यह सुनकर वैष्णव सन्न रह गया। यह दूसरा गंभीर संकट था। वैष्णव ने प्रभु के चरणों में गुहार की कि आपके चरणामृत की जगह मैं मदिरा कैसे पिला सकता हूँ? उसकी शुद्ध आत्मा से आवाज आयी कि ‘मूर्ख, तू क्या होटल बिठाना चाहता है? देवता सोमरस पीते थे।

वही सोमरस मदिरा है। इसमें तेरा वैष्णव धर्म कहाँ भंग होता है। सामवेद के 63 श्लोक सोमरस अर्थात् मदिरा की स्तुति में है। तुझे धर्म की समझ है या नहीं? धर्मात्मा वैष्णव की समझ में आ गया। होटल में ‘बार खोल दिया गया। होटल को ठाट से चलते देख वैष्णव खुश हो गया।

होटल-व्यवसाय केवल ‘बार तक ही सीमित नहीं रहता। फिर मरे हुए गोश्त की जगह जिंदा गोश्त अर्थात ‘कबरे की बात उठी, जिसमें औरतों का नग्न नृत्य होता है। बहुत सोच-समझ के बाद वैष्णव ने प्रभु के चरणों में नतमस्तक होकर अपनी समस्या रखी। उसकी शुद्ध आत्मा से आवाज आयी कि मूर्ख कृष्णावतार में मैंने गोपियों को नचाया था।

उनका चीर हरण किया था। तुझे क्या संकोच है। प्रभु के आदेश से कैबरे’ भी शुरू हो गया। शराब. गोश्त और कैबरे की व्यवस्था से होटल के कमरो का किराया काफी बढ़ गया, सभी कमरे भरे रहने लगे। लेकिन आधुनिक होटल की मर्यादा केवल कैबरे तक ही सीमित नहीं है।

कैबरे के बाद नारी देह की मांग आयी। इस धर्म संकट के समाधान के लिए वैष्णव ने पुनः प्रभु चरणों का सहारा ।। उसकी शुद्ध आत्मा से आवाज आई, ‘मूर्ख यह तो प्रकृति और पुरुष का सयोग है। इसमे क्या पाप और पुण्य! चलने दे। प्रभु के इस आदेश पर वैष्णव ने वेयरों से कह दिया कि पुलिस से बचकर चुपचाप इतजाम कर दिया करो। भगवान की भेंट का पच्चीस प्रतिशत ले लिया करो।

वैष्णव पुनः सफेद से काले धंधे पर आ गया। शराब, गोश्त, कैबरे और औरत के योग से होटल खूब चलने लगा। वैष्णव धर्म भी बरकरार रहा। इस प्रकार वैष्णव ने धर्म को धंधे से अच्छी तरह जोड़ कर अपनी योग साधना’ का भरपूर परिचय दिया। इस प्रकार निबंध में आदि से अंत तक व्यवसाई वर्ग के प्रतिनिधि वैष्णव के धार्मिक ढोंग और प्रपंच का रस लेते हुए भंडाफोड़ किया गया है।

यह भी पढ़े :

  1. वैष्णव की शुद्ध आत्मा से आवाज आयी | की संदर्भ सहित व्याख्या | हरिशंकर परसाई |
  2. वैष्णव करोड़पति है | भगवान विष्णु का मंदिर है | की संदर्भ सहित व्याख्या | हरिशंकर परसाई |

 

वैष्णव की फिसलन का सारांश – अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। और हमारे “FaceBook Page” को फॉलो करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।। धन्यवाद ।।

 

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!