वैष्णव की फिसलन की भाषा शैली की विशेषताएं लिखिए |

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वैष्णव की फिसलन की भाषा

वैष्णव की फिसलन की भाषा

“बैठक में आकर धर्म को धंधे से जोड़ते हैं। धर्म धंधे से जुड़ जाए, इसी को योग कहते हैं।” “कर्ज लेने वाले आते हैं तो भगवान के मुनीम हो जाते हैं।” “सब प्रभु की इच्छा हो रहा है। उनके प्रभु भी शायद दो नम्बरी हैं।” “वैष्णव की विशुद्ध आत्मा से आवाज आयी।”मूर्ख, कृष्णावतार में मैंने गोपियों को नचाया था, उनका चीर-हरण किया था।”

इन वाक्यों, वाक्यांशों और पदों से जो निहितार्थ (छिपा हुआ अर्थ) ध्वनित होता है, वह व्यंग्य-कौशल में अत्यधिक वृद्धि करता है। अतः शिल्प-संरचना अर्थात शैली और भाषा दोनों ही दृष्टियों से यह निबंध अत्यंत महत्वपूर्ण है।

होटल में शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था ठहरने वाले बड़े लोगों की असुविधा को दूर करने के लिए उसे कई कार्य ऐसे करने पड़ते हैं, जो होटल व्यवसाय को अधिक लाभदायक बनाने के लिए जरूरी हैं। इस प्रक्रिया में उसे पहले मांसाहार की व्यवस्था करनी पड़ती है, जिसके लिए शराब की व्यवस्था जरूरी हो जाती है।

और आगे बढ़ने पर होटल में कैबरे (स्त्रियों के अर्ध-नग्न नृत्य) की भी व्यवस्था करनी पड़ती है। अपने व्यवसाय को और अधिक चमकाने के लिए नारी व्यवसाय के स्तर तक उसे गिरना पड़ता है, जो अपने आप में काला धंधा या नम्बर दो का धंधा है।

 

इस तरह उसे लगातार नीचे गिरते हुए अंततः पुनः सूदखोरी और काला बाजारी जैसे नम्बर दो के धंधे तक उतरना पड़ता है। यही वैष्णव की फिसलन है। यह शीर्षक निबंध की अंतर्वस्तु और प्रतिपाद्य को पूरी तरह रेखांकित करता है। शीर्षक में व्यंग्यात्मकता का समावेश होने के कारण वह पूर्ण रूप से सार्थक बन गया है।

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  1. वैष्णव की फिसलन का सारांश | हरिशंकर परसाई |

 

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