शेरशाह सूरी ( 1540-45) का इतिहास | Sher Shah Suri - Rajasthan Result

शेरशाह सूरी ( 1540-45) का इतिहास | Sher Shah Suri

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇
शेरशाह सूरी के बचपन का नाम फरीद खान था इसके पिता हसन शाह सुरी बिहार में सासाराम के जागीरदार थे हसन शाह सुर के पिता इब्राहिम खान सूर गोमल नदी के किनारे रोह के निवासी थे | इब्राहिम खान घोड़ों का व्यापारी था साथ ही साथ यह योद्धा भी था घोड़े के व्यापार में लाभ नहीं होने के कारण सैनिक के रूप में वह भारत आया इस समय भारत में लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी शासक था बहलोल लोधी स्वयं भी अफगान था |
अफगानीओ को भारत आने का न्यौता दिया था।
अब्बास खान शेरवानी ने अपनी पुस्तक तारीख – ए- शेरशाही में खाएगी भैरव लोधी के बुलाने पर टिड्डियों की तरह भारत आए। हसन साह सूर को शुरू में जौनपुर का एक छोटा जागीरदार बनाया गया था दक्षिण बिहार के सूबेदार बहार खान लुहानी ने फरीद खान को एक शेर मारने के कारण शेर खान की उपाधि दी थी और अपने बेटे जलाल खान को संरक्षक नियुक्त कर दिया |
शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी चंदेरी के युद्ध में मेदिनी राय के विरुद्ध मुगलों की ओर से लड़ा था और उसी समय उसने कहा था कि अगर भाग्य ने मेरी सहायता की तो मैं आसानी से मुगलों को भारत से बाहर भगा दूंगा ।
शेरशाह सूरी ने 1539 में चौसा के युद्ध में हुमायूं को पराजित किया और शेर शाह की उपाधि धारण की अपने नाम का खुतबा पढ़ा और अपने नाम के सिक्के जारी किए|
शेरशाह सूरी ने 1540 में कन्नौज के युद्ध में हुमायूं को अंतिम रूप से पराजित किया तथा इस तरह 1540 में शेरशाह सूरी को भारत की वास्तविक सत्ता प्राप्त हुई और भारत में द्वितीय अफगान वंश की स्थापना हुई ।
शेरशाह सूरी ने सेना को सुदृढ़ बनाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी की तरह दाग और हुलिया प्रणाली अपनाया गया । कोलकाता से पेशावर तक ग्रैंड टैंक रोड को सुदृढ़ किया इस रोड के किनारे छायादार वृक्ष लगवाए जगह जगह पर प्याऊ लगवाया यात्रियों की सुविधा के लिए सराय बनवाएं सराय में भोजन और चारा दोनों का प्रबंधन किया जाता था ।

शेरशाह सूरी ने राजस्व की वसूली के लिए कबूलियत और पट्टा की व्यवस्था प्रारंभ की जिसके अंतर्गत किसानों को जो राजस्व देना होता था उसकी स्वीकृति को कबूलियत कहा जाता था जबकि इस दस्तावेज में ऐसे लिखा जाता था उसे पट्टा कहा जाता था |
शेरशाह सूरी ने पाटलिपुत्र का नाम बदलकर पटना कर दिया खोटे सिक्के के स्थान पर चांदी के नए मानक सिक्के चलाए गए इसके समय चलाए गए चांदी के सिक्के ब्रिटिश काल तक 1885 तक प्रचलन में रहे |
शेरशाह सूरी डाक व्यवस्था को भी घटनात्मक दृष्टि से प्रभावशाली बनाया स्थानीय उत्तरदायित्व को लागू किया इसके शासन के बारे में अब्बास खान शेरवानी ने तारीख ए शेरशाही मैं कहां है की एक बुढ़िया सिर पर सोने की टोकरी रखकर पूरे भारत में भ्रमण कर सकती थी |
1544 में शेरशाह ने मारवाड़ के शासक मालदेव पर आक्रमण किया इस युद्ध में शेरशाह ने कूटनीति का सहारा लिया इस युद्ध के दौरान राजपूत सरदार जेता और कुपा ने बहुत वीरता का प्रदर्शन किया था शेरशाह मारवाड़ के राजपूतों के शौर्य से इतना प्रभावित हुआ कि उसने कहा था कि मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए लगभग हिंदुस्तान का साम्राज्य खो चुका था |
1545 में शेरशाह ने कलिंजर पर अपना अंतिम आक्रमण किया कलिंजर का शासक कीरत सिंह थे ।
शेरशाह सूरी के समय में प्रांतीय व्यवस्था की जानकारी नहीं मिलती है उसके समय सरकार व्यवस्था लागू की गई थी ।
मरकज (केन्द्र) – परगना – गांव

 

शेरशाह सूरी अपनी मृत्यु से पहले ही अपना मकबरा सासाराम के एक तालाब में बनवाया था जहां पर उसकी मृत्यु के बाद उसे दफना दिया गया | शेरशाह के बाद इस्लाम शाह और फिरोजशाह कमजोर शासक हुए थे ।

यह भी पढ़े 👇

शेरशाह सूरी :- अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। और हमारे फेसबुक पेज को फॉलो करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरूर लिखे ।। धन्यवाद 🙏 ।।
अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!