सजनी रजनी – दिन देखै बिना दुख पानि | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | सुजानहित | घनानंद |
सजनी रजनी – दिन देखै बिना दुख पानि उदेग की आनि दहौं ।
अँसुवा हिय पै धिय धार परै उठि स्वास भरै सुठि आस गहौं ।
घनआनन्द नीर समीर बिना बुझिबे कौन और उपाय लहौं ।
उर आवत यौं छबि छाँह ज्यौं हौं ब्रजछैलनी गैल सदाई रहौं ।
सजनी रजनी – दिन देखै बिना
प्रसंग :— यह पद्य कविवर घनानन्द की रचना ‘सुजानहित’ से लिया गया है। प्रिय के दर्शन के अभाव में प्रेमियों की दशा बड़ी ही अस्थिर एवं विषम हो जाया करती है। प्रिय श्रीकृष्ण के दर्शन के अभाव में राधा या गोपियों की जो दशा होती, इस पद्य में उसी सबका अत्यन्त सजीव वर्णन करते हुए कवि कह रहा है
व्याख्या :— हे सखि! अपने प्रिय कृष्ण को देखे बिना मैं रात-दिन दुख से पीड़ित होकर व्याकुलता की आग में जलती रहती हूँ। अर्थात् कृष्ण का अभाव व्याकुलता और मानसिक पीड़ा का कारण बनकर अत्यधिक दाहक होने लगता है। यद्यपि आँखों से आँसुओं की मूसलाधार और निरंतर वर्षा होती रहती है, फिर भी साँसों की हवा उस आग को भड़का देती है। उसी से जीवन की कुछ आशा शेष लगती और प्रतीत होती है।
कविवर घनानन्द कहते हैं कि आँसुओं के पानी और साँसों की हवा के बिना वियोग की इस आग को बुझाने का अन्य कोई उपाय नजर नहीं आता। अर्थात् वियोग की आग से पीड़ित होकर मन आहे भरने लगता है और आँखें लगातार आँसू बहाने लगती हैं। उस समय मेरे हृदय में बस एक ही बात आती है, वह यह कि उस प्रिय की सुन्दर छवि की परछाई बनकर ब्रज के रसिया श्रीकृष्ण के साथ ब्रज की गलियों में डोलती फिरूँ। ऐसा होने पर ही विरही मन को शांति मिल सकती है। इसके अतिरिक्त बचाव का अन्य कोई उपाय नहीं ।
विशेष
1. कवि ने विरही के मन की विषय अवस्था और चरम अभिलाषा को स्वरमय आकार देने का सार्थक प्रयास किया है।
2. पद्य में विशेष, रचनावोक्ति, अनुप्रास, उपाय आदि अलंकार हैं।
3. पद्य की भाषा प्रांजल ब्रजभाषा है। उसमें माधुर्यगुण की प्रधानता है । गति और बहाव के साथ-साथ संगीतात्मकता भी है।
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