स्याम घटा लपटी थिर बीज | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | घनानंद |
स्याम घटा लपटी थिर बीज कि सौहै अमावस-अंक उज्यारी।
धूप के पुंज मैं ज्वाल की माल सी पै दृग-सीतलता-सुख-कारी।
कै छवि छायो सिंगार निहारि सुजान-तिया-तन-दीपति प्यारी।
कैसी फ़बी घनआनँद चोपनि सों पहिरी चुनि साँवरी सारी ||4||
स्याम घटा लपटी थिर
प्रसंग : प्रस्तुत छंद के रचयिता कवि घनानंद हैं। घनानंद स्वच्छन्द काव्यधारा के आधार स्तंभ हैं। इन्होंने अपने काव्य में स्वच्छंद प्रेम के गीत गाये हैं। अपने व्यक्तिगत जीवन में इन्होंने जो कुछ देखा, जो कुछ भोगा उसी को अपने काव्य में वर्णित किया है। इस छंद में कवि ने नायिका के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि ने नायिका को काली साड़ी पहने देखा और वह उस पर मोहित हो गया।
व्याख्या : रूप-सौंदर्य का वर्णन करने में कवि घनानंद का कोई सानी नहीं है। नायिका को काली साड़ी में देखकर घनानंद मोहित हो जाते हैं। घटा के बीच में आकाश में बिजली चमक रही हो अर्थात् नायिका का शारीरिक सौंदर्य काली साड़ी में बहुत ही कांतिवान प्रतीत हो रहा है। नायिका का रूप काली साड़ी पहनकर अमावस की रात्रि में खिली हुई चाँदनी के समान उज्ज्वल दिखाई दे रही है। वह धुएँ के समूह में उठने वाली ज्वाला के समान दिखाई दे रही है किन्तु आँखों की शीतलता और सुख देने वाली है।
सुजान इस शृंगार में बहुत ही सुन्दर सुशोभित हो रही है उसका सुन्दर स्त्री – तन सुन्दर चमक लिए हुए है। घनानंद कहते हैं कि सुजान ने चुनकर जो साँवरी साड़ी पहनी है वह उसके रूप-सौंदर्य पर बहुत ही आकर्षक लग रही है। साँवरी साड़ी ने सुजान के गोरे शरीर को अधिक कांतिमान कर दिया है।
विशेष
1. सुजान के अद्भुत आकर्षक सौंदर्य का वर्णन हुआ है।
2. काली साड़ी सुजान के गोरे शरीर की सुन्दरता को बढ़ा रही है।
3. अनुप्रास, उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
4. सवैया छंद का प्रयोग हुआ है।
5. शृंगार – रस का वर्णन है।
6. ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
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