हरि सा हीरा छांडि कै करै | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या| संत रविदास |
हरि सा हीरा छांडि
हरि सा हीरा छांडि कै करै आन की आस ।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास ।।
हरि सा हीरा छांडि कै करै
प्रसंग :– इस साखी में रविदास ने नादान-नासमझ लोगों पर टिप्पणी की है। इस टिप्पणी में ऐसे लोगों के जीवन पर रविदास की पीड़ा व्यक्त हुई है। हालांकि ये लोग रविदास के आसपास नहीं है। अन्य कोई भी उनको समझ देने वाला नहीं है।
व्याख्या : परमात्मा हीरा के समान बहुमूल्य है। उसकी आराधना करनी चाहिए। उसकी भक्ति करनी चाहिए, लेकिन अज्ञानी लोग उस बहुमूल्य रत्न को छोड़कर दूसरी चीजों के लिए भटकते हैं।
दुनिया की निरर्थक संपति के पीछे भागते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति, जिन्हें ‘हरि’ जैसे हीरे’ की पहचान नहीं है और उसे छोड़ दे रहे हैं वे अंततः यमपुर ही जाएँगे। उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती।
रविदास अपनी बात पर जोर देते हुए कहते हैं वे अपने अनुभव के आधार पर सही कह रहे हैं।
विशेष :
यहाँ रविदास शांत भाव से अपना मत व्यक्त करते हैं। कोई अतिरिक्त आग्रह उनमें नहीं है। हालांकि वे अपने विचारों पर दृढ़ हैं।
यह भी पढ़े 👇
- ऐसो कछु अनुभौ कहत न आवै | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | संत रविदास |
- काहे मन मारन बन जाई | कविता की संदर्भ सहित व्याख्या | संत रविदास |
अपने दोस्तों के साथ शेयर करे 👇
Recent Comments